Sanjeev Jeeva Murder: वो 15 अपैल की तारीख थी, यूपी पुलिस (up police) के 17 जवान अफसरों के घेरे में अतीक (Atiq Ashraf Murder) और उसका भाई अशरफ था. उन 17 पुलिसवालों की मौजूदगी में तीन हमलावर अचानक घेरे में घुस कर पुलिसवालों की नजरों के सामने अतीक और अशरफ पर अंधाधुंध गोलियां चलाते हैं. मौका ए वारदात पयागराज (prayagraj) का एक सरकारी अस्पताल था. इस हादसे के 52 दिन बाद 7 जून को फिर एक कत्ल होता है. इस बार भी तमाम पुलिसवाले मौजूद थे. फिर एक हमलावर उन्हीं पुलिसवालों की मौजूदगी में फिर से अंधाधुंध गोलियां चलाता है. 6 गोलियां खा कर यूपी का एक डॉन संजीव जीवा मारा जाता है. इस बार मौका ए वारदात लखनऊ की एक अदालत थी.
पहले अतीक को मारी गई गोली और अब 52 दिन बाद उम्रकैद की सजा काट रहा डॉन जीवा को भी ऐसे ही मारा गया
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09 Jun 2023 (अपडेटेड: Jun 9 2023 11:35 AM)
Sanjeev Jeeva Murder: 52 दिन पहले डॉन अतीक को गोली मारी गई और अब कोर्ट के अंदर डॉन जीवा को मारी गई गोली.
UP News Sanjeev Jeeva murder: ये दो तस्वीरें काफी हैं ये बताने के लिए कि यूपी में मुजरिमों के दिलों में यूपी पुलिस का कितना खौफ है. पुलिसवालों की भरी भीड के बीच और फिर भरी अदालत में बदमाश बेखौफ गोलियां बरसा रहे हैं और पुलिस बस तमाशा देख रही है. ये दोनों ही कहानी बहुत कुछ कहती है. बहुत सारे सवाल भी उठाती है. अतीक और अशरफ पर जिन तीन हमलावरों ने गोलियां बरसाईं उन तीनों का सच आज भी पर्दे में है. ठीक उसी तरह अब लखनऊ की कोर्ट में यूपी के एक बडे डॉन और मुख्तार अंसारी के खास गुर्गे संजीव जीवा को जिस लडके ने गोली मारी, उसका सच भी हैरान करता है. बीकॉम पास एक लडका जिसका जुर्म की दुनिया से कोई वास्ता नहीं, वो एक पेशेवर शूटर की तरह आता है और पांच-सात लाख महंगे पिस्टल से अपने शिकार के सीने में छह गोलियां उतार देता है. अतीक और अशरफ के हमलावरों के पास भी इसी तरह की लाखों रुपये की कीमत वाली पिस्टल थी. वहां भी तीनों ने हमले से पहले रेकी की। यहां भी हमलावर ने हमले से रेकी की। अतीक और अशरफ केस में तीनों हमलावर मीडिया के भेष में आए थे। यहां वो इकलौता हमलावर काला कोट पहन कर वकील के भेष में आया था। दोनों ही केस की ये समानताएं और भी सवाल उठाती हैं।
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2015 में गोमती नगर थाने में संजीव जीवा (Sanjeev Jeeva) के खिलाफ हत्या का एक मुकदमा दर्ज हुआ था। उसी केस के सिलसिले में 7 जून को जीवा की एससीएसटी कोर्ट में पेशी थी। हालांकि भाजपा विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी और हरिद्वार के एक बिजनेसमैन के कत्ल के इल्जाम में जीवा को पहले ही उम्र कैद की सज़ा मिल चुकी थी। लखनऊ जेल में वो ये सजा काट रहा था। पर इस अलग मुकदमे के लिए दोपहर बाद कोर्ट में उसकी पेशी थी। जेल के अंदर मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद जीवा की जान को भी खतरा था। क्योंकि वो बजरंगी का खास गुर्गा हुआ करता था। इसी खतरे को देखते हुए जीवा की पत्नी ने अदालत लाने ले जाने के दौरान उसकी सुरक्षा की गुहार लगाई थी। जिसके बाद जीवा को जब भी अदालत लाया जाता, बुलेटपूफ जैकेट में लाया जाता। लेकिन जीवा की पत्नी के मुताबिक पिछले दो पेशी में उसे बुलेटपूफ जैकेट नहीं दी गई थी।
Sanjeev Jeeva Murder in court: जीवा दोपहर से ही अदालत परिसर के अंदर बंदीगृह में था। शाम करीब चार बजे उसके मुकदमे की सुनवाई की बारी आई। इसी के बाद पुलिस की सुरक्षा में वो कोर्ट के बंदीगृह से निकल कर सीधे कोर्टरूम पहुंचा। जिस पल वो कोर्टरूम के अंदर दाखिल हुआ, ठीक उसी पल कोर्ट रूम में पहले से बैठे काले कोट वाले एक शख्स ने अचानक अपनी कमर से पिस्टल निकाली और जीवा की तरफ पिस्टल तान कर अंधाधुंध ट्रिगर दबाना शुरू कर दिया। ये सबकुछ इतना जल्दी हुआ कि कोर्टरूम में मौजूद पुलिसवाले और वकीलों को कुछ समझ ही नहीं आया। उल्टे कुछ पुलिसवाले तो उल्टे पैर ही भागने लगे। जीवा अब जमीन पर गिर चुका था। हमलावर अब भागना चाहता था। लेकिन तभी कुछ वकीलों और फिर बाद में कुछ पुलिसवालों ने हिम्मत दिखाई और हमलावर को दबोच लिया। इस गोलीबारी और हमलावर को पकड़ने के दौरान कुछ पुलिसवाले और एक बच्ची भी जख्मी हो गई।
उम्र कैद की सजा पाया जीवा कोर्ट रूम के अंदर दम तोड़ चुका था। अब हमलावर की जांच शुरू हुई। हमलावर की पहचान विजय यादव के तौर पर हुई। विजय एक वकील का भेष बना कर कोर्ट रूम तक पहुंचा था। जब विजय यादव की कुंडली खंगाली गई, तो पता चला कि वो जौनपुर का रहनेवाला है। बीकॉम पास कर रखा है। कुछ वक्त पहले तक मंबई में पानी का पाइप बनानेवाली एक कंपनी में नौकरी किया करता था। लेकिन फिर मार्च में घर लौट आया। अब वो लखनऊ में नौकरी ढूंढ रहा था। दस मई को एक रिश्तेदार की शादी के बाद 11 मई को ही वो लखनऊ चला गया था। उसके बाद से उसका अपने घरवालों से कोई संपर्क नहीं था। मोबाइल भी बंद था। पिता की जौनपुर में मिठाई की दुकान है। विजय यादव का क्रिमिनल रिकॉर्ड खंगालने पर पता चला कि उसके खिलाफ कुल दो मामले दर्ज थे। एक मामला एक नाबालिग लडकी को भगाने का था लेकिन बाद में लडकी के घरवालों ने ये केस वापस ले लिया था। दरअसल पता ये चला कि वो लडकी किसी और लडके के साथ भागी थी। ना कि विजय के साथ। हालांकि इस चक्कर में करीब छह महीने तक उसे आजमगढ़ जेल में रहना पडा था। उसके खिलाफ दूसरा मामला कोरोना के दौरान कोविड प्रोटोकॉल के नियमों के उल्लंघन का था।
Murder Case: यानी विजय यादव का कोई क्रिमिनल बैकग्राउंड नहीं है। किसी गैंगस्टर या माफिया से उसका संबंध नहीं है। जीवा को तो वो जानता तक नहीं। इसलिए दुश्मनी का सवाल पैदा नहीं होता। तो फिर सवाल ये है कि उसने जीवा को वो भी भरी अदालत में गोली क्यों मारी? जिस विजय यादव के पास मोबाइल रिचार्ज कराने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे, उसके पास पांच-सात लाख की महंगी पिस्टल कहां से आई? जाहिर है ये सवाल यही इशारा दे रहे हैं कि विजय यादव सिर्फ एक मोहरा भर है। पीछे खिलाडी कोई और है। ठीक उसी तरह जैसे अतीक और अशरफ के केस में हुआ था। ना उन तीनों का सच और ना उनके मकसद का पता अभी तक चल पाया है, ना ही विजय यादव का राज़ सामने आ सका है। दोनों ही केस में ये चारों बस मोहरा भर हैं। मास्टरमाइंड कौन है, कहां है, ये फिलहाल कोई बताने को तैयार नहीं। जिस संजीव जीवा को कोर्ट रूम के अंदर मारा गया, वो यूपी के टॉप क्रिमिनल की लिस्ट में 13वें नंबर पर था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसकी तूती बोला करती थी। मुजफ्फनरगर में पैदा हुआ जीवा बडा होकर डॉक्टर बनना चाहता था। घर की माली हालत ठीक नहीं होने की वजह से उसने कम उम्र में ही एक डॉक्टर की क्लीनिक पर कंपाउडर का भी काम किया था। लेकिन फिर एक रोज उसी डॉक्टर को कि़डनैप कर लिया। और बस यहीं से उसके जुर्म के सफर की शुरुआत हुई। लेकिन जीवा का नाम पहली बार तब सुर्खियों में आया,जब उसने बीजेपी विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या की। ब्रह्मदत्त द्विवेदी किस कद के नेता थे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हत्या के बाद अंतिम संस्कार में शामिल होनेके लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी भी वहां पहुंचे थे।
ब्रह्मदत्त की हत्या के बाद यूपी का हर बाहुबली जीवा को अपनी गैंग में शामिल करना चाहता था। लेकिन खुद जीवा मुन्ना बजरंगी का फैन था। वो मुन्ना के साथ हो गया। मुन्ना बजरंगी मुख्तार का फैन था। इस तरह बजरंगी से होते हुए जीवा मुख्तार तक पहुंचा। कहते हैं कि मुख्तार को हथियारों की सप्लाई भी जीवा ही किया करता था। बीजेपी के एक और विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में भी मुख्तार के साथ-साथ जीवा का भी नाम आया था। लेकिन जीवा इस केस में बरी हो गया था। हालांकि पुलिस सूत्रों के मुताबिक कृष्णानंद राय की हत्या के लिए हथियारों का इंतजाम जीवा ने ही किया था। कुछ वक्त पहले बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या और अब कोर्ट रूम में जीवा के कत्ल के बाद जाहिर है मुख्तार अंसारी गैंग और कमजोर हो गया है। जीवा के कत्ल की जांच के लिए एक स्पेशल टीम बनाई गई है। अब टीम को ये पता करना है कि जिस जीवा से दूर दूर तक विजय का कोई रिश्ता नहीं, उस विजय ने इतना जोखिम मोल लेकर भरी अदालत में उसे क्यों मारा? किसके इशारे पर मारा? पर क्या यूपी पुलिस इस सच को आम करेगी? क्योंकि करीब पौने दो महीने बाद भी अतीक अशरफ की हत्या में शामिल हमलावरों का सच वो अब तक पता नहीं लगा पाई।
Live in partner murder: देश में लिव इन पार्टनर्स को मौत के घाट उतारने का एक अजीब खौफनाक सिलसिला सा चल पड़ा है. तकरीबन हर बार ब्वॉयफेंड्स के साथ हाथों गर्लफेंड्स मारी जा रही हैं और हर वारदात में कातिल सबूत मिटाने के लिए मानों अपने पहले वाली वारदात के मुकाबले एक कदम आगे निकल जाता है.नई कहानी देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से है. जहां एक लिव इन पार्टनर ने ना सिर्फ खुद से तकरीबन आधी उम्र की अपनी गर्लफेंड को मौत के घाट उतार दिया, बल्कि लाश निपटाने के लिए कुछ ऐसा किया, जैसा बडे से बडा हैवान भी करने से पहले कांप जाएगा. मुंबई के नया नगर पुलिस स्टेशन पर इसी रोज़ इसी वक्त पर एक कॉल आती है. कॉल करनेवाला बताता है कि वो मीरा रोड के गीता आकाशदीप सोसायटी से बोल रहा है. और उसके पड़ोस के एक फ्लैट से पिछले कुछ दिनों से किसी चीज़ के सड़ने की तेज बदबू आ रही है. फोन करनेवाला बताता है कि उस मकान में एक जोड़ा रहता है, लेकिन उनकी आस-पड़ोस के लोगों से ज्यादा बातचीत नहीं होती. कॉल करनेवाले को सुन कर पहली ही बार में पुलिस को किसी अनहोनी का शक होने लगता है. और अगले चंद मिनटों में मुंबई पुलिस की एक टीम मीरा आकाशदीप सोसायटी की सातवीं मंजिल पर मौजूद फ्लैट नंबर 704 के बाहर खड़ी होती है.
आस पड़ोस के लोगों से पूछताछ करने पर पता चलता है कि ये मकान मनोज साने नाम के एक शख्स का है, जो सरकार के राशनिंग महकमे में काम करता है और यहां अपनी पार्टनर के साथ किराये पर रहता है. मनोज की उम्र करीब 56 साल की है और उनके साथ रहनेवाली उनकी पार्टनर सरस्वती वैद्य की उम्र 32 साल बताई जाती है. अब पड़ोसियों की मौजूदगी में पुलिस मनोज के दरवाजे पर पहुंचती है, लेकिन दरवाजा बंद मिलता है. पड़ोसी बताते हैं कि पुलिस के आने से पहले जब उन्होंने मनोज के घर से आती तेज बदबू के बारे में उससे पूछताछ की थी, तो उसने इसकी वजह गटर जाम होने को बताया था. ऐसे में पड़ोसियों की मौजूदगी में आखिरकार पुलिसवाले मनोज के घर का दरवाजा तोड देते हैं. और इसी के साथ दरवाजे के बाहर खडे सारे लोग हक्के बक्के रह जाते हैं. दरवाजा खुलते ही मनोज के घर से बदबू का तेज भभका सा आता है.
Vardaat full story: अपने घर में पुलिस के होने की बात से बेखबर मनोज जब कुछ देर बाद वहां पहुंचता है, तो पुलिस को देखते ही भागने लगता है, लेकिन आस-पास के लोगों की मदद से आखिरकार उसे पकड़ लिया जाता है. मनोज की घिग्गी बंध जाती है. वो पुलिस को घुमाने की कोशिश करता है, लेकिन जल्द ही हथियार डाल देता है और बताता है कि उसकी लिव इन पार्टनर सरस्वती की मौत हो गई है और ये बदबू उसकी की लाश की है. यानी पुलिस और पड़ोसियों का शक बिल्कुल सही निकलता है. अब तक पुलिस पूरे घर की तलाशी ले चुकी थी. और घर की हालत ऐसी थी, जिसे देख कर पुलिसवालों की हालत भी गश खाकर गिरने जैसी हुई. पुलिस को मनोज के घर के किचन में तीन बाल्टियों में इंसानी मांस के टुकडे भरे हुए मिलते हैं. खून में डूबे हुए टुकडे. इसके साथ ही एक महिला के सिर के बाल बेडरूम में रखे हुए मिलते हैं. जबकि घर में अलग-अलग जगहों पर तीन चेनशॉ यानी लकडी काटनेवाली आरी, काले रंग की कई पॉलीथिन और ढेर सारे रूम फेशनर और ऐसी ही दूसरी चीजें रखी हुई मिलती हैं.
अब पुलिस फौरन सख्ती पर उतर आती है. मनोज से पूछताछ शुरू हो जाती है और वो बताता है कि ये लाश उसकी लिव इन पार्टनर सरस्वती वैद्य की है. जिसने कुछ रोज पहले खुदकुशी कर ली थी, जिसके बाद उसकी लाश को ठिकाने लगाने के लिए मनोज ने उसके टुकडे कर दिए. लेकिन ये तो सिर्फ वो कहानी है जो अब तक पुलिस ने देखी है. मनोज जब इसके आगे की बात बताता है तो पुलिसवालों के लिए भी अपने कानों पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है. मनोज के मुताबिक उसने सरस्वती की हत्या कोई तीन से चार रोज पहले की थी, जिसके बाद उसने उसकी लाश को ठिकाने लगाने के लिए ना सिर्फ उसके कई टुकडे किए, बल्कि इन टुकडों को वो एक-एक कर पेशर कुकर में उबालने लगा, ताकि वो सड़ने की जगह पक जाएं और उन्हें पिजर्व करना आसान हो. इसी के साथ वो कुछ टुकड़ों को अपनी कॉलोनी के आस-पास के आवारा कुत्तों को खिला दिया करता था, ताकि टुकडे ठिकाने भी लग जाएं और किसी को पता भी ना चले. आरोपी मनोज ने शुरुआती पूछताछ में कत्ल की बात से इनकार किया है और कहा है कि उसकी पार्टनर सरस्वती ने खुदकुशी की कर ली थी. शुरुआती छानबीन के बाद पुलिस बताती है कि मनोज ने अपनी लिव इन पार्टनर की लाश के कम से कम 20 टुकडे किए, जिनमें से कई टुकडे फिलहाल लापता हैं.पुलिस की पूछताछ में ये भी पता चलता है कि आरोपी ने लाश के कुछ टुकडे उनके घर के पास से गुजरनेवाले मीरा भायंदर रेलवे टैक के आस-पास फेंक दिए थे. जबकि कुछ नालियों में ठिकाने लगा दिए.
आरोपी मनोज साने के पास आईटीआई की डिग्री है. यानी वो पढ़ा लिखा है. वो पहले बोरीवली की एक राशन दुकान में काम करता था. उसका घर भी बोरीवली में ही है, जहां उसके कुछ रिश्तेदार भी रहते हैं. जबकि मनोज की लिव इन पार्टनर रही सरस्वती वैद्य अनाथ थी और मनोज के पास आने से पहले अनाथालय में ही रहती थी. 2014 में राशन दुकान में ही सरस्वती की मनोज से मुलाकात हुई, जिसके बाद दोनों साथ रहने लगे. फिलहाल पुलिस ने आरोपी को 14 दिनों के लिए रिमांड पर लिया है. पुलिस उससे सरस्वती की मौत का सच जानना चाहती है... सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि अगर सरस्वती ने खुदकुशी की, तो मनोज ने इतने वीभत्स तरीके से उसकी लाश ठिकाने लगाने की कोशिश क्यों की?
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