कानपुर के बिकरू से मनीषा झा और विनोद शिकारपुरी के साथ सुप्रतिम बनर्जी की रिपोर्ट
बिकरू को आज भी क्यों लगता है कि कभी भी लौट सकता है विकास दुबे? 'एनकाउंटर' के 19 महीने बाद भी क्यों नहीं उसकी मौत पर यकीन?
कैमरा देखकर चुप्पी साध लेते हैं इस गांव के लोग
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16 Feb 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:13 PM)
बिकरू. वही बिकरू, जहां कभी 'विकास दुबे कानपुर वाले' का राज हुआ करता था. आज इस गांव का नाम हर कोई जानता है, क्योंकि यहां के विकास यानी गैंगस्टर विकास दुबे की लिखी जुर्म स्याह इबारत आज भी इस गांव के लोगों का पीछा कर रही है. विकास दुबे की वजह से सिर्फ़ इस गांव का नाम ही ख़राब नहीं हुआ, बल्कि 'विकास दुबे कानपुर वाले' के जुमले ने एक ऐतिहासिक शहर के नाम पर भी दाग़ लगा दिया. ..और अब आपको ये जानकर हैरानी होगी कि विकास दुबे की मौत के लगभग 19 महीने बाद भी इस गांव में बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्हें लगता है कि विकास दुबे कभी भी लौट सकता है. यानी विकास दुबे ने बेशक दुनिया छोड़ दी हो, लेकिन उसके ख़ौफ़ ने इस गांव का पीछा नहीं छोड़ा है.
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इतिहास का 'ख़ूनी झरोखा'
2 जुलाई 2020. यही वो स्याह रात थी, जब गैंगस्टर विकास दुबे की तलाश में यूपी पुलिस की कई टीमें इस बिकरू गांव में पहुंची थी. लेकिन विकास दुबे और उसके लोगों ने पुलिस वालों को घेर कर यहां ख़ून की ऐसी होली खेली, जिसका ज़िक्र चलते ही आज भी लोगों के रौंगटे खड़े हो जाते हैं. उस रात को विकास दुबे और उसके लोगों ने पुलिसवालों पर इतनी गोलियां बरसाईं कि उन्हें भागने तक का मौक़ा नहीं मिला और देखते ही देखते 8 पुलिसवालों की जान चली गई. ये और बात है कि अगले रोज़ सुबह से ही पुलिस ने भी पलटवार शुरू किया और एक-एक कर विकास दुबे समेत उसके गैंग के 6 लोगों की मौत के साथ ये सिलसिला ख़त्म हुआ. इसके बाद पुलिस ने गैंगस्टर विकास दुबे की पूरी की पूरी कोठी भी बुल्डोज़र से ज़मींदोज़ कर दी.
तो ये है वजह मौत पर यकीन ना करने की!
एक वो दिन था और एक आज का दिन. इन 19 महीनों में गंगा में काफ़ी पानी बह चुका है, लेकिन सच्चाई यही है कि बिकरू आज भी विकास दुबे और उस एकाउंटर की काली छाया से पूरी तरह बाहर नहीं निकल सका है. ख़ौफ़ का आलम ये है कि इस गांव के बहुत से लोगों को आज भी ये लगता है कि विकास दुबे ज़िंदा है और वो कभी भी लौट सकता है. गांव की प्रधान मधु के पति संजय कुमार इसे विकास दुबे को लेकर गांव वालों के मन में बसे ख़ौफ़ का सबूत मानते हैं.
आंखों ने सब देखा मगर दिमाग़ ने नहीं माना
यूपी के विधान सभा चुनावों में रंगबाज़ों की तलाश में हम यूपी के इस सबसे बड़े रंगबाज़ के गांव में पहुंचे. मक़सद ये देखना था आज इतने दिनों बाद यहां की हालत कैसी है. मगर हमें जो कुछ दिखा.. वो हैरान करने वाला था. बिकरू की दरो-दीवार पर मौजूद गोलियों के निशान आज भी उस रात की याद दिला रहे थे और हमें गांव में ऐसे भी लोग मिले, जिन्हें आज भी लगता है कि शायद विकास दुबे ज़िंदा है और वो कभी भी लौट कर आ सकता है. एक गैंगस्टर.. जिसका एनकाउंटर हो गया. एक गैंगस्टर.. अदालत पहुंचने से पहले ही यूपी पुलिस ने जिसका 'इंसाफ़' कर दिया. और जिसकी गिरफ़्तारी से लेकर एनकाउंटर तक का हरेक लम्हा नेशनल टेलीविज़न पर लाइव प्रसारित होता रहा. अख़बारों में जिसकी खबरें छपती रहीं, आज भी उसका ख़ौफ़ ऐसा है कि आज भी बहुत से लोगों का दिल ये मानने को तैयार नहीं है कि विकास दुबे अब ज़िंदा नहीं रहा और वो अब कभी यहां लौट कर नहीं आ सकता.
कैमरा देखते ही चुप हो जाते हैं गांव वाले
शायद यही वजह रही कि हमने उसके गांव में जितने भी लोगों से बातचीत करने की कोशिश की, उन्होंने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने या बात करने से साफ़ मना कर दिया. हां, बिना कैमरे के उन्होंने जो कुछ कहा, उसका लब्बोलुआब कुछ यही था कि बेशक विकास दुबे अब इस दुनिया से दूर जा चुका हो, लेकिन गांव पूरी तरह उसके ख़ौफ़ से बाहर नहीं निकल सका है.
कभी विकास दुबे के बारूद का गोदाम था पंचायत भवन
गांव बिकरू में ग्राम पंचायत का भवन वैसे तो कई साल पहले ही बन कर तैयार हो चुका था. लेकिन हक़ीक़त यही थी इस भवन में गांव के विकास का काम नहीं होता था, बल्कि ये विकास दुबे के जीते-जी उसके अस्लहे-बारूद का गोदाम हुआ करता था. हद तो ये रही कि विकास दुबे की मौत के बाद भी गांव में किसी की हिम्मत नहीं थी कि वो इस पंचायत भवन की तरफ़ झांक कर भी देख ले. वो तो कई महीने गुज़रने के बाद ख़ुद गांव की नई-नई चुनी गई प्रधान मधु और बाकी लोगों ने किसी तरह हिम्मत जुटा कर पंचायत भवन का गेट खोला और इसका रंग-रोगन कर नए सिरे से यहां काम-काज की शुरुआत की.
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