अपने युद्ध कौशल के लिये जाने जाने वाले पंजशीर के लोग किसी भी कीमत पर तालिबान से भिड़ने को तैयार हैं। पंजशीरी अत्यधिक प्रेरित सेनानी हैं, यहां के लड़ाकों के लिए विख्यात अहमद शाह मसूद उनकी प्रेरणा स्रोत हैं।
पंजशीर के लोगों के DNA में ही है तालिबान का विरोध अहमद शाह मसूद का क़त्ल आज भी उनके ज़हन में ताजा है
Panjshir the last force in taliban way
ADVERTISEMENT
31 Aug 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:04 PM)
अहमद शाह मसूद आज भी तालिबान विरोधी और खासतौर पर यहां के लोगों के एक प्रेरणादायक प्रतीक बने हुए हैं। पंजशीर के लोगों के ज़हन में 9 सितंबर 2001 को तालिबान और अलकायदा ने मिलकर की मसूद की हत्या बसी हुई है। पंजशीरियों के दिल और दिमाग पर बदले की भावनाएं हावी रहती हैं। यही बदले की आग उनके लिए एक ऑक्सीजन की तरह है।
ADVERTISEMENT
इस वक्त तालिबान से लोहा ले रहे हैं, अहमद मसूद, उस अहमद शाह मसूद के बेटे हैं, जिन्होंने 1996 में तालिबानी राज के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किया था। अहमद शाह मसूद ने सोवियत-अफगान युद्ध और तालिबान के साथ गृह युद्ध के दौरान सफलतापूर्वक पंजशीर घाटी का बचाव किया था...अब उसी पंजशीर घाटी को तालिबान 2.0 से बचाने के लिए अहमद शाह मसूद का बेटा अहमद मसूद खड़ा हो गया है।
पंजशीर के अंदर तालिबान को ललकारने वाले...अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद का समर्थन बढ़ता ही जा रहा है। तालिबान के खिलाफ़ लड़ने वाले पूर्व कमांडर उनके दस्ते में शामिल हो रहे हैं।
अहमद मसूद ने खुद इस बात की पुष्टि की है। अहमद मसूद ने कहा है, “हमारे लड़ाकों को अफगान सेना और विशेष बलों के सदस्यों का सैन्य समर्थन हासिल है। वॉशिंगटन पोस्ट के लिए....... लिखे एक हालिया आलेख में उन्होंने लिखा..."हमारे पास गोला-बारूद और हथियारों के भंडार हैं, जिसे हमने अपने पिता के ज़माने से धैर्यपूर्वक एकत्र किया है, हम जानते थे कि ऐसा वक़्त कभी भी आ सकता है"
अफगानिस्तान में तालिबान के राज आते ही भयावह मंज़र देखने को मिल रहा है हालात ये हैं, कि कोई एक पल भी अफगानिस्तान में ठहरना नहीं चाह रहा है। अफगानिस्तान के कोने-कोने में तालिबानी सत्ता लिखी जा चुकी है।
वहीं अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी में तालिबान भी जाने से डर रहा है। हम आपको बता दें कि पंजशीर हमेशा से तालिबान को घाव देता आया है। पंजशीर ही पूरे अफगानिस्तान का वो हिस्सा है, जहां तालिबान के खिलाफ उठती आवाज दबाई नहीं जा सकती
जब तालिबान ने साल 1996 में काबुल पर कब्ज़ा किया था, तब नॉर्दन अलायंस का जन्म हुआ था। इसका पूरा नाम ‘यूनाइटेड इस्लामिक फ्रंट फॉर द सालवेशन ऑफ अफगानिस्तान’ है, नॉर्दर्न अलायंस को तालिबान के खिलाफ आवाज उठाने के लिए भारत समेत ईरान, रूस, उज्बेकिस्तान, तुर्की, तजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान का सहयोग मिला है।
पंजशीर को कब्जाने के हर प्रयास अब तक फेल साबित हुए हैं
ये घाटी इतनी खतरनाक है कि 1980 से लेकर 2021 तक इसपर कभी भी तालिबान का कब्जा नहीं हो सका है। इतना ही नहीं, सोवियत संघ और अमेरिका की सेना ने भी इस इलाके में केवल हवाई हमले ही किए हैं भौगोलिक स्थिति को देखते
हुए उन्होंने भी कभी कोई जमीनी कार्रवाई नहीं की। एक बार फिर से अफगानिस्तान पर तालिबान को कब्जा हुआ है, लेकिन पंजशीर तालिबान के लिए पुराना और नासूर जख्म आज बना हुआ है। पंजशीर पर कब्जे के लिए तालिबान अपने आतंकियों को भेज रहा है, लेकिन वहां उन्हें मौत ही नसीब हो रही है।
नॉर्दर्न अलायंस के नेता अहमद मसूद पंजशीर में तालिबान के सामने दीवार बनकर खड़े हैं।, ताजिकिस्तान में निर्वासित जीवन बिता रहे, अफगानिस्तान के राजदूत जहीर अघबार ने कहा कि पंजशीर के लोग आखिरी सांस तक लड़ेंगे।
अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से एक पंजशीर घाटी, हमेशा तालिबान के आतंक से महफूज़ रही है। 70 और 80 के दशक में सोवियत संघ ने भी इस घाटी की डोर कब्जाने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। पंजशीर को ‘पंजशेर’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसका मतलब ‘पांच शेरों की घाटी’ है। पंजशीर की आबादी डेढ़ लाख से अधिक है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह भी इसी इलाके से आते हैं, और फिलहाल यहीं रह रहे हैं। पंजशीर कब्ज़े के लिए तालिबान अपना पूरा दिमाग लगा रहा है। तालिबान की तरफ से ये खबर भी फैलाई गई थी कि नॉर्दर्न अलायंस के नेता अहमद मसूद सरेंडर करने के लिए तैयार हो गए हैं...हालांकि जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने साफ कहा कि सरेंडर का नाम शब्द उनकी डिक्शनरी में नहीं है।
तालिबान चाहे तो बातचीत कर सकता है और तालिबान चाहे तो उनसे लंबी जंग भी कर सकता है। लेकिन पंजशीर पर कट्टर तालिबान को काबिज़ नहीं होने देंगे।
ADVERTISEMENT