इंसानी बालों ने कैसे खोला पाकिस्तानी परमाणु बम का राज़?

Raw operation kahuta in pakistan

CrimeTak

05 Apr 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:16 PM)

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साल 1974 में भारत ने जब परमाणु धमाका किया तो पूरी दुनिया हैरान रह गई। सबसे ज्यादा हैरान-परेशान हुए पाकिस्तान और चीन । तय किया गया कि चाहें कुछ भी हो जाए लेकिन पाकिस्तान को भी किसी कीमत पर परमाणु बम बनाना है । पाकिस्तान के एटमी प्रोग्राम की तैयारी शुरु हो गई लेकिन ये इतने चोरी छिपे किया जा रहा था कि इसकी भनक तक नहीं मिल पा रही थी।

हालांकि पाकिस्तान ने परमाणु बम बनाने की शुरुआत बहुत पहले कर दी थी । इसका हल्का अंदाजा रॉ के पहले प्रमुख आर एन काओ को लग गई थी। यही वजह थी कि उन्होंने काफी पहले ही पाकिस्तान में रॉ का नेटवर्क तैयार करना शुरु कर दिया था। 1968 में रॉ के बनने के बाद आर एन काओ ने अपना सारा ध्यान चीन और पाकिस्तान पर ही लगा दिया था क्योंकि उनको लगता था कि भारत के दो ही सबसे बड़े दुश्मन हैं चीन और पाकिस्तान और दोनों की सीमा भारत से लगी हुई है।

रॉ के बनने के बाद उसके जासूसों ने पाकिस्तान में एक अच्छा खासा नेटवर्क बना लिया था। पाकिस्तान में बना नेटवर्क वक्त-वक्त पर खबरें देता रहता था। इसी नेटवर्क से रॉ को भनक लगी कि पाकिस्तान न्यूक्लियर धमाकों की तैयारी कर रहा है लेकिन तमाम कोशिशें करने के बावजूद रॉ उस जगह तक नहीं पहुंच पा रही थी जहां पाकिस्तान चोरी-छिपे परमाणु बम बनाने की कोशिश कर रहा था।

भारत के 1974 के एटमी धमाके के बाद पाकिस्तान ने अपना न्यूक्लीयर कार्यक्रम बेहद तेज कर दिया था। रॉ को पता लगाना था कि पाकिस्तान किसकी मदद से अपना परमाणु कार्यक्रम तैयार कर रहा है और उससे भी बड़ी बात ये कि वो जगह कौन सी है जहां पर ये परमाणु कार्यक्रम चल रहा है? काफी मशक्कत करने के बाद रॉ ने पता लगा ही लिया कि पाकिस्तान का परमाणु बम बनाने का अड्डा कहां पर है ?

पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को नुकसान पहुंचाने के लिए साल 1977 में भारत ने ऑपरेशन कहूटा की शुरुआत की । कहूटा पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर की एक तहसील है । ये बात आम है कि पाकिस्तानी सेना का हैडक्वार्टर भी रावलपिंडी में है । रावलपिंडी से ही पाकिस्तान के कबीलाई इलाके की शुरुआत होती है और ये रास्ता आगे जाकर अफगानिस्तान बॉर्डर पर जाकर मिलता है। रावलपिंडी पाकिस्तान के बड़े शहरों की चमक दमक से अलग था । कुल मिलाकर पाकिस्तान ने ऐसी जगह का चुनाव किया था जहां पर उसका एटमी प्रोग्राम दुनिया भर के लिए राज बना रहे।

जब भारत को इसकी भनक लगी तो उन्होंने इसकी खबर इज़रायली खुफिया एजेंसी मौसाद को दी। ये खबर सुनकर मौसाद भी घबरा गया। उसे लग रहा था कि पाकिस्तान अगर परमाणु बम बना लेता है तो इसका इस्तेमाल इज़रायल के खिलाफ कर सकता है या फिर परमाणु बम बनाने की तकनीक इज़रायल के दुश्मनों को दे सकता है ।

उसके पीछे की वजह ये थी और आज भी है कि पाकिस्तान ने इज़रायल को आजतक मान्यता नहीं दी है यानि पाकिस्तान के इज़रायल के साथ किसी भी तरह के रिश्ते नहीं हैं । यहां तक की पाकिस्तानी पासपोर्ट पर साफ लिखा हुआ है कि इज़रायल को छोड़कर दुनिया के सभी देशों के लिए पाकिस्तानी पासपोर्ट मान्य है। इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इज़रायल पाकिस्तान की आंख में कितना खटकता होगा।

इस बीच मौसाद को ये भी पता लगा कि पाकिस्तानी न्यूक्लियर वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान का आनाजाना उत्तरी कोरिया में भी हो रहा है। उस वक्त उत्तरी कोरियो की कमान तानाशाह किम जोंग उन के पिता के हाथ में थी और वो लगातार परमाणु बम बनाने की कोशिश कर रहा था। उत्तरी कोरिया भी इज़रायल को अपना कट्टर दुश्मन मानता था लिहाजा मौसाद को लग रहा था कि अगर पाकिस्तानी वैज्ञानिक अब्दुल कदीर खान की मदद से उत्तरी कोरिया परमाणु बम बना लेता है तो उसकी मुसीबतें और बढ़ जाएंगी।

अब रॉ के साथ मौसाद भी पता लगाने में जुट गया कि आखिरकार पाकिस्तान कहूटा में कहां परमाणु बम बनाने की तैयारी कर रहा है। आखिराकर एजेंसियों को उस जगह का तो पता लग गया जहां पर परमाणु बनाया जा रहा था लेकिन मुश्किल इस बात की थी कि उस जगह के अंदर कैसे जाया जाए। रॉ और मौसाद को मालूम था कि प्लांट के अंदर घुसपैठ बनाने के लिए उन्हें कई साल का वक्त लग सकता है और इतना वक्त उनके पास नहीं था।

अंदर जाकर भी उन्हें इस बात की तस्दीक करनी थी कि अंदर कोई परमाणु कार्यक्रम चल रहा है या फिर नहीं । एक बार पुष्टि होने पर उस पर हमला किया जा सकता था या फिर उसे दूसरी तरीके से नुकसान पहंचाया जा सकता था। रॉ के एजेंट अपनी तमाम कोशिशें कर रहे थे लेकिन उन्हें कोई ऐसा सुराग नहीं मिल पा रहा था जो इस बात पर मोहर लगा दे कि कहूटा में पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम चल रहा है।

रॉ के एजेंट अब उस जगह पर आने-जाने वाले हर किसी पर नज़र रखने लगे । उन्होंने ऐसे लोगों पर खास नज़र रखना शुरु किया जो उन्हें लगता था कि इस कार्यक्रम की अहम पोजीशन पर हो सकते हैं । कोई ऐसा जो परमाणु बम बनाने वाली टीम का हिस्सा हो ।

आखिरकार एजेंट ने एक ऐसा शख्स चुन ही लिया जो उन्हें लगता था कि इस कार्यक्रम की अहम कड़ी हो सकता है। एजेंट लगातार उस पर नजर रखे हुए थे। उसके आने-जाने का वक्त, उसके सोने-जागने का वक्त, उसके घूमने या घर पर रहने का वक्त, यहां तक की वो किस दुकान से सामान खरीदता है, कौन-कौन रिश्तेदार उससे मिलने आता है और उसकी ज़िंदगी के तमाम पहलू ।

जासूसी करते-करते इस बात का भी पता चल गया कि जिस आदमी का वो पीछा कर रहे हैं दरअसल में वो एक पाकिस्तानी वैज्ञानिक है। लेकिन सवाल ये था कि बिना किसी के शक के दायरे में आए उस शख्स से कैसे पता करें कि कहूटा की उस इमारत में परमाणु बम बनाने की तैयारी चल रही है। रॉ ने अब भारतीय वैज्ञानिकों की मदद ली और उनसे पूछा कि आखिरकार किसी परमाणु कार्यक्रम में काम कर रहे किसी शख्स से बिना पूछताछ किए कैसे पुष्टि हो सकती है कि वो किसी एटमी कार्यक्रम का हिस्सा है।

यहां वैज्ञानिकों ने रॉ को एक बेहद दिलचस्प चीज बताई, वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर कोई आदमी परमाणु कार्यक्रम में हिस्सा लेता है तो उसके शरीर में ऐसे कई रेडियोएक्टिव कण चिपक जाते हैं जिनसे इस बात का पता लगाया जा सकता है कि वो किसी परमाणु कार्यक्रम में शामिल है या नहीं । एजेंट समझ नहीं पा रहे थे कि उस वैज्ञानिक की ऐसी कौन सी चीज हासिल की जाए कि किसी को शक भी न हो और पता भी चल जाए क्योंकि एजेंट्स को इस बात की भी भनक थी कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी भी परमाणु कार्यक्रम में शामिल लोगों पर निगाह रखे हुई है ।

खतरा इस बात का था कि अगर कोई भी एजेंट पकड़ा जाता तो पूरा मिशन चौपट हो जाता । लिहाजा काफी सोचने के बाद ये तय किया गया कि वो उस वैज्ञानिक के बालों का सैंपल हासिल करेंगे जिससे पता चल सकता है कि वो किसी एटमी कार्यक्रम का हिस्सा है या नहीं ।एजेंट्स को पता था कि वो कहां बाल कटाता है।

एक दिन जब वो वैज्ञानिक बाल कटाने पहुंचा उसके पीछे एजेंट ने ज़मीन पर गिरे उसके बालों का छोटा सा गुच्छा हासिल कर लिया। बालों के इस सैंपल को सरहद पार हिंदुस्तान भेजा गया। जब टेस्ट की रिपोर्ट आई तो सबकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा । जी हां उस पाकिस्तानी वैज्ञानिक के बालों से रेडिएशन के अंश मिले थे।मोहर लग चुकी थी कि कहूटा की उस इमारत में प्लयूटोनियम रिफाइनिंग का काम चल रहा था जिसकी मदद से एटम बम बनाया जाता है। रॉ के इस इनपुट के बाद इज़रायल ने तो लगभग इस परमाणु ठिकाने को उड़ाने की तैयारी भी कर ली थी।

उस वक्त देश के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को भी ये रिपोर्ट दी गई। उस वक्त भारत और पाकिस्तान के बीच इतनी तल्खी नहीं थी जितनी आज है। उस वक्त की लीडरशिप आपस में बात कर लेती थी। उस वक्त पाकिस्तान में फौज का कब्जा था और पाकिस्तान की बागडोर जिया-उल-हक के हाथों में थी ।

एक फोन कॉल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने जिया-उल-हक पर तंज कसा कि उन्हें मालूम है कि पाकिस्तान का सीक्रट प्लान क्या है । उनका इशारा परमाणु कार्यक्रम की ओर था और जिया-उल-हक जैसा तेजतर्रार फौजी देसाई के इशारे को तुरंत भांप गया। अब पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई भी एक्टिव हो गई और उन्हें पता चला कि इज़रायल उसके परमाणु ठिकानों पर हमला करने वाला है ।

इस बात की शिकायत पाकिस्तान ने अमेरिका से की और अमेरिका से मिन्नत की वो इज़रायल को हमले से रोक ले। जैसे-तैसे अमेरिका ने इज़रायल को विश्वास में लिया और अमेरिका के कहने पर इज़रायल ने धमाके नहीं किए। हालांकि पहले से ही भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री की बचकानी हरकत की वजह से पाकिस्तानी सतर्क हो गए थे। इसके बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने जो किया उसने न केवल कई रॉ एजेंटों की जान ले ली बल्कि पाकिस्तान में पूरे रॉ के नेटवर्क को ही ध्वस्त कर डाला ।

जिया-उल-हक से एक मुलाकात के दौरान मोरारजी देसाई ने ने केवल जिया को पाकिस्तान में रॉ के नेटवर्क के बारे में बताया बल्कि ये भी बताया कि कहूटा प्लांट की खबर भारत को है । भारत की रिपोर्ट पर ही इज़रायल इस प्लांट पर हमला करने वाला था। इसके बाद तो पाकिस्तान में हड़कंप मच गया।

पाकिस्तान की तमाम खुफिया एजेंसियों भारतीय जासूसों की खोज में लग गईं । पाकिस्तान में रॉ के नेटवर्क में शामिल लोगों को चुन-चुन कर मौत के घाट उतारा गया। मोरारजी देसाई के बड़बोलेपन और बचकाना हरकत की वजह से ने केवल रॉ का पूरा नेटवर्क बर्बाद हो गया बल्कि देश के कई बांकुरों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

ऑपरेशन कहूटा रॉ के कई शानदार ऑपरेशन्स में से एक माना जाता है जिसके इनपुट का इस्तेमाल अगर ठीक तरह से होता तो शायद आजतक पाकिस्तान परमाणु बम बना ही नहीं पाता।

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