Gorakhpur Hotel Manish Gupta Murder case : उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में कानपुर के रियल एस्टेट कारोबारी मनीष गुप्ता (Manish Gupta) की होटल में चेकिंग के नाम पर पुलिसवालों ने पीट-पीटकर मार डाला था. जिस तरह से चेकिंग के नाम पर ये आतंक मचाया गया, क्या वैसा करने का पुलिस को अधिकार है?
गोरखपुर में मनीष गुप्ता की जैसे पुलिस ने चेकिंग की, क्या वैसे होटल में कभी भी पुलिस को चेकिंग का अधिकार है?
Like Manish Gupta was checked by the police in Gorakhpur, do the police ever have the right to check in the hotel? Gorakhpur manish gupta murder case special report
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30 Sep 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:06 PM)
आख़िर ऐसा कब होता है कि पुलिस किसी की भी जांच कर सकती है. दरअसल, देश में जब कोई ऐतिहासिक दिन जैसे 15 अगस्त या 26 जनवरी का दिन होता है तो कुछ दिन पहले से ही औचक जांच की जाती है.
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जिसमें होटल, रेस्तरां से लेकर रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और भी हर किसी जगह की पुलिस तलाशी लेती है. इसके अलावा, फेस्टिव सीजन जैसे होली, दिवाली, ईद या इसी तरह के अन्य त्यौहार के आसपास भी पुलिस चेकिंग अभियान चलाती है.
लेकिन इन दोनों वजहों में से 27 सितंबर के दिन ना तो 15 अगस्त था और ना 26 जनवरी. और ना ही आसपास में कोई बड़ा त्यौहार. उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड डीएसपी और इन्वेस्टिगेटिव ऑफिसर रहे गजेंद्र सिंह बताते हैं कि इन ख़ास दिनों के अलावा भी पुलिस को सीआरपीसी में ये अधिकार है कि वो संदेह के आधार पर किसी की भी चेकिंग कर सकती है.
लेकिन इसके लिए भी दो शर्तों का होना ज़रूरी है. मसलन, पहला कि कोई संदिग्ध अपराधी या फिर गैर जमानती धारा के वॉन्टेड क्रिमिनल के किसी होटल में रुके होने की जानकारी मिले. लेकिन इस मामले में कानपुर के कारोबारी मनीष गुप्ता ना ही कोई पेशेवर अपराधी थे और ना ही उन पर कोई क्राइम केस दर्ज था. लिहाजा, ये भी संभावना ख़त्म हो जाती है.
SSP करा सकते हैं चेकिंग, लेकिन...
अब आती है दूसरी बात. वो ये है कि जिले का एसएसपी अपने पावर का इस्तेमाल करते हुए कभी भी किसी इस तरह की चेकिंग का आदेश जारी कर सकते हैं. इसके लिए बकायदा हर थाने की पुलिस को थाने की जीडी यानी जनरल डायरी में छापेमारी की जानकारी लिखकर वहां चेकिंग करने जाना जाता है.
लेकिन इस केस में गोरखपुर के एसएसपी विपिन ताडा ने पहले कोई ऐसी जानकारी नहीं दी कि जिसमें ये कहा जाए कि उन्होंने जिले के सभी होटलों में औचक निरीक्षण करने का आदेश दिया था. अगर ऐसा होता तो 27 सितंबर की रात में गोरखपुर के सभी होटलों में चेकिंग की जाती. लेकिन ऐसा नहीं था.
अगर संदिग्ध थे तो चेकिंग के दौरान मारा क्यों?
रिटायर्ड पुलिस अधिकारी गजेंद्र सिंह बताते हैं कि नियम के मुताबिक, अगर होटल में उन लोगों के संदिग्ध होने की जानकारी थी तो फिर उनके दोनों हाथ ऊपर कराकर तलाशी ले सकते थे. इसमें कोई मारने-पीटने का कोई सवाल ही नहीं उठता.
अब ऐसे में होटल में चेकिंग के लिए जो नियम और क़ायदे थे उनमें से तो एक में भी एसएचओ जगत नारायण सिंह और उनके 5 अन्य साथियों की तलाशी के अभियान का तरीका फिट नहीं बैठता. लिहाजा, अब आख़िरी में ही एक ही सवाल उठता है. वो है वसूली और कमाई का. अभी वसूली, कमाई और चेकिंग के नाम पर बिज़नेसमैन से ब्लैकमेलिंग ही एक जरिया बचता है जो तीन सितारे वाले ख़ाकीवर्दी धारी और उनकी टीम पर फिट बैठता है.
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में भी सबूत, गिरने से नहीं, मारने से हुई मौत
कानपुर के कारोबारी मनीष गुप्ता की मौत को लेकर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी सामने आ गई है. इस रिपोर्ट में मनीष पर 4 जगहों पर जख्म के निशान का जिक्र है. सिर के बीच वाले हिस्से में 5 सेमी लंबे और 4 सेमी चौड़े घाव के निशान की बात कही गई है.
इसके अलावा उनके दाहिने हाथ की कलाई पर डंडा मारने का भी निशान है. बांई आंख की ऊपरी परत पर चोट के निशान मिले हैं. इसके अलावा भी 2 सेमी के चोट के निशान मिले हैं.
क्या कहते हैं डॉक्टर
इस पर एक प्राइवेट अस्पताल के एमडी डॉ. कपिल त्यागी बताते हैं कि अगर कोई बेड से कमरे में लड़खड़ाकर गिर जाए तो उसे एक या दो जगह मामूली चोट आएगी. इस तरह से एक यो दो इंच के गहरे घाव नहीं होंगे. इसके अलावा चोट भी किसी एक जगह के आसपास ही होगी. शरीर पर अलग-अलग कई जगहों पर चोट नहीं आती. जब तक कि उसे कोई मारे नहीं.
इस तरह सभी तथ्यों से साफ हो जाता है कि पुलिसवाले कुछ खास उगाही जैसे मकसद से होटल में कारोबारी की चेकिंग करने आए थे और उसमें असफल होने पर पिटाई करते हुए इस घटना को अंजाम दे दिया. यही वजह है कि घटना के बाद से आरोपी फरार हो गए और हैरानी वाली बात है कि पुलिस उन्हें गिरफ्तार भी नहीं कर पाई है.
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