चंबल की घाटी, चंबल की नदियों के इर्द गिर्द है। इसमें यूपी और एमपी के कई ज़िले आते हैं, अब वहां के तकरीबन सभी इलाकों में खामोशी है। डाकुओं का जो खैाफ इलाके के लोगों पर सिर चढ़कर बोलता था अब वो नजर नही आता। हालांकि इन इलाकों में डाकुओं की चर्चा अभी भी होती है, बुज़ुर्ग अपनी आंखों देखी सुनाते हैं और नई पीढ़ी उन्हीं की दास्तानों को आगे सुनाती है। क्राइम तक की टीम उत्तर प्रदेश में पड़ने वाले चंबल के इलाकों में गई, इन इलाकों में हमने फिर से वही पुरानी दास्तान छेड़ी। शुरु शुरु में तो लोग बात करने से हिचकिचाए लेकिन बाद में उन्होंने उन पुरानी यादों को हमसे बांटना शुरु कर दिया।
चंबल की इनसाइड स्टोरी : इतने सालों तक चंबल पर डाकुओं ने कैसे किया राज?
चंबल की इनसाइड स्टोरी : इतने सालों तक चंबल पर डाकुओं ने कैसे किया राज? inside story of chambal
ADVERTISEMENT
09 Feb 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:13 PM)
ADVERTISEMENT
एक बड़ी अजीब सी चीज़ जो हमें इन इलाकों में देखने को मिली, वो ये थी कि जिन्हें हम डाकू, डकैत, दस्यू कहते हैं, अपराधी कहते हैं। उन्हें इन इलाकों में लोग डकैत के बजाए बागी कहना ज्यादा पसंद करते हैं। शुरु शुरु में तो आपको इसके फर्क का अहसास भी नहीं होगा लेकिन जैसे जैसे आप इनके साथ वक्त बिताते जाएंगे वैसे वैसे ये आपको ये भी यकीन दिलाने लगेंगे कि अपराधी और बागी में फर्क होता है। हर डाकू, हर दस्यु सुंदरी की अपनी अपनी कहानी है, मोटा मोटी सब पर ज़ुल्म हुआ, या कोई बदले की आग में झुलस गया। इक्का दुक्का शौकिया डाकू बनने वालों को छोड़ दें तो डाकू बनने की सबकी कहानी एक सी है।
गांववालों के मुताबिक चंबल घाटी के डाकुओं के भी अपने उसूल और आदर्श हुआ करते थे। अमीरों को लूटना और गरीबों की मदद करना चंबल के डाकुओं का शगल हुआ करता था। बहुत से लोगों का मानना है कि ज़ुल्मो-सितम के खिलाफ विद्रोह करने वाले दस्यु भले ही पुलिस की फाइलों में डाकू के नाम से जाने जाते हों, लेकिन उनके नेक कामों से लोग उन्हें सम्मान से बागी ही मानते हैं। बागी यानी ज़ुल्म के खिलाफत बगावत करने वाला, डाकू मानसिंह और मलखान सिंह जैसे दस्यु सरगनाओं की कहानियों और आदर्श की मिसाल यहां के लोग बड़ी ही दिलचस्पी से सुनाते है।
दस्यु मलखान सिंह जिसे गांव वाले चंबल के राजा के तौर पर याद करते हैं, उसके खिलाफ करीब 113 मामले क़त्ल से जुड़े थे, लूट, डकैती और किडनैपिंग की तो गिनती मुश्किल थी। इसी तरह डाकू मोहर सिंह, श्रीराम, लालाराम, विक्रम मल्लाह, निर्भय गुर्जर, रज्जन गुर्जर, फक्कड़ जैसे कई दर्जन ऐसे डाकू हुए जिन्हें लोग डाकू नहीं बल्कि बागी कहते हैं।
कुछ बुजुर्ग बताते है कि चंबल के पुरानी पीढ़ी के डाकू महिलाओं की बहुत इज़्ज़त करते थे, पहले के डाकू डकैती के वक्त महिलाओं को हाथ नहीं लगाते थे। यहां तक कि महिलाओं का मंगलसूत्र डाकू कभी नहीं लूटते थे अगर डकैती वाले घर में बहन-बेटी आ रुकी है तो इज्जत पर हाथ डालने की बात तो दूर डाकू उनके गहनों तक को हाथ नहीं लगाया करते थे। पहली और दूसरी पीढ़ी के डाकू इन उसूलों को करीब पूरी तरह से मानते थे तब गिरोह में किसी महिला सदस्य एंट्री बैन थी, लेकिन तीसरी पीढ़ी के डाकुओं ने अपने आदर्श बदल लिए। तीसरी पीढ़ी के डाकूओं ने न सिर्फ महिलाओं पर बुरी नजर डालनी शुरु की, बल्कि उन्हें किडनैप कर बीहड़ में भी लाने लगे।
अस्सी और नब्बे के दशक में जितनी महिला डकैत हुई, उनमें से ज्यादातर महिलाओं को गिरोहों के सरदार किडनैप कर के लाए थे। इस फेहरिस्त में पुतलीबाई का नाम सबसे पहले आता है, बीहडों में पुतलीबाई का नाम एक बहादुर महिला डकैत के तौर पर लिया जाता है। पुतलीबाई की हिम्मत की मिसाल देते हुए डाकू मलखान सिंह ने कहा था कि वो मर्द थी और मुठभेड़ में जमकर पुलिस का मुकाबला करती थी।
पुतलीबाई के बाद फूलनदेबी, कुसमा नाइन और सीमा परिहार का नाम दस्यु सुंदरियों में आया, 90 के दशक में चंबल के बीहड़ों में फूलन देवी, दस्यु सुंदरी कुसमा और सीमा परिहार ने अपने आतंक का डंका बजा रखा था। दस्यु सरगना विक्रम मल्लाह के साथ फूलन देवी और बीहड़ के गुरु कहे जाने वाले दस्यु सरगना रामआसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ के साथ कुसमा नाइन। बताया जाता है कि विक्रम मल्लाह का साथ फूलन ने और फक्कड़ का साथ कुसमा ने आखिर तक नहीं छोड़ा। हालांकि सीमा परिहार को उठा कर बीहड़ लाए लालाराम से सीमा की शादी तो हुई लेकिन दोनों जल्दी ही अलग हो गए। इसके अलावा रज्जन गूजर के साथ रही लवली पांडे की जोड़ी काफी चर्चित हुई, रज्जन ने भरेह के ही एक मंदिर में डाकुओं की मौजूदगी में लवली से शादी रचा ली।
इतिहास की किताब और पुलिस की फाइलों में इन दस्यु सरगनाओं और महिला डकैतों के अपराधों के किस्से तो दर्ज हैं। मगर आज चंबल में न तो दस्यु सुदरियों की चूड़ियां खनकती हैं और न ही अब गोलियों की तड़तड़ाहट ही सुनाई पड़ती है। चंबल के ज्यादातर डकैत मारे जा चुके है, कुछ छोटे गिरोह जो बचे भी है वो चुपचाप गिरोह को मजबूती देना चाहते है लेकिन दे नही पा रहे हैं।
ADVERTISEMENT