ये तस्वीरें अपने-आप में ये बताने के लिए काफ़ी है कि अफ़ग़ानिस्तान को लेकर तालिबान जो दावा कर रहा है, उस पर पूरी तरह यकीन करना ठीक नहीं. तालिबान को ना सिर्फ़ राजधानी काबुल में लोगों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि अब तो पंजशीर पर क़ब्ज़े की कोशिश का दांव ऐसा उल्टा पड़ा है कि उससे कुछ बोलते भी नहीं बन रहा. जिस तालिबान की दावत पर दोस्त पाकिस्तान ने पंजशीर के लड़ाकों पर कथित तौर पर ड्रोन और फाइटर जेट्स से हमले किए, चौबीस घंटे गुज़रते-गुज़रते उसी आसमानी रास्ते से तालिबान को उसके किए का मुंह तोड़ जवाब मिल गया. इस बार भी रात के अंधेरे में पंजशीर के आसमान से आग बरसी. लेकिन फ़र्क बस इतना था कि ये आग पंजशीर के लड़ाकों पर नहीं, बल्कि तालिबान के उन आतंकियों पर बरसी, जो पंजशीर की आज़ादी छिन लेना चाहते थे. हद तो ये रही कि अबकी आसमान से फाइटर जेट्स तालिबान को निशाना बना कर अंधेरे में गायब भी हो गए और किसी को पता भी नहीं चला कि ये हमला किसने किया?
जंग अभी बाकी है! आखिरी किला फतह करना तालिबान के लिए इतना आसान नहीं
War is not over in panjsheer
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07 Sep 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:04 PM)
सोमवार देर रात पंजशीर में तालिबान के ठिकानों पर जबरदस्त हवाई हमले हुए. इन हमलों में तालिबान को भारी नुकसान की खबर है.ये हमले किस देश के लड़ाकू विमानों ने किए, ये तो अभी साफ़ नहीं है लेकिन इन हमलों में बड़ी तादाद में तालिबानी लड़ाकों के ढेर होने की बात ज़रूर सामने आई है. तालिबानियों के इस नुकसान को लेकर कई देसी-विदेशी पत्रकारों और एजेंसियों ने दावा किया है. पत्रकार तजुदेन सोरौश ने पंजशीर के डिप्टी गवर्नर के हवाले से दावा किया है कि पंजशीर और अंदराब घाटी में अब भी तालिबान और लोकल लोगों के बीच जबरदस्त जंग चल रही है और इस जंग में बड़ी तादाद में तालिबानियों के मारे जाने की खबर है.
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ज़ाहिर है अब जब ये साफ़ ही नहीं है कि ये हमले किस देश के लड़ाकू विमानों ने किए, इसे लेकर कयासबाज़ी का सिलसिला भी शुरू हो गया है. सऊदी में रह रहे पत्रकार पत्रकार मुहम्मद अल सुलमानी ने अपनी ट्वीट सवाल खड़ा किया है कि आख़िर इस हमले के पीछे कौन है? ताजिकिस्तान या फिर रूस?
ताजिकिस्तान पर शक करने की एक मज़बूत वजह भी है. ताजिकिस्तान नॉर्दर्न एलायंस और तालिबान विरोधी गुटों का साथ देता आया है. अभी दो दिन पहले भी जब तालिबान ने पंजशीर पर क़ब्ज़े का दावा किया था, तो ये खबर आई थी कि नेशनल रसिसटेंस फ्रंट के नेता और देश के पूर्व उप राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने ताजिकिस्तान में जाकर शरण ली है. इससे पहले भी जब तालिबान अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़ा कर रहा था, तो बहुत से अफ़ग़ानी फ़ौजी और फाइटर पायलट ने भी ताजिकिस्तान में जाकर शरण ली थी. ऐसे में ताजिकिस्तान की पंजशीर के लोगों या फिर आम अफ़ग़ानियों से हमदर्दी की बात भी साफ़ हो जाती है और इसीलिए ये शक जताया जा रहा है कि शायद इस बार तालिबान और पाकिस्तान के किए का बदला लेने के लिए ताजिकिस्तान ने ही पंजशीर में तालिबान को निशाना बनाया है. बहुत मुमकिन है कि इस ऑपरेशन को खुद अफ़ग़ानिस्तान के फाइटर पायलट्स ने ही अंजाम दिया हो, बस ताजिकिस्तान ने उन्हें फेसिलिटेट किया हो यानी उनकी मदद की हो.
ताजिकिस्तान के अलावा शक की सुई रूस और ईरान की तरफ़ भी है. ताजिकिस्तान को रूस का बेहद भरोसेमंद माना जाता है, ऐसे में कुछ जानकारों को शक है कि शायद रूस के ईशारे पर ही ताजिकिस्तान ने तालिबान पर कार्रवाई की हो या फिर खुद रूस ने ही पंजशीर के लड़ाकों यानी नेशनल रेसिसटेंस फ्रंट के साथ तालिबान की जंग में फ्रंट का साथ दिया हो. उधर, ईरान पर शक करने की वजह ये है कि हाल ही में नॉर्दर्न एलायंस के लड़ाकों पर पाकिस्तान की तरफ़ से किए गए हमले को ईरान ने गलत बताया था और कहा था कि पाकिस्तान को अपनी हद में रहना चाहिए. ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद खतीब जादेह के हवाले से तेहरान टाइम्स ने तो ये भी ख़बर दी कि ईरान अभी अफ़गानिस्तान में पाकिस्तान के हस्तक्षेप की जांच कर रहा है. ज़ाहिर है पाकिस्तान के रवैये से ईरान खासा नाराज़ है.
वैसे रात के अंधेरे में तालिबान पर हुए इस हवाई हमले की टाइमिंग में भी अपने-आप में एक बड़ा संदेश छुपा है. ये हमला तब हआ है, जब पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी आईएसआई के चीफ़ फैज़ हामिद तालिबान से मिलने काबुल में मौजूद हैं और इसी दौरान ना सिर्फ़ अफ़ग़ान की आम आवाम तालिबान और पाकिस्तान के खिलाफ़ सड़कों पर उतर आती है, बल्कि तालिबान पर रात को हवाई हमला होता है. दरअसल, ये हमला तालिबान और पाकिस्तान को एक साथ दिया गया संदेश है.
हालांकि इंटरनेशनल मैसेज से अलग अफ़ग़ानिस्तान में हो जो कुछ हो रहा है, वो भी तालिबान को बेचैन करने के काफ़ी हैं. पिछले चौबीस घंटों से दिन और रात लगातार काबुल की सड़कों पर लोग तालिबान और पाकिस्तान के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं और इनमें बड़ी तादाद महिलाओं और बच्चों की हैं. लेकिन लोकतांत्रिक तरीक़े से अपनी बात रखने की कोशिश कर रहे आम लोगों को तालिबान किस तरह गोलियों से डराने की कोशिश कर रहा है, ये तस्वीरें उसकी गवाह हैं. मंगलवार को भी काबुल में लोगों के विरोध प्रदर्शन के दौरान तालिबानी आतंकियों ने अंधाधुंध फ़ायरिंग कर अपनी जहालत का सबूत दिया.
लेकिन अब तक बढ़ चढ़ कर बयानबाज़ी करनेवाले तालिबानी प्रवक्ताओं को मानों पंजशीर में हुए हवाई हमले के बाद सांप सूंघ गया है. तालिबान ने हवाई हमलों की खबरों पर चुप्पी साध ली है. उधर, नॉर्दर्न एलायंस के मुखिया और नेशनल रेसिसटेंस फ्रंट से जुड़े अहमद मसूद ने पंजशीर पर तालिबानी क़ब्ज़े के दावे को एक बार फिर झुठलाया है और कहा है कि तालिबान से उनकी जंग ख़ून के आख़िरी क़तरे तक जारी रहेगी.
काबुल में तालिबान के विरोध की वजह सिर्फ पाकिस्तान से उसकी दोस्ती नहीं, बल्कि महिलाओं के खिलाफ़ लागू की जा रही उसकी बंदिशें भी हैं. अफ़गान यूनिवर्सिटी की ये तस्वीरें तो आप पहले ही देख चुके हैं, जिसमें एक ही क्लास में लड़के लड़कियों के बीच में पर्दा डाल दिया गया है. अब तालिबान के तालिबान हायर एजुकेशन मिनिस्ट्री की तरफ से जो आदेश जारी किया गया है, इस आदेश के मुताबिक...
छात्राओं को अब सिर्फ महिला टीचर ही पढ़ाएगी, अगर ऐसा संभव नहीं है तो किसी 'साफ चरित्र वाले' बुजुर्ग टीचर को ही छात्राओं को पढ़ाने की अनुमति दी जाएगी। प्राइवेट यूनिवर्सिटी में जाने वाली महिलाओं को पारंपरिक कपड़े और नकाब पहनना जरूरी होगा, जो उनके ज्यादातर चेहरे को ढंक सके.लड़के और लड़कियों की क्लास को अलग-अलग चलाने या उनके बीच में पर्दा भी लगाना होगा. इतना ही नहीं तालिबान ने ये भी फरमान जारी किया है कि कॉलेज कैंपस में महिला और पुरुषों के आने-जाने के लिए अलग-अलग रास्ते होंगे। लड़कियों को अपना क्लास. लड़कों से पांच मिनट पहले ही खत्म करनी होगी। ताकि उन्हें बाहर घुलने मिलने से
रोका जा सके.
हम आपको बता दें कि तालिबान ने महिलाओं से कहा है कि वो काम पर लौट सकती है. लेकिन दूसरी तरफ उनके साथ
उनके लिए मेहरम को ज़रूरी कर दिया है. मेहरम यानी उनका पुरुष साथी साथ होना चाहिए, तभी वो घर से बाहर निकल सकती हैं, जो महिलाएं विधवा हैं, जिनका पिता या बेटा नहीं है, वो किसके साथ बाहर जाएंगी, ऐसी महिलाओं के लिए तालिबान ने कहा है कि वो घर पर बैठें.
तालिबान ने खुशहाली और अमन की बातें तो बहुत की, खुद को दुनिया का दोस्त भी बताया, लेकिन सरकार बनाने के मामले में तालिबान की गाड़ी अब भी झटके खा रही है. सवाल ये है कि आख़िर तालिबान को सरकार बनने में देर क्यों हो रही है? कहीं ये तालिबान की अंदरुनी गुटबाज़ी का नतीजा तो नहीं? खबरों की मानें तो असल में ये हक्कानी के मुल्ला हैबतुल्ला अखुंदज़ादा को नेता के तौर पर ना मानने का नतीजा है.
अफगानिस्तान से जो खबरें आ रही हैं, वो ये बता रही हैं, कि कैसे तालिबान में अंदरखाने एक जंग सी छिड़ी हुई है. खबरों की
मानें तो अफगानिस्तान के सुप्रीम लीडर के तौर पर तालिबान के प्रमुख नेता हैबतुल्लाह अखूंदजादा के चयन को लेकर तालिबान
और हक्कानी जैसे उसके सहयोगियों के बीच विवाद खड़ा हो गया. हक्कानियों और तालिबान के बीच गोलीबारी की खबरें आ चुकी हैं. एक अमेरिकी वेबसाइट की मानें तो तालिबानी सरकार के गठन में देरी की वजह भी, हक्कानी नेटवर्क और तालिबान के बीच सहमती ना बन पाना है. क्योंकि हक्कानी मुल्ला हैबतुल्ला अखुंदज़ादा को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. इस पूरे मामले में पाकिस्तान भी दखल दे रहा है. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और हक्कानी नेटवर्क के गहरे संबंध हैं और अब अफगानिस्तान के नए राष्ट्राध्यक्ष के लिए मोहम्मद हसन अखुंद को नॉमिनेट किया जाना भी, तालिबान और हक्कानी के बीच फूट को बयां कर रहा है.
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