बंदूक और बारूद के दम पर तालिबान ने काबुल तो जीता लेकिन तालिबान अफगानिस्तान की आवाम का दिल नहीं जीत पाया. तालिबान ने अफगानिस्तान में सरकार बनाने से पहले जो वादे किए थे अब ठीक उसके उलट काम कर रहा है. जिसकी वजह से अफगानियों में तालिबान को लेकर डर बना हुआ है. यानी अफगानिस्तान की हुकूमत और हालात दोनों बदल गए, न तो अब पहले जैसी 20 साल वाली आजादी है और न ही खुली हवा में सांस लेने की मोहलत.
बंदूक और बारूद के दम पर तालिबान ने काबुल तो जीता, लेकिन तालिबान अफ़ग़ानिस्तान की आवाम का दिल नहीं जीत पाया
WOMEN PROTEST AGAINST TALIBAN
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21 Sep 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:05 PM)
महिलाएं वैसे ही तालिबान के खौफ के साए में जी रही हैं. उनके अधिकारों को कुचल जा रहा है. उन्हें स्कूलों में पढ़ने नहीं दिया जा रहा और दफ्तरों में काम करने से रोका भी जा रहा है. हालांकि अफगानिस्तान का तालिबान वाला नासूर अब पाकिस्तान में भी दस्तक देने लगा है. पाकिस्तान में राजनीतिक दलों की कट्टरवादी सोच से लोगों का मोह भंग होता जा रहा है. तालिबानी सोच वाले इमरान खान का जनता विरोध कर रही है. हालांकि जनता के विरोध के बावजूद पाकिस्तान में शरिया कानून लागू करने पर जोर दिया जा रहा है और तालिबान की तर्ज पर सरकार बनाने के सुर भी उठने लगे हैं. लेकिन अगर ऐसा होता है तो ये पाकिस्तान के पतन की शुरुआत होगी.
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शरियत का कानून लागू होने की आशंका से ही पाकिस्तान की जनता इमरान के खिलाफ हो गई है.
क्या है शरियत कानून ?
दरअसल शरियत कानून को कुरान और इस्लामी विद्वानों के फैसलों यानी फतवों को मिलाकर तैयार किया गया है.
मुसलमान के दैनिक जीवन के हर पहलू, यानी उसे कब क्या करना है और क्या नहीं करना है.ये शरियत कानून तय करता है.
और अफगानिस्तान में तालिबान ने शरिया कानून की आड़ में महिलाओं को न पढ़ने, न नौकरी करने जैसे कानून बनाए थे.
जिसमें महिलाओं को पूरा शरीर ढ़ककर रखने का कानून भी शामिल है.
वहीं चोरी जैसे अपराधों पर पत्थर से मारने जैसी सजाएं शामिल हैं.
हांलाकि संयुक्त राष्ट्र संघ के विरोध के बाद इस सजा पर पाबंदी लगा दी गई है. और अगर पाकिस्तान भी शरियत की राह पर चल निकलेगा तो वहां भी अफगानिस्तान जैसे ही हालात होंगे.
पाकिस्तान की हुकूमत भी इस्लाम और कट्टरवाद के खिलाफ आवाज बुलंद करेगी. हालांकि अभी भले ही पाकिस्तानी हुकूमत और सेना तालिबानी सरकार बनने पर उछल रही है लेकिन उनका ये दांव उल्टा भी पड़ सकता है. क्योंकि तालिबानी सोच से आतंकी संगठन अपना दायरा बढ़ाएंगे. जिससे आम नागरिकों पर तहरीके तालिबान के हमले की आशंका भी बढ़ेगी. आतंकिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथ किस हद तक पहुंच गया है. इसका सबूत खुद इमरान खान दे चुके हैं. हाल ही में इमरान खान ने महिलाओं के कपड़ों को लेकर दकियानूसी बयान दिया था. महिला उत्पीड़न को कपड़ों से जोड़कर इमरान ने शरियत के चश्मे से देखा था. जिसका पाकिस्तान की जनता और मानवाधिकार आयोग ने भी विरोध किया था. मानवाधिकार ने इमरान खान को लताड़ लगाते हुए कहा था कि इमरान सरकार पाकिस्तान के तालिबानीकरण का समर्थन कर रही है. मतलब साफ है कि अगर इमरान खान ने तालिबान के आगे सिर झुकाया तो पाकिस्तान की जनता इमरान को जमीन से उखाड़ फेंकेगी.
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