Mangesh Yadav का Encounter कर क्यों घिरी STF, एनकाउंटर की वो बातें जो खोलती हैं यूपी पुलिस की पोल!

Mangesh Yadav Encounter: जानिए मंगेश यादव एनकाउंटर से जुड़ी चौंकाने वाली सच्चाई, पुलिस की कहानी में उलझन और परिवार के दावों के बीच उठ रहे सवाल, यूपी पुलिस और एसटीएफ की भूमिका पर डिटेल्ड एनालिसिस.

मेगेश यादव के एनकाउंटर को लेकर यूपी पुलिस पर सवाल उठ रहे हैं

मेगेश यादव के एनकाउंटर को लेकर यूपी पुलिस पर सवाल उठ रहे हैं

10 Sep 2024 (अपडेटेड: Sep 10 2024 11:15 PM)

follow google news

संतोष शर्मा के साथ शम्स ताहिर खान की रिपोर्ट

Mangesh Yadav Encounter: ये ट्रक ड्राइवर राकेश यादव का जौनपुर के अगरौरा गांव का घर है। इस घर में चार लोग रहा करते थे। राकेश यादव, उनकी पत्नी, दसवीं में पढ़ने वाली बेटी प्रिंसी और बेटा मंगेश यादव। अब इस घर में सिर्फ तीन लोग रहते हैं। क्योंकि मंगेश यादव अब इस दुनिया में नहीं है। एनकाउंटर के नाम पर उसकी हत्या हो चुकी है। हालांकि ये बात यूपी पुलिस नहीं मानती। हर एनकाउंटर के बाद यूपी पुलिस जो कहानी सुनाती है, मंगेश यादव की मौत के बाद भी वही घिसी-पिटी कहानी सुना रही है। लेकिन इस बार यूपी पुलिस अपनी ही कहानी में उलझ कर रह गई है। पुलिस की कहानी में इतने झोल हैं कि अगर उन्हें झाड़ दिया जाए, तो इस एक फ्रेम में नजर आ रहे ये सारे के सारे यूपी पुलिस के महारथी शायद एक साथ जेल में नजर आएं। तो चलिए पुलिस की कहानी के जरिए ही इस पूरी कहानी का सच जान लेते हैं.

विपिन सिंह गैंग और ज्वेलरी शॉप लूट की घटना

ये विपिन सिंह है। यूपी का एक घोषित अपराधी। लूट और डकैती इसका पसंदीदा पेशा है। इसका अपना एक गैंग है। गैंग में इसके अपने भाई समेत दर्जन से ज्यादा लड़के हैं। इसने अपने करियर में लूट और डकैती की कई वारदातों को अंजाम दिया। खुद यूपी पुलिस के दस्तावेज के मुताबिक 37 मुकदमे इसके सर पर हैं। बकौल यूपी पुलिस 28 अगस्त शनिवार के दिन दोपहर सवा 12 बजे सुल्तानपुर के जिस भरत ज्वेलर्स के यहां डाका पड़ा वहां सीसीटीवी कैमरे में कुल पांच लोग क़ैद थे। पर ये पांच कौन लोग थे, नहीं पता। क्योंकि पांच में से तीन लोगों ने हेलमेट से और दो लोगों ने गमछे से अपना चेहरा छुपा रखा था। जौहरी की दुकान से एक करोड़ 40 लाख रुपये के जेवर लूट कर पांचों वहां से निकल गए। अब चूंकि दिन दहाड़े इतनी बड़ी लूट हुई, लिहाज़ा लोकल पुलिस को किनारे कर यूपी की शान स्पेशल टास्क फोर्स यानी एसटीएफ को मैदान में उतार दिया गया। वही एसटीएफ जो एनकाउंटर के ज़रिए केस सुलझाने के लिए बदनाम या मशहूर है।

एसटीएफ का एनकाउंटर और उठते सवाल

अब अपने उसी टैग के साथ एसटीएफ मैदान में उतरती है। जांच शुरू हो जाती है। चार दिन बीत जाते हैं। चार दिन बाद 1 सितंबर को अचानक सुल्तानपुर से ही खबर आती है कि जौहरी की दुकान की लूट में शामिल तीन अपराधियों के साथ एसटीएफ का एनकाउंटर हुआ है। बाद में पता चला कि तीन लोगों को एसटीएफ ने पैर में इस तरह गोली मारी कि लगी भी और नहीं भी। फिर तीनों को पकड़ लिया।

मंगेश यादव के खिलाफ पुलिस के आरोप और सच्चाई

इस एनकाउंटर के दो दिन बाद 4 सितंबर को रायबरेली से एक और खबर आती है। खबर ये कि गैंगस्टर विपिन सिंह खुद के खिलाफ दर्ज एक पुराने केस में खुद को ही सरेंडर कर जेल चला जाता है। यानी एसटीएफ की कहानी के हिसाब से जो विपिन सिंह सुल्तानपुर के भरत ज्वेलर्स में हुई 1 करोड़ 40 की लूट का सरगना था, वो अपने आप ही जेल चला गया।कहने वाले ये भी कह रहे हैं कि विपिन सिंह एसटीएफ के हाथों मरने से बचने के लिए सरेंडर कर जेल गया। यानी अब तक कुल चार लोग शिकंजे में थे। 

मंगेश यादव का एनकाउंटर और परिवार के दावे

इसी बीच दो से चार सितंबर के बीच एक और नई कहानी लिखी जा रही थी। और इस नई कहानी में पहली बार एक नया नाम जोड़ा गया। नाम -- मंगेश यादव का। उस मंगेश यादव का, जिसके खिलाफ छोटी-मोटी चोरियां और वाहन चोरी के 7 मामले दर्ज थे। मंगेश दो बार पकड़ा भी गया। जेल भी गया। लेकिन किसी भी चोरी या गिरफ्तारी के दौरान कभी पुलिस ने मंगेश के पास से पिस्टल कट्टा या बंदूक तो छोड़िए चाकू तक बरामद नहीं किया। यही वजह है कि जो 7 केस मंगेश यादव के खिलाफ दर्ज हैं, वो सभी चोरी के हैं। इनमें से एक भी मामले में उसके खिलाफ आर्म्स एक्ट का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है। इतना ही नहीं गैंगस्टर विपिन सिंह के गैंग से कभी भी दूर-दूर तक उसका कोई वास्ता नहीं रहा। यहां तक कि विपिन के गैंग में शामिल किसी लड़के से भी उसकी कोई दोस्ती नहीं रही। तो फिर सवाल है कि अचानक सुल्तानपुर की लूट में विपिन गैंग के साथ कैसे जुड़ गया। पुलिस की कहानी में इसका कोई जिक्र नहीं है। ना कोई जवाब। 

एसटीएफ का बदला हुआ प्लान और चार अन्य लड़के

लेकिन चोरी के आठ मामले जो मंगेश यादव के खिलाफ सुल्तानपुर और जौनपुर में ही दर्ज थे, भरत ज्वेलर्स में हुई लूटपाट के बाद मामले की तफ्तीश के दौरान एसटीएफ की नजरों के सामने से गुजरे। और यहीं से कहानी में नया ट्विस्ट आया. मंगेश यादव की शक्ल में उन्हें एक शिकार मिल चुका था. एक सितंबर को एसटीएफ के हाथों जिन तीन लड़कों का एनकाउंटर हुआ और उन्हें पकड़ा गया, उसके अगले ही दिन यानी 2 सितंबर को पहली बार एसटीएफ के कहने पर मंगेश यादव के सर पर 50 हजार रुपये का इनाम रख दिया गया. इसके बाद चार सितंबर यानी जिस दिन विपिन सिंह सरेंडर कर जेल चला जाता है, ठीक उसी दिन मंगेश यादव पर रखा इनाम 50 हजार रुपये से डबल कर एक लाख रुपये कर दिया जाता है. यानी दो दिनों में एसटीएफ मंगेश यादव को यूपी का एक अच्छा खासा गैंगस्टर बना चुका था। अब आईए आपको दो और चार सितंबर के बीच के इस खेल की असली कहानी बताता हूं। 

चोरी हुई मोटरसाइकिल और एसटीएफ की कहानी में झोल

वो 2 सितंबर की रात ही थी, जब एसटीएफ की टीम सादी वर्दी में मंगेश यादव के इसी घर में आई थी। घरवालों के मुताबिक तब मंगेश घर पर ही सो रहा था। इतना ही नहीं बीते कई दिनों से वो लगातार घर पर ही था। अब यहां सवाल है कि अगर मंगेश यादव भारत ज्वेलर्स के यहां लूटपाट में शामिल था, 1 सितंबर को उसके तीन साथियों का एनकाउंटर हो चुका था, 4 सितंबर को उसका सरगना विपिन खुद सरेंडर कर एनकाउंटर के डर से जेल चला गया था, तो फिर मंगेश यादव क्या घर पर बैठ कर एसटीएफ के आने का इंतज़ार कर रहा था? कायदे से तो लूट के माल के साथ उसे यूपी ही छोड़ देना चाहिए था। लेकिन वो घर पर बेफिक्र सो रहा था कि आओ और मुझे पकड़ लो।

यानी घरवालों की कहानी के हिसाब से दो सितंबर को जिस दिन मंगेश पर 50 हजार का इनाम रखा गया और चार सितंबर को जिस दिन इनाम डबल किया गया, उस वक्त मंगेश फरार नहीं बल्कि पहले एसटीएफ की नजरों में और फिर कब्जे में था। पर ये कहानी तो अब भी कुछ नहीं है। असली कहानी तो आगे है। एफआईआर के मुताबिक उन्हें पांच सितंबर की देर रात मुखबिर से खबर मिली थी कि भरत ज्वेलर्स के यहां लूटपाट में शामिल दो आरोपी लूट का माल बेचने के लिए एक खास रास्ते से गुजरेंगे। अब ये बात कैसे गले उतरे या उतारें कि रात तीन बजे लूट का माल लेकर कोई चोर का लुटेरा किस बाजार या सुनार के पास उसे बेचने जाता है? लेकिन एसटीएफ की कहानी यही है। इसके बाद कहानी के हिसाब से मंगेश यादव को रुकने के लिए कहा जाता है, वो गोली चलाता है, फिर बदले में गोली खाता है और मर जाता है, और हां, एसटीएफ के ज्यादातर मामलों की तरह तीन-तीन तरफ से घिरा होने के बावजूद मोटरसाइकिल पर सवार मंगेश यादव का साथी तब भी भाग निकलता है. अब जिस मंगेश य़ादव के पास से कभी चाकू तक नहीं मिला, उसके पास से हथियार भी मिल जाता है। और तो और बरामदगी में एसटीएफ अमेरिकन टूरिस्टर बैग के साथ-साथ वो ब्रांडेड कपड़े भी दिखा देती है, जो अपनी पूरी जिंदगी में कभी मंगेश यादव ने पहने ही नहीं थे।

अब आइए लूट से लेकर मंगेश यादव के एनकाउंटर तक की टाइमलाइन पर आते हैं. सुल्तानपुर के भरत ज्वेलर्स में जिस वक्त लूटपाट हुई तब 28 अगस्त की दोपहर के 12 बजकर 17 मिनट हो रहे थे. सीसीटीवी कैमरा यही वक्त बता रहा है. जबकि सुल्तानपुर से दूर जौनपुर में मंगेश यादव सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक अपनी बहन प्रिंसी के साथ उसके स्कूल में उसकी फीस जमा करने गया था. जिसकी गवाह खुद उसकी बहन प्रिंसी है.

मंगेश यादव का एनकाउंटर 5 सितंबर को तड़के सवा तीन से साढे तीन के दरम्यान हुआ. जबकि खुद घरवाले इस बात की गवाही दे रहे हैं कि सादी वर्दी में आई पुलिस उसे 2 और 3 सितंबर की देर रात पूछताछ के नाम पर घर से ले गए थे.. यानि एनकाउंटर से पहले से ही मंगेश यादव पुलिस या एसटीएफ के कब्जे में था.

एनकाउंटर के बाद जैसे ही घरवाले मीडिया के कैमरे पर आए 2 सितंबर की रात की कहानी बताई तभी से एसटीएफ की कहानी गड़बड़ा गई. लेकिन अभी इससे भी ज्यादा गड़बड़ एक और कहानी है. ये कहानी चार ऐसे लड़कों की है जो शायद मंगेश यादव का सच सामने आ जाने की वजह से अब तक जिंदा है. वर्ना बहुत मुमकिन था कि इनका भी एनकाउंटर अब तक हो चुका होता.

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक मंगेश यादव के साथ साथ एसटीएफ ने इसी लूटपाट के सिलसिले में चार और लड़कों को उठा रखा है. इनके नाम हैं विमल सिंह, विवेक सिंह, विनय शुक्ला और अनुज प्रताप सिंह. इनमें से विमल और विेवेक उसी विपिन सिंह के भाई हैं जिसे लूटपाट का मास्टरमांइड कहा जा रहा है. इनमें से विनय शुक्ला के परिवार वाले तो बकायदा कैमरे पर आकर उसे उठाने की गवाही भी दे रहे हैं.

प्लान के तहत एसटीएफ ने इन चारों को उठा तो लिया.. किसी एनकाउंटर के बाद शायद इनकी भी जिंदा या मुर्दा गिरफ्तारी भी दिखा देते. लेकिन तभी मंगेश यादव का एनकाउंटर सुर्खियों में आ गया. मंगेश के परिवार के दावों की वजह से एनकाउंटर पर सवाल उठने लगे. ऐसे में एसटीएफ का प्लान चौपट हो गया. सूत्रों के मुताबिक बदले हालात को देखते हुए पहले से ही कब्जे में मौजूद इन चारों की अब एसटीएफ सुल्तानपुर के ही किसी थाने में गिरफ्तारी दिखाना चाहती है. मगर पेंच ये फंस गया. कि लोकल पुलिस इन चारों को जमा करने यानि इनकी गिरफ्तारी दिखाने से पीछे हट गई. लोकल पुलिस का कहना है कि वो इसी शर्त पर इन चारों को जमा करेंगे यानि गिरफ्तार करेंगे जब ये गिरफ्तारी एसटीएफ की तरफ से दिखााई जाए.. लेकिन एसटीएफ इससे बचना चाहती है. क्योंकि घरवालों के सामने आजाने के बाद अब एसटीएफ के लिए ये जवाब देना मुश्किल हो जाएगा कि जब चारों को कई दिन पहले ही उठा लिया तो उनकी गिरफ्तारी अब क्यों दिखा रहे हैं.

चलते चलते उस मोटरसाइकिल का भी हालचाल ले लीजिए जिसपर भागते हुए मंगेश यादव का एनकाउंटर हुआ था. जौनपुर के जिस श्ख्स की ये मोटरसाइकिल 20 अगस्त को एक अस्पताल से चोरी हुई थी और जिसने 8 दिन बाद भरत ज्वेलर्स में डाका पड़ने के 8 घंटे बाद बाइक चोरी की पहली बार रपट लिखाई वो भी मीडिया से भाग रहा है. इस बाइक की चोरी के 8 दिन बाद और डाका पड़ने के 8 घंटे बाद लिखाई गई रपट का सच सामने आ गया तो एसटीएफ की सारी कहानी का सच अपने आप सामने आ जाएगा.

    follow google newsfollow whatsapp