Shams ki Zubani: दुनिया का सबसे हैरतअंगेज क़ैदी जो 3 बार फांसी के फंदे से ज़िंदा लौटा

Shams Ki Zubani: क्राइम की कहानी में आज का किस्सा उस क़ैदी का है जिसे फांसी भी नहीं मार सकी। आखिर में उस कैदी की सज़ा को खुद इंग्लैंड की महारानी क्वीन विक्टोरिया ने उम्र कैद में बदल दी।

CrimeTak

18 Aug 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:25 PM)

follow google news

Shams Ki Zubani: मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है। शायर ने ये पंक्तियां लिखने से पहले न जाने क्या तसव्वुर किया होगा, या उसका क्या तजुर्बा रहा होगा, ये तो कहा नहीं जा सकता। लेकिन उस शायर की लिखी ये पंक्तियां जिस एक इंसान पर एकदम हू ब हू बैठती हैं, उसका नाम है जॉन बाब्बाकॉम्बे ली।

ये दुनिया का ऐसा या यूं कहें कि इकलौता क़ैदी होगा जिसने एक दो बार नहीं बल्कि तीन तीन बार मौत को चकमा दिया। हालांकि मौत को चकमा देने के दुनिया में अनगिनत क़िस्से हैं, लेकिन इस क़िस्से की दूसरी मिसाल का मिलना शायद नामुमकिन है। क्योंकि जॉन ली दुनिया का वो इकलौता इंसान जो फांसी के फंदे पर तीन बार चढ़ा और तीनों बार मौत ने उसको अपने पंजों में दबोचने से इनकार कर दिया और वो ज़िंदा फांसी के फंदे से वापस लौट आया।

क्राइम के क़िस्से में आज कहानी जॉन बाब्बाकॉम्बे ली की। ये क़िस्सा इंग्लैंड के एक गांव का है। 19वीं सदी में इंग्लैंड के द ग्लेन में एक बेहद अमीर महिला रहती थी। नाम था एमी एनी काइसे। बड़े से घर में सिर्फ चार लोग ही रहते थे। नौकर जेन और कुक एलिजाबेथ हैरिस और एलिजाबेथ का सौतेला भाई जॉन हेनरी जॉर्ज ली।

Shams Ki Zubani: 15 नवंबर 1884 को बाब्बाकॉम्बे में उस वक़्त हड़कंप मच गया जब जमाने के सामने एमा काइसे की लाश सामने आई। उसका गला रेता हुआ था...उसके माथे पर तीन गहरे जख्म थे और उसे जलाने की भी कोशिश की गई थी।

पूरे शहर में ये बात हरेक की जुबान पर तैरने लगी कि आखिर एमा काइसे जैसी भली महिला का दुश्मन कौन हो सकता है। वो कौन बेरहम क़ातिल है जिसने इतनी बेदर्दी से एमा काइसे को मौत के घाट उतारा।

जब ये मामला पुलिस की तफ्तीश के दायरे में पहुँचा तो शक के आधार पर पुलिस ने जॉन को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस की तहकीकात में पता चला कि जॉन ने 1879 के आस पास स्कूल छोड़ दिया था...उसके बाद उसने नौसेना में भर्ती होने की कोशिश की। लेकिन वहां वो फेल हो गया तो वापस टॉर्क लौट गया और वहीं फुटमैन का काम करने लगा।

Shams Ki Zubani: मगर पुलिस ने जॉन को एक बार अपने मालिक के घर में चोरी के इल्ज़ाम में गिरफ्तार किया और उसे सज़ा दिला दी। जॉन को 1884 में जेल से रिहाई मिल गई। जेल से बाहर आने के बाद जॉन वापस द ग्लेन लौट आया और अपनी बहन के साथ एमी के घर में ही काम करने लगा। इसी बीच जब एमी का मर्डर हुआ तो पुलिस का सबसे पहला शक जॉन पर ही गया क्योंकि वो इकलौता मर्द था जो क़त्ल के वक़्त घर पर मौजूद था। असल में पुलिस को जॉन की बांह पर एक कटे का निशान दिखा, जिसके बारे में वो पुलिस को संतोषजनक जवाब नहीं दे सका था। ऐसे में पुलिस को इतने सुराग और सबूत मिल चुके थे जिनके आधार पर उसे पकड़कर हत्या के मामले में सज़ा दिलाई जा सके। जबकि जॉन हमेशा यही कहता रहा कि वो बेकसूर है।

लेकिन पुलिस ने उसकी एक नहीं सुनी और अपने जुटाए गए सबूतों और सुरागों के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया। और उसे दोषी करार दे दिया गया। असल में जॉन के दोषी करार दिए जाने की बुनियाद बनी एलिजाबेथ हेरिस की गवाही। क्योंकि उसने एक बार जॉन को ये कहते सुन लिया था कि वो घर को आग लगा देग जिससे मिस काइसे भी मर जाएगी। और अदालत में दी गई एलिजाबेथ की ये गवाही जॉन को फांसी के फंदे तक ले गई।

Shams Ki Zubani: ये वो दौर था जब किसी भी मुल्जिम को अदालत में अपना बचाव करने का अधिकार नहीं था। एक फरवरी 1885 को जॉन का मुकदमा शुरू हुआ और चार दिन चली सुनवाई के बाद अदालत ने जॉन को फांसी की सज़ा सुना दी। 23 फरवरी की सुबह एक्जीटर जेल में जॉन को फांसी देने का वक़्त तय कर दिया गया। उस जेल में जेम्स बेरी जल्लाद थे, जिन्हें जॉन को फांसी पर लटकाने की जिम्मेदारी थी। जेम्स बेरी उस दौर में इंग्लैंड के सबसे तजुर्बेकार जल्लाद थे।

क़ायदे के मुताबिक जेम्स बेरी ने फांसी का फंदा चेक किया, हाथों में लगाई जाने वाली हथकड़ी का मुआयना किया और उस तख्ते और उसके लीवर की जांच पूरी की गई जिस पर चढ़ाकर जॉन को फांसी के फंदे से लटकाया जाना था। तय तारीख को तय वक़्त पर कैदी जॉन को फांसी घर तक लाया गया, जेम्स बेरी ने जॉन को तख़्ते पर ले जाने से पहले नकाब पहनाया। और फिर जेम्स नकाब पहने जॉन को लेकर फांसी के तख्ते तक पहुँचे।

Shams Ki Zubani: लेकिन जॉन को जैसे ही फांसी का फंदा पहनाकर तख्ता खींचा गया लीवर ने काम करने से ही इनकार कर दिया और तख्ता टस से मस तक नहीं हुआ। जेम्स ने एक बार फिर कोशिश की। जॉन को फांसी के तख्ते से उतारा, तख्ता और लीवर चेक किया। तब तख्ता और लीवर ठीक ढंग से काम करते दिखाई दिए। लेकिन जब दोबारा जॉन को फांसी के फंदे पर खड़ा किया और जेम्स ने लीवर खींचने की कोशिश की।

एक बार फिर वो नाकाम रहे और लीवर नहीं खिंचा और तख़्ता नहीं खुला। जेम्स ने एक बार फिर उसकी क़िस्मत को आजमाया और तख्ते लीवर का मुआयना किया। डमी को तख्ते पर चढ़ाया गया तो वो उस वक्त ठीक से काम करता दिखाई दिया लेकिन तीसरी बार भी जब जेम्स ने जॉन को तख्ते पर खड़ा किया तो उसका लीवर नहीं चला और तख्ता नहीं खुल सका।

उस ज़माने में क़ानून किसी भी कैदी को तीन बार ही फांसी देने की इजाजत देता था। यानी किन्हीं वजहों से एक बार फांसी देने में कोई अड़चन आ जाती है तो तीन बार फांसी देने की कोशिश की जा सकती थी। हालांकि इसके पीछे तर्क यही था कि ऐसा इत्तेफाक शायद ही किसी के साथ हो जो तीन तीन बार फांसी के तख्ते से बच जाए या फांसी देने में अड़चन आ जाए। लिहाजा तीन कोशिश के बाद अब जॉन क़ानूनन फांसी का हक़दार नहीं रह गया था।

Shams Ki Zubani: इस घटना ने उस जेल में हड़कंप मचा दिया। जेलर से लेकर क़ैदी तक सभी हैरान हो गए। और बात अदालत में जज तक जा पहुँची। जज को जॉन के अदालत में जज के सामने कहे शब्द याद आए। जॉन ने अदालत में कहा था कि मुझे गॉड पर पूरा भरोसा है और वो जानता है कि मैं बेगुनाह हूं।

ये बात इस कदर फैली कि इंग्लैंड की महारानी क्वीन विक्टोरिया के कानों तक जा पहुँची। तब महारानी क्वीन विक्टोरिया ने खुद आदेश देकर जॉन की फांसी की सज़ा को रद्द कर दिया और उसे उम्र क़ैद की सज़ा दे दी गई। और 22 साल काल कोठरी में बिताने के बाद जॉन को 8 दिसंबर 1907 को जेल से रिहाई मिल गई। जब वो एग्जीटर जेल से छूटकर बाहर आया तो उसकी उम्र 53 साल थी।

लेकिन जेल से बाहर आते ही वो मशहूर हो गया। उसके बारे में कहा जाने लगा कि ये ऐसा इकलौता इंसान है जिसे फांसी भी नहीं मार सकी। बाद में ली ने खुद एक किताब भी लिखी और बताया जाता है कि 1945 में जेम्स ली ने अमेरिका में आखिरी सांस ली।

इस क़िस्से में जल्लाद जेम्स बेरी का एक वाकया दिलचस्प है। जॉन को तीन बार फांसी पर चढ़ाने के बावजूद जब वो तीनों बार नाकाम रहे तो उसके बाद जॉन को तो उसकी सेल में वापस भेज दिया गया। बुरी तरह से कुंठित हो चुके जेम्स बैरी ने भी जल्लाद की नौकरी छोड़ दी, लेकिन जाते जाते अपने साथ वो फांसी का फंदा ले गए जिसने उनके तमाम तजुर्बे को ही फांसी पर लटका दिया था। बाद में वो रस्सी नीलाम की गई और आज भी वो रस्सी लिटिलडीन जेल में नुमाइश के लिए रखी है।

    यह भी पढ़ें...
    follow google newsfollow whatsapp