ओडिशा में ट्रेन हादसे के पीछे ये है गहरी साजिश, इस सच्चाई को तलाशने में जुटी CBI

06 Jun 2023 (अपडेटेड: Jun 6 2023 7:50 PM)

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Train Accident CBI : ओडिशा ट्रेन हादसे की सीबीआई ने जांच शुरू कर दी है. आखिर कोरोमंडल एक्सप्रेस समेत 3 ट्रेनों की टक्कर कैसे हुई. जानते Shams Tahir Khan की इस रिपोर्ट से.

Odisha Train Accident : ओडिशा में तीन ट्रेनों की बीच हुई टक्कर को इस सदी का सबसे बड़ा रेल हादसा माना जा रहा है. लेकिन सवाल ये है कि क्या ये महज एक हादसा है? या फिर इंसानी गलती है? या उन मशीनों की बेवफाई है जो हम इंसानों के कंट्रोल से चलती हैं. या फिर कोई साजिश? इस हादसे में 288 लोगों की जान लेने वाले रेल हादसे की जांच अगर खुद रेल मंत्रालय और भारत सरकार रेलवे एक्सपर्ट्स की बजाय CBI जैसी एजेंसी को दी गई है तो जााहिर है इसमें बड़ी साजिश तो जरूर है. लेकिन वो साजिश क्या है. करीब 300 लोगों की अचानक एक झटके में जान लेने की पीछे आखिर क्या सच्चाई है. 

Odisha Train Accident Inside Story 


2 जून की शाम कैसे हुआ था हादसा

 

Odisha Train Accident Inside Story : 2 जून की शाम जब ये हादसा हुआ, उस वक्त इस स्टेशन के दोनों लूप लाइन पर दो मालगाड़ी खड़ी थी। हावड़ा से आनेवाले कोरोमंडल एक्सपेस के ड्राइवर को ग्रीन सिग्नल मिल चुका था। इसका मतलब ये हुआ कि उसे मेन लाइन पर सीधे जाना था। लेकिन कोरोमंडल अचानक लूप लाइन पर पहुंच गई। जहां पहले से ही मालगाड़ी खड़ी थी। जिसमें लोहे ऱखे हुए थे। रेलवे बोर्ड के मुताबिक कोरोमंडल के ड्राइवर की कोई गलती नहीं थी। हादसे के बाद बेहोश होने से पहले कोरोमंडल के ड्राइवर ने जो आखिरी लाइन कही थी, वो यही थी कि सिग्नल ग्रीन था। इसके बाद ड्राइवर बेहोश हो गया और फिर बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गई। इस रूट पर टेन की अधिकम स्पीड 130 किमी है। शुरुआती जांच के बाद पता चला है कि हादसे के वक्त कोरोमंडल टेन की स्पीड 128 किमी थी। यानी ड्राइवर तेज गति से गाड़ी नहीं चला रहा था। तो फिर सवाल ये है कि हादसा हुआ कैसे? कोरोमंडल मेन लाइन से हट कर लूप लाइन पर पहुंची कैसे? तो पहले हादसा कैसे हुआ वो समझ लेते हैं। 

तो मतलब ये हुआ कि सबसे पहले कोरोमंडल मेन लाइन से लूप लाइन पर आई। लूप लाइन पर मालगाड़ी से टकराई। टक्कर के बाद कुछ डब्बे दूसरी मेन लाइन की तरफ जा गिरे। इसी बीच कुछ सेकेंड बाद दूसरी मेनलाइन से यशवंतपुर हावड़ा एक्सपेस गुजर रही थी और वो कोरोमंडल से अलग हुए डब्बों से जा टकराई। खास कर पिछली दो बोगी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। तो हादसे की बात तो साफ हो गई। अब सवाल ये है कि कोरोमंडल को लूप लाइन पर किसने भेजा? ये किसकी गलती है? किस पटरी पर कौन सी टेन कब दौडेगी इसका फैसला कोन करता है? इसको कंट्रोल कौन करता है? तो चलिए अब इसे भी समझने की कोशिश करते हैं। 

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रेलवे ट्रैक कैसे बदलता है, आसानी से समझिए


सबसे पहले रेलवे ट्रैक को समझते हैं। इसे रेलवे लाइन या रेल की पटरी भी कहते हैं। आम तौर पर मेन लाइन सिर्फ दो होती है। रेलवे की जुबान में इन दोनों पटरियों को अप और डाउन भी कहते हैं। यानी एक तरफ जाने वाली और एक तरफ आनेवाली। इन दोनों के बीच में एक खाली जगह होती है। इसे और आसानी से समझना हो तो यूं समझिए कि जैसे कोई हाई वे है। हाई वे पर भी अप और डाउन की तरह आने और जाने की दो सड़कें होती हैं। जबकि बीच में डिवाइडर होता है।  सड़कों पर टैफिक को कंट्रोल करने के लिए ट्रैफिक लाइट होती है। ये लाइट अमूमन किसी चौराहे, जंक्शन, प्वाइंट या कट पर होती है। लाल बत्ती मतलब टैफिक का रुक जाना। 

ग्रीन मतलब टैफिक का आगे बढ़ना और येलो मतलब गाड़ी की रफ्तार कम कर देना। ठीक ऐसा ही टेन के साथ है। टेन का रुट पहले से तय होता है। लेकिन एक ही पटरी पर एक साथ एक ही दिशा में कई टेनें चलती हैं। लेकिन उन तमाम टेनों के बीच एक खास दूरी होती है। ताकि टेन एक दूसरे से टकरा ना जाए। जिस तरह रोड पर टैफिक लाइट होती है, ठीक वैसे ही रेलवे टैक के दोनों किनारे पर सिग्नल होता है। ये सिग्नल भी रेड ग्रीन और येलो इशारा करता है। रेड सिग्नल मतलब गाडी का रुक जाना, ग्रीन मतलब गाड़ी का पास होना और येलो मतलब गाड़ी की रफ्तार कम कर देना। ये सिग्नल ड्राइवर के कंट्रोल में नहीं होता। बल्कि स्टेशन मास्टर के कंटोल में होता है। स्टेशन मास्टर पटरियों पर गाडियों की तादाद को देखते हुए उसी हिसाब से रेड ग्रीन या येलो सिग्नल लेता है। अमूमन रेलवे टैक पर हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक सिग्नल होता है। 

रेलवे ट्रैक पर मेन लाइन के अलावा लूप लाइन भी होती है। अमूमन ये लूप लाइन हर स्टेशन के करीब होती है। यूं समझ लीजिए जैसे मेन रोड के किनारे कई जगहों पर सर्विस लेन होती है। ठीक वैसे ही लूप लाइन होती है। लूप लाइन का इस्तेमाल गाडियों की दिशा बदलने, किसी गाड़ी को रोक कर दूसरी गाड़ी को आगे जाने देने या फिर अमूमन मालगाड़ी को रोकने के लिए किया जाता है। अब सवाल ये है कि कोरोमंडल एक्सपेस जिसको मेन लाइन से ही होकर गुजरना था, वो लूप लाइन पर कैसे पहुंची? और इसी एक सवाल में सदी के इस सबसे बडे रेल हादसे का पूरा सच छुपा है। तो सच जानने से पहले ये जानना जरूरी है कि किसी टेन या मालगाड़ी को मेन लाइन से लूप लाइन या लूप लाइन से मेन लाइन पर भेजने या फिर किसी गाडी को रेड ग्रीन या येलो सिग्नल देने का काम करता कौन है? 

Odisha Train Accident Inside Story 



अब लाइन बदलने से लेकर सिग्नल तक कंप्यूटराइज्ड है



जब से नई टेक्नोलॉजी आई है, तब से रेलवे ने भी काफी तरक्की की है। अब लाइन बदलने से लेकर सिग्नल तक का काम पूरी तरह से कंप्यूटराइज्ड हो चुका है। देश भर में फैले लगभग एक लाख बीस हजार किलोमीटर की रेलवे टैक पर बिजली का एक वायर लगा होता है, इस वायर में करंट तो होता है, लेकिन बेहद कम वोल्टेज का। इसी वायर के जरिए देश के लगभग हर स्टेशन पर स्टेशन मास्टर को ये पता चलता है कि उस वक्त एक खास दूरी पर पटरी पर कुल कितनी टेनें हैं। उन टेनों के बीच कितना गैप है। ये सबकुछ स्टेशन मास्टर अपने कंप्यूटर पर लाइव देख रहा होता है। इसके लिए एक वक्त में कम से कम दो कर्मचारी कंप्यूटर के सामने मौजूद रहते हैं। पटरियों के नीचे लगे इसी वायर के जरिए टेन को जिस तरह कंटोल किया जाता है, उसे इलेक्टॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम या फिर इले. इंटरलॉकिंग लॉजिक कहते हैं। 

ये वो सिस्टम है जो फेल होने के बावजूद काम करता है। मसलन, अगर एक ही पटरी पर गलती से दो टेनें आमने-सामने से आ रही हों, या एक ही पटरी पर आगे पीछे दो टेनें बेहद नजदीक से दौड़ रही हों, तो ये सिस्टम उसे पकड़ लेता है और फौरन सिग्नल से लेकर बाकी स्टाफ को वक्त रहते आगाह कर देता है। अगर मान ले कि सिस्टम की चेतावनी के बावजूद कर्मचारी उस पर ध्यान नहीं देते, तो भी हादसा नहीं हो सकता। क्योंकि ऐसी किसी भी गलती को पकडने के साथ-साथ इले. इंटरलॉकिंग सिस्टम फौरन सिग्नल रेड करता है। इतना ही नहीं वो गाड़ी की रफ्तार भी रोक देता है। 

हादसे के बाद की अब तक की तफ्तीश के मुताबिक कोरोेमंडल टेन के डाइवर की कोई गलती नहीं थी। उसे आखिरी बार सिग्नल ग्रीन मिला था। वो निर्धारित अधिकतम 130 किमी की रफ्तार से कम 128 किमी की गति पर ही टेन चला रहा था। दूसरी तरफ मालगाड़ी की भी कोई गलती नहीं थी। वो पहले से ही लूप लाइ पर खडी थी, ताकि कोरोमंडल को रास्ता दे सके। जबकि यशवंतपुर हावडा एक्सपेस की डाइवर की तो कोई गलती ही नहीं थी। तो फिर गलती किसकी थी? और यहीं पर एक सवाल खुद रेल मंत्री उठा रहे हैं। और वो ये कि बहुत मुमकिन है कि किसी ने जानबूझ कर इले. इंटरलॉकिंग सिस्टम के साथ छेडछाड की है। पर वो कौन है? जाहिर है अगर सचमुच सिस्टम से छेडछाड की गई है, तो वो कोई बाहरी शख्स नहीं हो सकता। ये किसी सिस्टम को अंदर से जाननेवाले जानकार का ही काम हो सकता है। लेकिन वो ऐसा क्यों करेगा? दो सुपरफास्ट एक्सपेस और एक मालगाड़ी की टक्कर के बाद रेलवे टैक तक उखड चुकी है। पूरा एरिया लगभग बर्बाद हो गया है। अगर हादसे वाली जगह पर ही इले. इंटरलॉकिंग सिस्टम के साथ छेडछाड की गई, या यूं कहें कि हादसे वाली जगह पर ही पटरियों से इस सिस्टम से जुड़े वायर के साथ छेडछाड की गई, तो उसका पता लगाना फिलहाल मुश्किल है। क्योंकि मौका ए वारदात पर सबकुछ तहस नहस हो चुका है। लिहाजा, रेल मंत्रालय अब फॉरेंसिक जांच के जरिए ही ये पता लगाने की कोशिश कर रहा है कि क्या रेलवे टैक के वायर से जानबूझ कर छे़ड़छाड़ की गई?


 

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