23 जून 1980 की सुबह हिंदुस्तान के इतिहास में ऐसी काली सुबह बनकर आई थी जिसने देश की तकदीर बदल दी, अगर उस सुबह एक हादसा नहीं हुआ होता तो शायद इस देश की तस्वीर आज कुछ और होती। इस सुबह हिंदुस्तान की राजनीति के सबसे चमकते और उभरते सितारे संजय गांधी का विमान ज़मीन से टकराया। और वो टूटे सितारे की तरह गिरकर ज़मीन पर हमेशा-हमेशा के लिए डूब गया।
संजय गांधी की मौत हादसा या साज़िश?
sanjay gandhi dies in plane crash or mystery
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15 Jul 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:01 PM)
संजय गांधी को विमान उड़ाने का बहुत शौक था, और उस दिन भी जून के गर्म दिनों के बावजूद संजय गांधी रोजाना की तरह सफदरजंग एयरपोर्ट के लिए अपनी कार से निकले थे, उस दिन वो दिल्ली फ्लाइंग क्लब के नए विमान 'पिट्स एस 2ए' को उड़ाने वाले थे, जिसे लेकर वो बेहद उत्सुक थे। 'पिट्स एस 2ए' को वो पहली बार नहीं उड़ा रहे थे, 23 जून को वो चौथी बार इस विमान में उड़ान भरने के लिए तैयार थे।
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इससे एक दिन पहले उन्होंने इसी विमान में अपनी पत्नी और सफदरजंग एयरपोर्ट के अधिकारी के साथ आसमान की सैर की थी, संजय गांधी के साथ उड़ान भर चुके पायलट, विमान उड़ाने की क्षमता को लेकर उनकी काबिलियत और जानकारी का लोहा मानते थे। 23 जून की सुबह 7 बजकर 58 मिनट पर सफेद और लाल धारियों वाला 'पिट्स एस 2ए' विमान उड़ान के लिए बिल्कुल तैयार था, टू सीटर विमान में फ्लाइंग क्लब के चीफ इन्स्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना को साथ लेकर संजय आसमान की ऊंचाई को नापने के लिए निकल पड़े।
इससे पहले विमान आसमान की ऊंचाई छूता, संजय ने उसे गोल- गोल घुमाना शुरू कर दिया, विमान तेजी से धरती की ओर आता फिर ऊपर की ओर चला जाता, संजय विमान को खतरनाक स्तर तक नीचे लाकर गोते खिलाने लगे थे। उनके ऊपर उस दिन रोमांच की चाह कुछ ज्यादा ही थी, वो ये नहीं जानते थे कि इस रोमांच की कीमत उन्हें जान देकर चुकानी पड़ सकती है। 11 मिनट तक संजय का विमान हवा में कलाबाजी करते रहे, 12वें मिनट में विमान कुछ ज्यादा ही तेजी से धरती की ओर आया।
संजय वापस आसमान की तरफ वापस उड़ाना चाहते थे तभी विमान का इंजन बंद हो गया और पलक झपकते ही सबकुछ खत्म हो गया, विमान को गिरते हुए कंट्रोल टॉवर में बैठे लोगों ने जैसे ही देखा तो उनके मुंह खुले के खुले रह गए। उन्होंने देखा कि पिट्स अशोका होटल के पीछे एकदम से गायब हो गया है, सक्सेना के सहायक ने भी तेजी से विमान को नीचे गिरते हुए देखा था।
संजय का विमान अशोका होटल के पीछे एक पेड़ पर जा गिरा था, विमान के टुकड़े-टुकड़े हो गए थे। वहीं संजय गांधी और इन्स्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना की मौके पर ही मौत हो गई थी। उनका विमान नीम के पेड़ से टकरा गया था, जिसके बाद विमान के टुकड़े- टुकड़े हो गए थे। पेड़ काटकर दोनों की बॉडी नीचे उतारी गई थी, जैसे ही विमान हादसे की खबर चारों तरफ पहुंची तो इस बात से सब चौंक गए थे, किसी ने नहीं सोचा था कि ऐसा भी कुछ हो सकता है।
घटनास्थल पर एंबुलेंस, एयरक्राफ्ट अधिकारी और फायर ब्रिगेड पहुंचे, इसके बाद नीम के पेड़ की डालियां काटी गईं और विमान के मलबे के बीच से संजय और सुभाष के शव निकाले गए। दोनों के शवों को सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया। जैसे ही मां इंदिरा गांधी को हादसा का मालूम चला वो फौरन सफदरजंग अस्पताल रवाना हुईं,इंदिरा ने छोटे बेटे की लाश देखी तो उसके निर्जीव शरीर के देखकर अपना दर्द नहीं रोक पाई और फूट- फूटकर रोने लगीं। वहीं आधिकारिक तौर पर सुबह 10 बजे संजय गांधी की मौत की खबर दे दी गई थी, जिसके बाद उनके चाहने वालों की भीड़ अस्पताल के बाहर जुटने लगी. शाम 6:30 बजे उनकी शव यात्रा निकाली गई थी।
मगर काल में समाने से पहले सियासत के इस सितारे ने कुछ ऐसे फैसले लिए जिसकी वजह से उसे हमेशा हिंदुस्तान की तारीख में याद रखा जाएगा, वो सत्तर का दशक था, हिंदुस्तान की सियासत रोज़ करवट बदल रही थी और इसी दौर में तेज़ी से हो रहा था एक सितारे का उदय, ये सितारा था प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का छोटा बेटा संजय गांधी। ज़ाहिर है सियासत संजय के खून में थी लेकिन ये परवान चढ़ी 1973 के आस-पास, राजनीति में कदम रखने के साथ ही संजय ने अपनी ताकत बढ़ाना शुरु कर दी थी।
मां इंदिरा गांधी उनकी सलाह को हमेशा तरजीह देतीं और इसका असर दिखा 25 और 26 जून 1975 की दरमियानी रात में जब इंदिरा गांधी ने इस देश में लगा दी इमरजेंसी। अगले 21 महीने हिंदुस्तान की सियासत का सबसे उथल-पुथल भरा दौर था और इसी दौर को लोगों ने नाम दिया संजय युग, कुछ लोग उन्हे इमरजेंसी का खलनायक मानते हैं तो कुछ का मानना है कि संजय की कई नीतिया बेहद अच्छी थीं। परिवार नियोजन और पर्यावरण के लिए उन्होने जो काम किया आज तक उसकी तारीफ उनके राजनैतिक दुश्मन भी करते हैं।
इंदिरा गांधी 1977 का चुनाव हार गईं थी, विपक्ष में रहने के दौरान संजय ने असली राजनीति सीखी, उन पर कई केस चले लेकिन सत्ता से दूर जाकर भी संजय का स्टाइल नहीं बदला, उन्होने ने दमदारी से हर वार का मुकाबला किया। अगर ये बात सच है कि संजय गांधी के उठाए कदमों से 1977 में कांग्रेस की हार हुई तो ये भी उतना ही सच है कि संजय के बदौलत ही महज तीन साल में इंदिरा फिर से प्रधानमंत्री बन गई।
सत्ता में आने के बाद संजय बदल गए थे, कई लोग मानते हैं कि इंदिरा उन्हे जल्द ही अपने मंत्रिमंडल में जगह देने वाली थीं लेकिन 23 जून 1980 की सुबह काल के क्रूर हाथ ने संजय को छीन लिया। आज भी लोग मानते हैं कि अगर उस सुबह संजय का विमान ज़मीन से नहीं टकराता तो आज हिंदुस्तान का चेहरा ही कुछ और होता। तब राजीव गांधी को कभी राजनीति में नहीं आना पड़ता और अगर ऐसा होता तो शायद आज हिंदुस्तान की राजनीति में कई चेहरे बेगाने होते।
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