Russia Ukraine War research analysis : आखिरकार यूक्रेन के राष्ट्रपति वोल्दोमिर जेलेंस्की ने NATO की सदस्यता को लेकर बड़ा बयान दे दिया. यूक्रेनी राष्ट्रपति ने कहा कि अब हम NATO की सदस्यता नहीं लेंगे. इसके अलावा रूस को समर्थन देने वाले डोनेट्स्क और लुहांस्क को लेकर भी समझौता करने की बात कर रहे हैं.
भारत-पाक के उदाहरण से आसान भाषा में जानिए रूस ने यूक्रेन पर क्यों किया हमला
भारत-पाक उदाहरण से समझ लीजिए रूस ने यूक्रेन पर क्यों किया हमला, आखिर जेलेंस्की ने अब NATO में शामिल नहीं होने का क्यों दिया बयान, Read more Ukraine Russia News, Crime news Hindi and more on Crime Tak.
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09 Mar 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:15 PM)
लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जेलेंस्की का ये बयान युद्ध के 14वें दिन आया. यानी इन 14 दिनों में युद्ध की ज्वाला में यूक्रेन काफी हद तक तबाह हो गया. परिवार बिखर गए. जिंदगी भर की मेहनत आंखों के सामने बर्बाद हो गई. यहां बता दें कि असल में रूस इन्हीं दो प्रमुख मांगों को लेकर युद्ध में उतरा ही था.
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रूस की यही मांग थी कि हमारी सीमा से सटा पड़ोसी देश यूक्रेन NATO का सदस्य नहीं बने. और लुहांस्क व डोनेट्स्क की मांग पूरी की जाए. अगर रूस की इन मांगों को समझने में आपको भी थोड़ी परेशानी आ रही है तो ऐसे समझिए.
भारत-पाकिस्तान के उदाहरण से समझिए रूस-यूक्रेन युद्ध को
पहले आप नाटो देशों के इस कानून को समझ लीजिए. नाटो में कुल 30 देश हैं. इनमें सबसे ज्यादा तूती अमेरिका की बोलती है. यानी नियम-कानून बनाने के मामलों में अमेरिका ही नाटो को चलाता है. अब सबसे बड़ी बात. वो ये कि अगर कोई देश NATO संगठन के किसी भी सदस्य देश पर अटैक करता है तो सभी 30 देश मिलकर उस पर हमला कर देंगे.
लेकिन यही नाटो संगठन कभी भी ये नहीं कहता है कि नाटो सदस्य देश किसी दूसरे देश पर हमला नहीं करे. मतलब ये कि अगर कोई कमजोर देश भी नाटो का सदस्य है और गैर नाटो कंट्री में अटैक करे तो कोई दिक्कत नहीं. लेकिन दूसरा देश अगर नाटो सदस्य पर अटैक करेगा तो नियमानुसार सभी नाटो देश मिलकर उसे दुश्मन बना लेंगे और किसी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे.
अब रूस-यूक्रेन युद्ध को ऐसे समझते हैं. उदाहरण के लिए आप पाकिस्तान और भारत के जरिए रूस-यूक्रेन के युद्ध को समझिए. अब जिस तरह से पाकिस्तान अक्सर भारत से कश्मीर की मांग को लेकर धमकी देता रहता है. कई बार हमले का प्रयास भी करता है. लेकिन वही पाकिस्तान अगर NATO की सदस्यता लेने की बात करे और मान लीजिए NATO का सदस्य बन भी जाए तो क्या होगा?
अब पाकिस्तान बार-बार भारत पर अटैक कर सकेगा लेकिन भारत मजबूर होकर कभी भी पाकिस्तान पर अटैक नहीं कर सकेगा. अगर गलती से भारत ने पाकिस्तान पर हमला कर भी दिया तो NATO कानून के अनुसार सभी 30 देश मिलकर भारत पर अटैक कर देंगे.
इसलिए जाहिर है ऐसी स्थिति आने पर भारत हर कीमत पर पाकिस्तान का विरोध करेगा और चाहेगा कि पाकिस्तान लिखित में उसे ये गारंटी दे कि वो कभी भी NATO का सदस्य नहीं बनेगा. या फिर NATO ही ये आश्वासन दे कि वो पाकिस्तान को नाटो का सदस्य नहीं बनाएगा.
रूस ने अमेरिकी तर्ज पर किया था यूक्रेन पर हमला
Ukraine Russia: ये तो सिर्फ समझाने के लिए आपको उदाहरण दिया था लेकिन ये रियल कहानी रूस और यूक्रेन के लिए लागू होती है. क्योंकि जैसे ही यूक्रेन NATO का सदस्य बन जाएगा तो वही नाटो देश रूस को आंखे दिखाएगा. रूस से सटी यूक्रेन की सीमा पर खड़े होकर रूस की आंखों में किरकिरी बन जाएंगे. वैसे ही अमेरिका और रूस में छत्तीस का आंकड़ा है.
इस तरह अगर नाटो का सदस्य यूक्रेन बन जाएगा तो रूस की सुपर पावर में दूसरे नंबर की बादशाहत रहते हुए भी हालत बिना दांत वाले शेर की तरह हो जाएगी. जो सिर्फ दहाड़ तो सकेगा लेकिन अगर कोई छोटा और कमजोर देश भी उस पर अटैक करे तो उसे चुप रहने की मजबूरी हो जाएगी.
इसके अलावा, जिस डोनेट्स्क और लुहांस्क पर जेलेंस्की समझौते की बात कर रहे हैं, उन दो राज्यों के बारे में भी आपको बताते हैं. असल में डोनेट्स्क और लुहांस्क दोनों रूस को समर्थन देते हैं. वैसे ही जैसे पहले क्रीमिया था. अब दोनों ने लिखित रूप में यूक्रेन से अलग होने के लिए रूस से समर्थन मांगा. ये समर्थन 20 फरवरी को रूस से मांगा गया था.
इसी के बाद रूस ने संयुक्त राष्ट्र के कानून के तहत मदद मांगने पर दोनों राज्यों के समर्थन में यूक्रेन पर अटैक करता है. ऐसे ही अटैक अमेरिका भी कई देशों में कर चुका है. लिहाजा, अमेरिकी हथकंडे को अपनाकर ही रूस ने ये हमला किया था.
लेकिन रूस की असली वजह यही थी कि अगर यूक्रेन भविष्य में NATO का सदस्य बन गया तो अमेरिकी समेत 30 देश उस पर अटैक कर सकते हैं और उसकी देश की सीमा पर आसानी से घेराबंदी कर सकते हैं. यही नहीं, यूक्रेन और रूस सीमा पर काला सागर यानी ब्लैक-सी तक भी नाटो की पहुंच हो जाएगी जो उसके लिए बहुत बड़ा खतरा है.
अब जेलेंस्की हीरा यो कुछ और...
अब सवाल वही है कि अगर यूक्रेन के राष्ट्रपति इस पूरी कहानी को समझ रहे थे तो बार-बार नाटो से समर्थन लेने की बात कहकर रूस को उकसा क्यों कर रहे थे. अगर यूक्रेन में मुकाबला करना की क्षमता थी तो दूसरे के भरोसे क्यों थे.
अगर क्षमता नहीं थी तो फिर पूरे देश को इस युद्ध के खौफनाक हालात में क्यों झोंक दिया. शुरुआत में यूक्रेन के राष्ट्रपति को हीरो भी कहा गया लेकिन पूरी कहानी को समझते हुए आखिर क्या मिला.
एक घर को बनाने और संवारने में लोगों को कई साल लग जाते हैं लेकिन इस युद्ध कुछ सेकेंड में ही सबकुछ खत्म कर दिया. अब जरा सोचिए कि आखिर इस युद्ध से क्या मिला. अब यूक्रेन न नाटो का सदस्य रहेगा और दोनों राज्यों पर भी समझौता करने को तैयार है.
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