पश्तो ज़ुबान में तालिब का मतलब होता है स्टूडेंट, और छात्रों के संगठन को तालिबान कहते हैं, तालिबान की शुरुआत भी स्टूडेंट मूवमेंट के तौर पर ही हुई थी। हां ये ज़रूर है कि ये छात्र वो छात्र हैं जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा में यकीन रखते हैं, इस्लामिक विचारधारा और इस्लामित कट्टरपंथ की विचारधारा में जिस लफ्ज़ का अंतर है, वो है कट्टरपंथ।
रेप करने पर लिंग काट देता है तालिबान अफ़गानिस्तान पर कैसे काबिज़ हुआ तालिबान?
what is taliban and why it was formed know all about it
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20 Jul 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:01 PM)
जहां भी कट्टर लफ्ज़ जुड़ जाता है, मुसीबत वहीं से शुरु होती है। आने लोगों को कहते सुना होगा कि मैं कट्टर मुस्लिम हूं, कट्टर हिंदू हूं या कट्टर ईसाई हूं। कट्टर शब्द के किसी के साथ जुड़ जाने से एक ज़िद की शुरुआत होती है। वो ज़िद ये कि मैं ही सही हूं बाकी सब गलत हैं.. और यही अफगानिस्तान के इस स्टूडेंट मूवमेंट के साथ हुआ, जिसका नाम है तालिबान।
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तालिबान दरअसल सुन्नी इस्लामिक आंदोलन था जिसकी शुरुआत सन् 1994 में दक्षिणी अफगानिस्तान में हुई थी। तालिबान को एक राजनीतिक आंदोलन के तौर पर माना गया जिसकी सदस्यता पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को मिलती है, साल 1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दौरान मुल्ला उमर इसका सुप्रीम लीडर था। मुल्ला उमर ने खुद को हेड ऑफ सुप्रीम काउंसिल घोषित कर रखा था।
तालिबान वो आंदोलन था जिसे पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने ही मान्यता दी थी, जानकार मानते हैं कि आज अगर अफगानिस्तान इतना पिछड़ा है तो इसकी वजह सिर्फ तालिबान है। तालिबान को अफगानिस्तान और उसके आसपास के इलाकों के लिए ना सिर्फ जान-माल के लिए बल्कि तरक्की के लिए भी बड़ा खतरा माना जाता है। तालेबान से पाकिस्तान की स्थिरता को भी ख़तरा है जहां उत्तर-पूर्व के इलाक़ों में तालेबान का दबदबा है।
90 के दशक जब सोवियत संघ के सेनाएं अफगानिस्तान से वापस जा रही थीं तब उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान और ज्यादा ताकतवर हुआ, कहते हैं कि तालिबान सबसे पहले धार्मिक आयोजनों और मदरसों के जरिए मजबूत होता गया और इसका ज्यादातर पैसा सऊदी अरब से आता था। शुरु शुरु में अफगानी लोगों ने तालिबान का स्वागत किया, क्योंकि उसने अफगानिस्तान में मौजूद भ्रष्टाचार को काबू में किया था और अव्यवस्था पर नियंत्रण लगाया था।
दक्षिण-पश्चिम अफ़ग़ानिस्तान से तालेबान ने जल्द ही अपना प्रभाव बढ़ाया, सितंबर 1995 में तालिबान ने ईरान सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्ज़ा कर लिया। इसके एक साल बाद तालेबान ने बुरहानुद्दीन रब्बानी सरकार को सत्ता से हटाकर अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर क़ब्ज़ा किया। 1998 आते-आते लगभग 90 फ़ीसदी अफ़ग़ानिस्तान पर तालेबान का नियंत्रण हो गया था।
सत्ता में आते ही तालिबान ने अपनी कट्टरता फैलानी शुरु की और आज आलम ये है कि उनके नाम से भी डर और दहशत में आ जाते हैं अफगानिस्तान के लोग। अफगानिस्तान में तालिबान ने या तो इस्लामिक कानून के तहत सजा लागू करवाई या खुद ही लागू की, जैसे हत्या के दोषियों को सबके सामने फांसी देना और चोरी के दोषियों के हाथ-पैर काट डालना।
तालिबान ने पुरुषों को दाढ़ी रखने का फरमान जारी किया और महिलाओं को बुर्का पहनने के लिए मजबूर किया, इसके अलावा टीवी, सिनेमा और संगीत के लिए भी सख्ती बरती गई। 10 साल से ज्यादा की उम्र वाली लड़कियों के स्कूल जाने पर भी रोक लगाई गई।
धीरे-धीरे तालेबान पर मानवाधिकार उल्लंघन और सांस्कृतिक दुर्व्यवहार के आरोप लगे, जैसे 2001 में अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बावजूद तालेबान ने विश्व प्रसिद्ध बामियान बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट कर दिया।
जब अमेरिका में साल 2001 में आतंकी हमला हुआ तो सारी दुनिया का ध्यान पहली बार तालिबान की तरफ गया, अफगानिस्तान की तरफ से तालिबान को अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन और आतंकी संगठन को पनाह देने का दोषी ठहराया गया। सात अक्टूबर 2001 को अमेरिकी सेनाओं ने अफगानिस्तान पर हमला बोल दिया, कुछ वक्त बाद ही अमेरिका ने तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया।
पाकिस्तान हमेशा इस बात से इनकार करता रहा है कि तालिबान के बनने के पीछे वो जिम्मेदार है लेकिन ये बात भी उतनी ही सच है कि तालिबान के शुरुआती लड़ाकों ने पाकिस्तान के मदरसों में ही शिक्षा ली। 90 के दशक से लेकर 2001 तक जब तालिबान अफगानिस्तान में सत्ता में था तो सिर्फ 3 देशों ने उसे मान्यता दी थी। पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब. तालिबान के साथ कूटनीतिक संबंध तोड़ने वाला पाकिस्तान आखिरी देश था।
पिछले कुछ वक्त से जब ये सुगबुगाहट शुरु हुई कि अमेरिकी फौजें अफगानिस्तान छोड़ने वाली हैं, तब से तालेबान फिर हरकत में आया और अपना दबदबा बढ़ाना शुरु किया और अब एक बार फिर वो अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज़ होने के लिए तैयारी कर रहा है।
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