UP ELECTION 2022: अपनी ही 'धार' से कटते कटते मिटने की कगार तक पहुँचा रामपुरी चाकू
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25 Jan 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:12 PM)
रामपुर से फ़र्रूख़ हैदर, चिराग गोठी, प्रिवेश पांडे, विनोद शिकारपुरी के साथ गोपाल शुक्ल की रिपोर्ट
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ये बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं ‘जानी’
ये चाकू है, हाथ में लग जाए तो ख़ून निकल आता है
ये हिन्दी फिल्म का मशहूर डायलॉग उसी रामपुरी चाकू के लिए ही तो कहा गया है, जिस चाकू को देखकर अच्छे अच्छों की जान हलक में अटक जाती है। फिल्मों के ऐसे सीन ने रामपुरी चाकू को जितना बदनाम किया उससे भी कहीं ज़्यादा इसका नाम हुआ।
रामपुर के नवाब, रामपुर के आम और रामपुरी चाकू उत्तर प्रदेश के शहर रामपुर की दुनिया भर में पहचान बन चुके हैं। कहावत भी है कि नवाबों के दौर में रामपुर के हर खास ओ आम के पास दो हथियार होते थे तेज़ ज़ुबान और तेज़ धार वाली छुरी।
चाकू की धार मिटी, बच गई तेज़ ज़ुबान
UP ELECTION 2022:लेकिन गुज़रते वक़्त के साथ रामपुर में अब लोगों के पास बचा है तो बस उनकी तेज़ ज़ुबान, क्योंकि बदलते वक़्त के साथ रामपुर की छुरी तो अपनी ही धार के साथ कब की कट चुकी है और शायद अब ये रामपुरी चाकू अपनी आख़िरी सांसे गिन रहा है।
रामपुर में रामपुरी चाकू बनाने वाले ख़ानदान से ताल्लुक रखने वाले यामीन अंसारी इस वक़्त रामपुर में रामपुरी चाकू बनाने वाले शायद आखिरी शख्स बचे हैं।
क्राइमतक की टीम निकली तो थी चुनावी रंगबाज़ की तलाश में। मगर रामपुर में क्राइमतक की टीम उस ख़ानदान के आखिरी वारिस तक जा पहुँची जिसके हाथों के हुनर फिल्मों में डायलॉग के ज़रिए देश और दुनिया के लोगों की जुबान पर छा गया।
चाकू बनाने वाला आखिरी शख्स
UP ELECTION 2022:यामीन अंसारी। यही नाम है उन जनाब का जो आज भी रामपुर में रामपुरी चाकू की धार को ज़िंदा रखने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। रामपुर की ‘नई बस्ती’ नाम के मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहने वाले यामीन अंसारी की मानें तो रामपुरी छुरी और चाकू का धंधा कब का ख़त्म हो चुका है।
रामपुर में जो कभी कारोबार बन चुका था उसकी मौत हुए शायद 15 बरस से ज़्यादा का वक़्त बीत चुका है। 56 साल के यामीन अंसारी अकेले इस हुनर को ज़िंदा रखे हुए हैं। लेकिन यामीन अंसारी में आज भी चाकू बनाने का जुनून सवार है।
शायद उनकी ये आखिरी कोशिश रंग ले आए और एक बार फिर रामपुरी चाकू उद्योग बनकर सांस लेना शुरू कर दे, इसीलिए क्राइमतक की टीम ने जैसे ही उनसे बात शुरू की तो उन्होंने अपने हाथों के हुनर की नुमाइश शुरू कर दी।
शोकेस में सजकर रह गया 'चाकू'
UP ELECTION 2022:सबसे पहले तो उन्होंने अपने हाथ से बनाए नायाब चाकू दिखाए जो शोकेस की शोभा बन चुके थे। लेकिन उसके बाद जब खुद उनसे नहीं रहा गया तो तो वो अपना असली हुनर दिखाने ही बैठ गए। उनके हाथ और उनका दिमाग चाकू की तेज़ धार की ही तरह चलना शुरू होता है तो मशीर और औज़ार पुराने पड़ने के बावजूद सुर लय ताल में उनका साथ देना शुरू कर देते हैं।
चाकू बनाने का कमाल का हुनर
क़रीब आधे घंटे में जब तक क्राइमतक टीम अपनी चाय निपटाती यामीन अंसारी ने एक रामपुरी चाकू तैयार कर लिया। अपने हुनर के पक्के यामीन अंसारी के बारे में और मौजूदा हालात को देखते हुए ये भी कहा जा सकता है कि अंसारी एक आधे बेरोज़गार कारीगर हैं।
इन दिनों आलम ये है कि कभी रामपुरी छुरी बनाने का ऑर्डर मिल जाता है तो कुछ कमाई होती है वरना किचन में इस्तेमाल होने वाली चाकू बनाकर अपना जैसे तैसे गुज़र-बसर कर रहे हैं।
बड़ी अदा है रामपुरी चाकू में
रामपुरी छुरी की अपनी ही एक अदा है। अगर इसे बनाना एक कला है तो इसे खोलना एक हुनर। एक दौर था जब बॉलीवुड फ़िल्मों के विलेन इसी रामपुरी चाकू को एक क्लिक के साथ खोलते थे और हवा में लहराते दिया करते थे।
नाम से हो गया बदनाम
अगर रामपुरी चाकू को हिन्दी फिल्मों ने नाम दिया तो वहीं उन्हीं फिल्मों की वजह से उसके माथे पर क़त्ल का सामान होने की तोहमत भी जड़ दी। और जो रामपुरी चाकू किसी ज़माने में फैशन की हदों तक जा पहुँचकर न जाने कितनी मौत तकी वजह बन चुकी थी अब वही चाकू मिटने की कगार पर खड़ी है।
ख़त्म हो रहा घर घर चलने वाला धंधा
रामपुर में पहले चाकू बनाने के कारखाने घर घर में चला करते थे और पूरे रामपुर में क़रीब चार से पांच हज़ार कारीगर हुआ करते थे। रामपुर में चाकू बनाने के क़रीब 17 कारखाने थे जो ज़िला उद्योग केंद्र में रजिस्टर्ड थे। लेकिन अब केवल एक ही कारखाना रह गया है।
पहले ये कारोबार इतना बड़ा था कि रामपुर के बने चाकू मुंबई, कोलकाता चेन्नई हैदराबाद और पटना तक में ऑर्डर पर मंगाए और बेचे जाते थे। लेकिन सरकार के बनाए क़ानून के बाद और पुलिस की सख़्ती ने इस कारोबार को ही तोड़ कर रख दिया। किसी ज़माने में चाकू का ये कारोबार करोड़ों रुपये का हुआ करता था लेकिन अब ये महज़ 20 लाख सालाना का ही कारोबार रह गया है।
चाकू को क़ानून ने दे दी 'सज़ा ए मौत'
उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 1990 में साढ़े चार इंच से लम्बी छुरी रखने और बेचने पर पाबंदी लगा दी थी. ये भी उसके पतन का कारण बना। यामीन अंसारी कहते हैं कि रामपुरी छुरी से कहीं ख़तरनाक औज़ार मार्केट में है मगर उस पर पाबंदी नहीं लगी।
रामपुरी चाकू को बदलते जमाने में ज़िंदा रखने के लिए अब रामपुर के कुछ कारीगरों ने एक नई तरकीब निकाली है। क्योंकि इस वक़्त बाज़ार तो नई और चाइनीज़ चाकू से पटा पड़ा है। ऐसे में रामपुर के हाथ से बनाए चाकू को मार्केट में अपनी जगह बनाने के लिए अपनी शक्लो सूरत भी बदलनी पड़ रही है, ताकि ये हुनर ज़िंदा तो रहे।
रामपुर का AK47 चाकू
लिहाजा अब रामपुर के मार्केट में कुछ पिस्टल और रायफल नुमा चाकू मिलने लगे हैं। और नाम सुनकर भी लोग चौंक सकते हैं। क्योंकि अब तो बाज़ार में बटन वाले AK47 चाकू भी आने लगे हैं। जिनका काम और धाम सब कुछ पहले जैसा है वैसा ही लॉक सिस्टम भी। लेकिन ये चाकू थोड़े हल्के हैं। और इनकी शक्ल ओ सूरत के साथ साथ कुछ कुछ सीरत भी बदल गई है।
नई स्टाइल के चाकुओं की ब्लेड डाई से बनाई जाती है। चाकू का हैंडल बनाने के लिए पड़ोसी ज़िले संभल से लकड़ी मंगाई जाती है जबकि टार्च दिल्ली से लाकर लगाई जाती है। इन दिनों स्टील के चाकुओं की काफी डिमांड है। स्टील का एक चाकू डेढ़ सौ रुपये से लेकर 12 सौ रुपये तक मिल जाते हैं।
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