कैराना के मुसलमानों की नज़र में 'जिन्ना' कौम का गद्दार: पलायन के 'मास्टरमाइंड' नाहिद से हमदर्दी
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22 Jan 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:12 PM)
दम की बात से ठोंका खम
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कैराना मिनी पाकिस्तान नहीं है, ये कैराना के लोगों का दर्द है। मोहम्मद अली जिन्ना मुसलमान कौम का गद्दार है इस बात को कैराना के मुसलमान बड़ी ताक़त से कहते हैं। और कैराना का संगीत घराना तो सात समंदर पार अमेरिका तक में सुर लय ताल को साध रहा है।
ये वो बातें हैं जो कैराना के लोगों ने खुलकर बड़ी बेबाकी के साथ कही। और इतनी ठसक के साथ कही कि सुनने वालों को यकीन करना ही पड़े।
हवा में फिर हो रहा 'पलायन'
उत्तर प्रदेश के चुनाव हों और कैराना का नाम ना आए ऐसा कैसे हो सकता है। जब कैराना का ज़िक्र होने लगा तो 2016 में हिन्दुओं के पलायन की बात भी दोबारा हवा में तैरने लगी। और जब पलायन की बात शुरू हुई तो वो नाम भी उछलने लगा, जिसे कैराना में पलायन का मास्टरमाइंड बताया गया। उसका नाम है नाहिद हसन।
चुनाव का रंगबाज़
नाहिद हसन समाजवादी पार्टी का वो नेता है जो इस वक़्त जेल में है। नाहिद हसन वो चुनावी रंगबाज़ है जिसकी जमानत तक नहीं हो पायी। इसलिए इस बार उत्तर प्रदेश के चुनाव में उसका टिकट भी कट गया।
हालांकि समाजवादी पार्टी ने तो आखिरी दम तक यही कोशिश की कि कैराना में नाहिद हसन ही उनकी पार्टी का झंडा बुलंद करें लेकिन क़ानून का हथौड़ा ऐसा चला कि सारे अरमान धरे के धरे रह गए।
जब हिन्दुस्तान सकते में था
जून 2016 यही वो महीना था जब कैराना में हिन्दुओं के पलायन की खबर से सारा हिन्दुस्तान सकते में आ गया था। बात भी चौंकाने वाली थी कि आखिर ऐसी कौन सी बात हो गई जिसकी वजह से हिन्दुस्तान के एक हिस्से से हिन्दुओं को ही घरबार छोड़कर वहां से भागने को मज़बूर होना पड़ा।
मुद्दा ही इतना भयानक था कि हर तरफ इसी की बात होने लगी। बात आगे बढ़ी तो सरकार प्रशासन और विपक्ष सभी ने अपने अपने हिसाब से खेमेबाज़ी शुरू कर दी। पलायन हुआ या नहीं इस पर सबके अलग अलग दावे होने लगे और पलायन के नाम पर हर पक्ष राजनीतिक पेशबंदी पर उतर आया।
तेज हुए सियासी तंज
भारतीय जनता पार्टी ने तो नाहिद हसन को ही मास्टरमाइंड बताना शुरू किया, तो बातचीत के इस दंगल में ताल ठोंकने समाजवादी पार्टी को कूदते देर नहीं लगी और वो नाहिद हसन का बचाव करने उतर आई।
अब नाहिद हसन का नाम ही इलाक़े में ऐसा था जिस पर कई मुकदमें दर्ज थे। इसलिए कोई भी उसके पाले में खड़ा होने को तैयार ही नहीं हो रहा था। और जो साथ खड़े भी थे तो एक दूरी बनाकर।
असल में ये है क़ानून-
असल में सुप्रीम कोर्ट का साफ निर्देश है कि हरेक सियासी पार्टी को चुनावी उम्मीदवार के आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी सार्वजनिक करनी होगी। मतलब चुनाव में उतरने वाले हरेक प्रत्याशी के ख़िलाफ अगर थाने में एक भी मामला दर्ज है तो उसके बारे में सबको पता होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2020 में एक निर्देश जारी किया था, उस निर्देश के मुताबिक सभी राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी अपनी पार्टी की वेबसाइट के अलावा समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर ज़रूर दें।
आदेश के मुताबिक ये सारी जानकारी उम्मीदवार चुनने के 48 घंटे के भीतर या फिर चुनाव का पर्चा दाखिल करने की पहली तारीख से कम से कम दो सप्ताह पहले या फिर उससे भी पहले प्रकाशित करवाकर सार्वजनिक करना होगा। अब नाहिद हसन का बैकग्राउंड इतना काला था कि चाहकर भी उसकी पार्टी उसे नहीं बचा पाई और टिकट काटना ही पड़ा।
‘जिन्ना’ तो जानी दुश्मन है
पलायन के अपराध की बात चल रही थी कि तभी चुनाव की वजह से जिन्ना का ज़िक्र हो गया। बस फिर क्या था गांव के बड़े और बुजुर्ग लोग भड़क उठे। और सबने एक स्वर में मोहम्मद अली जिन्ना को भारत के मुसलमानों का गद्दार तक कह दिया।
कैराना के लोग जिन्ना के बारे में यहां तक कहने लगे कि यहां इस वक़्त और इन हालात में अगर कोई उनका सबसे बड़ा दुश्मन है तो वो है मोहम्मद अली जिन्ना क्योंकि उस एक नाम की वजह से ही उत्तर प्रदेश के इस चुनाव का माहौल अब ख़राब हो रहा है। कैराना के लोग ये कहते नहीं थक रहे थे कि आखिर हमारा जिन्ना से क्या लेना देना। बल्कि अगर ये जिन्ना नहीं होता तो आज हमारा मुल्क़ कितना बड़ा और कामयाब होता।
कैराना के लोग पलायन के कलंक से परेशान
क्राइम तक की टीम जब कैराना पहुँची तो गांव के पढ़े लिखे समझदार लोग एक जगह इकट्ठा हो गए। चाय की चुस्की के साथ चुनाव के माहौल पर चर्चा शुरू हो गई। और बात निकलते निकलेत पलायन तक पहुँच गई। और... जैसे ही ये पलायन शब्द उनके कान में पड़ा तो उनका दर्द छलक उठा। तड़पकर कहने लगे कि अब तो इस कलंक के छुटकारा मिलना चाहिए।
जब और कुरेदा गया तो कैराना के लोगों ने बताना शुरू किया। कैराना से बाहर गए लोगों के बारे में गांव के लोगों का तर्क यही था कि लोग रोजी रोजगार के चक्कर में यहां से बाहर निकले और अमेरिका तक चले गए, तो क्या इसे पलायन ही कहा जाएगा।
संगीत का घराना कैराना
सियासत को किनारे रखकर कैराना के लोगों ने कैराना के बारे में एक बड़ी ही अनोखी और दिलचस्प बात बताई, जिसका ताल्लुक न तो गोली से था न बंदूक से और न ही जुर्म की ज़मीन पर सियासी फसल के हरा भरा होने से।
गांव के बुजुर्ग बताने लगे कि संगीत में कैराना का घराना पूरे हिन्दुस्तान में न केवल मशहूर है बल्कि देश विदेश के अलग अलग हिस्सों में संगीत के न जाने कितने उस्ताद कैराना घराने से ताल्लुक रखते हैं, जो हिन्दुस्तान में घूम घूमकर संगीत से मोहब्बत करने वालों को तालीम दे रहे हैं। कैराना के लोग ये बात बड़ी शान से कहते हैं कि अमेरिका में कैराना घराना की अपनी धूम है। और कैराना घराना का संगीत सिखाने के लिए वहां कई स्कूल तक खुल गए हैं।
सरसों के तेल का फिसलता हुआ तर्क
चूंकि बात सियासी माहौल में हो रही थी, लिहाजा कैराना के लोगों को खुलकर बोलने का मौका भी मिल गया। तब कैराना के लोग बोले, पलायन की बात करके बात को घुमाया जा रहा है। सच तो ये है कि असली मुद्दा महंगाई है।
गांव वालों का तर्क वाकई लाजवाब करने वाला था। कहने लगे कि पहले तो हम लोग सरसों का तेल भैंस तक के मल दिया करते थे। अब तो सब्ज़ी बनाने में भी दस बार सोचते हैं। तो अगर कुछ हो रहा है तो महंगाई हो रही है, और ये पलायन अलायन सब बकवास है।
कैराना से पलायन नहीं हुआ, आसरा मिला
तर्क ये भी जोरदार था कि मुज़फ़्फरनगर दंगे के समय वहां से दंगापीड़ित जब आए तो उन्हें भी इसी कैराना में आसरा मिला। सरकारी काग़जों पर भी ये सच है कि तथ्य भी यही है कि कैराना कस्बे से चार किलोमीटर दूर एक रेस्क्यू कैंप है, जो उस वक़्त लगाया गया था जब 2014 में मुज़फ़्फ़रनगर में दंगा हुआ था। और आज भी उस कैंप में 400 लोग रह रहे हैं।
हिलमिलकर रहते हैं कैराना के लोग
कैराना के हालात पर बनी तमाम सरकारी रिपोर्ट कुछ भी कहें। वहां के चुनावी रंगबाजों की कोई भी चाल रही हो, लेकिन एक बात यहां के लोग कहने के लिए कूदते नज़र आए, कि यहां जैसी हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल पूरे हिन्दुस्तान में मिलना मुश्किल है। गांववालों ने बात थोड़ा ज्यादा बढ़ा चढ़ाकर कह दी, लेकिन मिलजुलकर रहने के निशान कैराना में आसानी से देखे जा सकते हैं।
पलायन की असलियत तो ये है-
कैराना में पलायन के मुद्दे को लेकर सहारनपुर रेंज के तत्कालीन DIG की रिपोर्ट बेहद चौंकाती है। मुख्यालय को भेजी गई उस रिपोर्ट में साफ साफ लिखा है कि BJP सांसद हुकुम सिंह पर संगीन इल्ज़ाम है।
रिपोर्ट के मुताबिक़ एक महिला को अगवा करने और उसकी हत्या के सिलसिले में कश्यप जाति के दो लोगों का नाम वोटर लिस्ट से निकालने का दबाव बनाया गया था जिससे बात बढ़ी और बढ़ते बढ़ते बतंगड़ बन गई।
रिपोर्ट के मुताबिक क्या तथ्य है
बताया गया कि सांसद हुकूम सिंह का कैराना के मायापुर में क़रीब 1000 बीघे का फॉर्म हाउस है। और उस फॉर्म हाउस में कश्यप जाति के लोग ही मज़दूरी करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अकबरपुर सुन्हैटी में गुड्डी नाम की महिला की अपहरण के बाद हत्या हो गई थी।
उसके बाद इस सिलसिले में दो मुस्लिम और दो कश्यप जाति के लोगों के नाम सामने आए थे। इसके बाद मुस्लिम आरोपियों को गिरफ़्तार करके जेल भेज दिया गया था।
तो फिर पलायन की क्या वजह बताई गई?
शामली के तत्कालीन DM और SP ने जो अपनी पहली रिपोर्ट भेजी उसमें तो ज़िले में क़ानून व्यवस्था के ख़राब हालातत को पलायन की वजह मानने से इनकार किया गया था। रिपोर्ट में यही कहा गया था कि कैराना क़स्बा बेहद पिछड़ा है इसलिए लोग रोजगार की तलाश में यहां से चले गए।
मुकीम गैंग का कैराना से रिश्ता
एक शिकायत ये सामने आई जिसमें एक समुदाय से मुकीम गैंग रंगदारी वसूलता था और उन्हें मजबूर करता था। लिहाजा मुकीम के आतंक से बचने के लिए लोगों ने कैराना छोड़ना मुनासिब समझा। गैंगस्टर मुकीम काला पश्चिम उत्तर प्रदेश का खूंखार अपराधी था। जिससे पब्लिक तो पब्लिक पुलिस भी कांपती थी।
20 अक्टूबर 2015 को STF ने मुकीम काला और उसके शार्प शूटर साबिर जंधेड़ी को गिरफ़्तार कर लिया था। बाद में मुकीम को चित्रकूट की जेल में ट्रांसफर कर दिया गया था। चित्रकूट जिला जेल में 2021 में अंशुल दीक्षित नाम के एक मामूली बदमाश ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। और मुकीम काला को लेकर भी कैराना वालों के कुछ सवाल हैं।
शामली के तत्कालीन SP के मुताबिक जिस मुकीम गैंग की बात सामने आई उस गैंग के 29 गुर्गे ऐसे हैं जिनका पुलिस में अच्छा ख़ासा रिकॉर्ड है। बताया ये भी गया कि पुलिस के साथ हुए एक मुठभेड़ में चार गुर्गे मारे भी गए थे। और जो 25 लोग बचे वो जेल में हैं।
मुज़फ़्फ़रपुर के दंगों से रिश्ता
कैराना में हालात सांप्रदायिक भले ही न दिख रहे हों, बावजूद इसके इलाक़े में दहशत और शुबाह ने अपने डेरा डाल रखा है। समाज का एक हिस्सा ऐसा है जो ये समझाने की फ़िराक़ में है कि मुज़फ़्फ़रनगर में 2014 में जो दंगे हुए तो वहां के मुसलमान परिवार यहां आ गए।
असल में कैराना से क़रीब चार किलोमीटर दूर एक रिफ़्यूजी कॉलोनी है। जहां मुज़फ़्फ़रनगर के दंगा प्रभावित लोगों को रखा गया था। लेकिन सियासी रंगबाजों ने अपनी अपनी सियासत के हिसाब से इसे अपने अपने रंग में रंगकर इलाक़े के असली रंग को बेरंग करने की कोशिश की। और इसमें पूरा साथ दे रहा है अफ़वाहों का बाज़ार और वॉट्सअप यूनिवर्सिटीा
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