आतंकवाद का पनाहगार पाकिस्तान. आतंकवाद का ठिकाना पाकिस्तान और अब यही पाकिस्तान तालिबान का मददगार बन गया है. यही पाकिस्तानी सरकार तालिबान के नाम पर पूरी दुनिया से मदद मांग रही है और इसी तालिबान के वकील बनकर घूम रहे हैं इमरान खान और उनके मंत्री.
पाकिस्तान और तालिबान के ज़हरीले कॉकटेल से पाकिस्तान के पास आए कितने परमाणु बम?
US generals concerned over Pak's nuclear arsenal in wake of Taliban takeover of Afghanistan
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30 Sep 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:06 PM)
जिस अमेरिका ने दशकों तक पाकिस्तान को आर्थिक मदद दी. उसे भी इमरान खान ने तालिबान के नाम पर ठगने का काम किया. इमरान खान ने तालिबान के नाम पर ना केवल अमेरिका बल्कि दुनिया के उन देशों को भी धोखा दिया. जिन्होंने हर मुश्किल वक्त में पाकिस्तान का साथ दिया था.
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अफगानिस्तान में वक्त बदल चुका है. सत्ता तालिबानियों के कब्जे में है तो हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. जब पूरी दुनिया को अफगानी नागरिकों की चिंता है. तो पाकिस्तान को तालिबान की चिंता सताये जा रही है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी तो तालिबान की इमेज बिल्डिंग में जुटे हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में शाह महमूद कुरैशी तालिबान के पक्ष में दलीलें दीं. तालिबान की सरकार को मान्यता देने का मुद्दा उठाया और पूरी दुनिया के सामने तालिबान के नाम पर झोली फैला दी.
जबसे तालिबान ने अफगानिस्तान में बंदूक के दम पर जबरदस्ती सत्ता पर कब्जा किया है तबसे पाकिस्तान कुछ ज्यादा ही उछल रहा है. फिर चाहे बात हो सीमापार से फायिरंग की या फिर आतंकियों की घुसपैठ की साजिशों में तेजी से इजाफा हो रहा है. जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान को ये भरोसा है कि कश्मीर के मुद्दे पर तालिबान उसका साथ देगा और कश्मीर पर उसका दावा मजबूत हो सकता है. जाहिर है तालिबान और पाकिस्तान का जहरीला कॉकटेल भारत के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है. इसके अलावा हाल ही में अमेरिका ने जो खुलासा किया है वो भी कम हैरान करने वाला नहीं है. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे जॉन बोल्टन ने कहा है कि तालिबान अब पाकिस्तान और उसके परमाणु हथियारों को अपने कब्जे में ले सकता है.
बोल्टन लगातार अमेरिका की अफगानिस्तान से वापसी की आलोचना कर रहे हैं. बहरहाल पाकिस्तान ना तो तालिबान के खतरे को भांप पा रहा है और ना ही तालिबान से सतर्क है. बल्कि उल्टा तालिबानके नाम पर खेल करने में जुटा है. पाकिस्तान का मानना है कि तालिबान उसका हर मोर्चे पर साथ देगा. फिर चाहे वो भारत में आतंकी गतिविधि बढ़ाने की बात हो या फिर कश्मीर का मुद्दा हो. शुरूआत में तालिबान भी पाकिस्तान के सुर से सुर मिला रहा था. उसने कश्मीर के मुद्दे पर बयानबाजी भी की थी. लेकिन जल्द ही उसकी अक्ल ठिकाने पर आ गई और कश्मीर का मुद्दा उसने त्याग दिया.
तालिबान के मुद्दे पर अब तक दुनिया के ज्यादातर मुल्क कुछ भी बोलने से बच रहे हैं. लेकिन भारत ने संयुक्त राष्ट्र की सभा में सरेआम ये ऐलान कर दिया है कि तालिबान के कब्जे और अफगानी नागरिकों पर विश्व को सोचना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व के सबसे बड़े मंच से जब ये ऐलान किया तो पाकिस्तान और तालिबान दोनों का कलेजा हलक को आ गया होगा.
आतंकवाद के खिलाफ भारत की रणनीति साफ है. पाकिस्तान के खिलाफ भी हमारा एजेंडा क्लीयर है. और जहां तक तालिबान और पाकिस्तान के गठजोड़ का सवाल है तो यहां भी भारत ने अपना पक्ष साफ कर दिया है. इसके बावजूद हमारी सरकार और सेना को ज्यादा सतर्क और सावधान रहने की जरूरत है. क्योंकि ना तो तालिबान पर भरोसा किया जा सकता है और ना ही पाकिस्तान पर.
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