बाग़ी के बेटे की बग़ावत, ददुआ के बेटे ने इस वजह से लौटा दिया अपना चुनाव का टिकट

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05 Feb 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:13 PM)

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बाग़ियों का सियासत से सीधा रिश्ता

UP ELECTION 2022: चंबल के बाग़ियों का सियासत के गलियारे से सीधा रिश्ता रहा है। कभी बाग़ियों के सबसे बड़े झंडाबरदारों में शामिल रहे दस्यु सरगना ददुआ का बीहड़ में आतंक रहा था। ग़रीबों के रॉबिनहुड कहलाने वाले ददुआ के नाम से पब्लिक तो पब्लिक पुलिस तक कांपती थी। कहा तो यहां तक जाता था कि देश के चुनाव हों या प्रदेश के, बीहड़ के बागियों की इजाज़त के बिना यहां वोट पड़ना तो दूर पत्ता तक नहीं हिलता था।

मगर वो ज़माना दूसरा था, जब डाकुओं के सरगना सत्ता के सिंहासन के नज़दीक पहुँचने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे। लेकिन अब लगता है सचमुच ज़माना बदल चुका है। और इस बदली हुई बयार की सबसे ताज़ा मिसाल तब देखने को मिली जब डाकुओं के सरदार ददुआ के बेटे और पूर्व विधायक वीर सिंह पटेल ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया।

यहां से बनाया सपा ने ददुआ के बेटे को उम्मीदवार

UP ELECTION 2022:दरअसल समाजवादी पार्टी ने इलाक़े में उनकी रंगबाज़ी को देखते हुए चित्रकूट जिले की मानिकपुर विधानसभा सीट से वीर सिंह पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया था। लेकिन शुक्रवार यानी 4 फरवरी को वीर सिंह पटेल ने लखनऊ पहुँचकर समाजवादी पार्टी के मुखियाओं के मुंह पर जाकर चुनाव लड़ने से मना कर दिया।

बीहड़ से दूर दूर तक नाता न रखने वाले ये सवाल कर सकते हैं कि आखिर ये वीर सिंह पटेल हैं कौन। तो इनकी पहली पहचान ये है कि डाकुओं के सरगना और इलाक़े के सबसे दुर्दांत दस्यु सरगना के तौर पर कुख्यात और विख्यात ददुआ के बेटे हैं वीर सिंह पटेल।

लेकिन इनकी दूसरी पहचान ये भी है कि 2012 में वीर सिंह पटेल ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर ही चित्रकूट से चुनाव लड़ा था और जीत भी दर्ज की थी। मगर 2017 में भारतीय जनता पार्टी की उस लहर में वीर सिंह पटेल चुनाव हार गए थे।

राम प्यारे पटेल ऐसे बना था 'ददुआ'

UP ELECTION 2022: बताया जाता है कि वीर सिंह पटेल ने अपने पिता के जीवित रहते हुए ही उस वक़्त सियासत की दुनिया में कदम रखा था जब चित्रकूट में ज़िला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में वो निर्विरोध चुने गए थे।

90 के दशक का वो दौर कोई नहीं भूल सकता जब ददुआ के नाम का सिक्का बीहड़ में चलता था। चित्रकूट के रैपुरा थाना इलाक़े में पड़ने वाले देवकली गांव में ददुआ का जन्म हुआ था जिनका असली नाम राम प्यारे पटेल था।

असल में ददुआ के पिता को गांव के कुछ ज़मींदारों और सामंती लोगों ने गांव में ही नंगा करके घुमाया था और फिर उनकी हत्या भी कर दी थी। इस एक घटना का असर राम प्यारे पटेल पर कुछ इस कदर पड़ा कि वो बदला लेने की ख़ातिर बंदूक उठाकर बीहड़ में चले गए और वहां ददुआ के नाम से एक नई पहचान बनाई।

वीर सिंह ने इस वजह से छोड़ी मानिकपुर की सीट

UP ELECTION 2022: ददुआ के गुज़रे हुए 14 साल गुज़र चुके हैं। लेकिन चित्रकूट और बांदा के इलाक़े में आज भी उनके नाम की सत्ता और सियासत क़ायम है। और उनके बेटे वीर सिंह पटेल भी उसी विरासत को आगे बढ़ाने में यकीन रखते हैं।

लिहाजा वो इस बार भी चित्रकूट से ही चुनाव लड़ना चाहते थे ताकि उन्हें उनके पिता के नाम का पूरा फायदा मिल सके। लेकिन पिछले चुनाव के नतीजों के आधार पर समाजवादी पार्टी ने उनका टिकट चित्रकूट से काट दिया लेकिन मानिकपुर से उन्हें अपना उम्मीदवार बनाने की घोषणा की थी।

असल में समाजवादी पार्टी इस इलाक़े में जातिगत समीकरण को भी साधना चाहती है। डकैत होने के बावजूद ददुआ का नाम बुंदेलखंड के कुर्मी समाज में बड़ी ही इज़्ज़त से लिया जाता है। इसी समीकरण को देखते हुए समाजवादी पार्टी ने उन्हें मानिकपुर की सीट पर अपना उम्मीदवार बनाया, मगर वीर सिंह पटेल ने इस सीट से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।

'जहां से हमाओ मन हम वहीं से लडैंगे'

UP ELECTION 2022: वीर सिंह पटेल का तर्क है कि उनकी सारी तैयारी चित्रकूट की सदर सीट से थी, और उसी सीट के लिए ही उन्होंने टिकट भी मांगा था, मगर समाजवादी पार्टी ने उनकी बात नहीं सुनी और अपने जोड़ घटाने गुणा भाग के आधार पर मानिकपुर से उन्हें टिकट दे दिया।

वीर सिंह पटेल का कहना है कि मानिकपुर में समाजवादी पार्टी का संगठन का बिलकुल भी बेअसर है। हालांकि वीर सिंह पटेल ने अपना टिकट तो लौटा दिया लेकिन इस बात का भरोसा ज़रूर पार्टी को दे दिया कि वो पार्टी के साथ हैं और जिसे भी उम्मीदवार बनाया जाएगा वो उसका पूरा साथ और समर्थन करेंगे। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या ददुआ के वंशज की आज की सियासत में कुछ चलती है या नहीं।

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