2001 से 2021 : इन 20 सालों में आतंकी हमले से लेकर अमेरिका-अफ़ग़ानिस्तान के बीच क्या बदला, सबकुछ जानें

अमेरिका के इतिहास में अफगानिस्तान war, अब तक की चली सबसे लंबी जंग है, ये जंग 2001 से लेकर 2021 तक यानी पूरे 20 साल चली। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी पर इस 20 सालों के सफर को जानना ज़रूरी है।

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25 Aug 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:03 PM)

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11 सितंबर 2001

अलकायदा ने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया, और पूरी दुनिया को हिला दिया। हालांकि इन हमलों में एक भी अफगानी शामिल नहीं था मगर इस हमले की साज़िश यहीं रची गई, और ये साज़िश किसी और ने नहीं बल्कि ओसामा बिन लादेन ने रची। ये बात सामने आते ही तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान पर यलगार करने की परमीशन दे दी।

7 अक्टूबर 2001

अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान में ओसामा बिन लादेन के संभावित ठिकानों पर ताबड़तोड़ हवाई हमले किए, साथ ही अफगानिस्तान पर काबिज़ तालिबानियों पर भी ये हमले किए गए। हालांकि अफगानिस्तान में ज़मीनी स्तर पर तालिबानियों से लड़ने के लिए अमेरिकी सेना ने 12 दिन बाद कदम रखा।

9 नवंबर 2001

इस तारीख तक उस वक्त अफगान पर काबिज़ तालिबान का काबुल के करीब मज़ार-ए-शरीफ से कब्ज़ा छूट गया। लेकिन तालिबानी लड़ाकों ने हार नहीं मानी और वो लगातार अमेरिकी फौज से लड़ने में जुटे रहे।

दिसंबर 2001

अमेरिकी सेना के पास इंफॉर्मेशन थी कि वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले का मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन तोरा बोरा की पहाड़ियों में छुपा हुआ है। ये खबर मिलते ही अमेरिकी सेना ने तोरा बोरा की पहाड़ियों पर हवाई हमले कर के उसे धुआं धुआं कर दिया। लेकिन वो तब तक वहां से भाग चुका था।

5 दिसंबर 2001

अमेरिका के हमलों से अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ध्वस्त हो गई और 5 दिसंबर 2001 को वहां एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया। और इस सरकार का प्रमुख बनाया गया हामिद करज़ई को।

9 दिसंबर 2001

तालिबान की सरकार के ध्वस्त होने के बाद 9 दिसंबर तक तालिबान बिखर गया, कंधार भी उसके हाथों से निकल गया। और उसका नेता मुल्ला उमर शहर छोड़कर भाग खड़ा हुआ। कहा जाता है कि वो भी अफगानिस्तान की घनी पहाड़ियों में छुप गया था।

अप्रैल 2002

अमेरिका सेना के हमलों से अफगानिस्तान में जो तबाही हुई, उसके एवज़ में अमेरिकी सरकार ने ऐलान किया कि वो अफगानिस्तान में इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में मदद करेगी। और इसके लिए अमेरिकी कांग्रेस ने 38 बिलियन डॉलर सहायता की मंज़ूरी दी।

1 मई 2003

अमेरिका जिस मक़सद से अफगानिस्तान आई थी वो काफी हद तक पूरा हो चुका था, हालांकि अभी वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमलों का मास्टरमाइंड अमेरिका के हाथ नहीं चढा था।

29 अक्टूबर 2004

टीवी पर अचानक ओसामा बिन लादेन सामने आया और उसने अमेरिका को अफगानिस्तान में हुए उसके हमले का बदला लेने की धमकी दी।

सितंबर 2005

अफगानिस्तान में आम चुनाव के नतीजे सामने आए, और वहां आधिकारिक तौर लोकतंत्र की स्थापना की गई। 249 सीटों पर हुए इन चुनावों में 68 महिला उम्मीदवारों ने हिस्सा लिया।

2005 से 2010

ये वो दौर था जब अफगानिस्तान पटरी पर लौट आया था, सब कुछ ठीक वैसे ही चल रहा था जैसे दूसरे देशों में चलता है। अमेरिका लगातार अफगानिस्तान को दोबारा खड़ा होने में मदद कर रहा था।

1 मई 2011

अमेरिका जिस ओसामा बिन लादेन को पिछले 10 सालों से अफगानिस्तान में तोरा बोरा की पहाड़ियों में ढूंढ रहा था, वो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के एबटाबाद में आराम की ज़िंदगी जी रहा था। अमेरिका को इसकी खबर लगी और उसने एक ऑपरेशन को अंजाम देकर उसे मार गिराया।

22 जून 2011

अमेरिका जिस आतंक के खात्मे के मिशन के साथ अफगानिस्तान पहुंचा था वो अब खत्म हो चुका था। लिहाज़ा तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अफगानिस्तान से अपनी सेनाओं की वापसी का ऐलान कर दिया।

2011 से 2021

एक तरफ अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी सेनाओं को वापस बुलाने की तैयारियों में लगा हुआ था, वहीं दूसरी तरफ तालिबान अपनी वापसी बाट जोह रहा था। उसने धीरे धीरे दोबारा अफगानिस्तान में अपनी पैठ बनानी शुरु कर दी थी। अमेरिका को पता था कि उसकी सेनाओं के लौटते ही अफगानिस्तान की सरकार यहां के हालात संभाल नहीं पाएगी लिहाज़ा वो यहां शांति के लिए तालिबानियों को भी बातचीत में शामिल करने लगा।

15 अगस्त 2021

अमेरिका ने अफगानिस्तान में जैसे ही अपनी पकड़ ढीली की, तालिबान को मौका मिल गया और उसने एक एक कर के पहले अफगानिस्तान के राज्यों पर कब्ज़ा किया और फिर पूरे तालिबान पर। और अब यहां तालिबान का राज है।

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