यमुना नदी से लगा कानपुर देहात का बेहमई गांव, वो गांव जिसने 14 फरवरी 1981 को शाम 4 बजे वो आतंक देखा जो तारीख़ में दर्ज हो गया। आज से ठीक 41 साल पहले बेहमई गांव में फूलन देवी ने अपने साथ हुए ज़ुल्मों सितम का बदला इस गांव के 22 ठाकुरों को लाइन में खड़ा कर के सीने में गोली मार कर लिया था।
Chambal : चंबल के बीहड़ में आज भी है इन क़ातिल हसीनाओं का ख़ौफ़! बाकी हैं दहशत के निशान
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09 Feb 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:13 PM)
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ये तस्वीर बेहमई गांव में बने शहीद स्मारक की है जिसमें उन 22 लोगों के नाम दर्ज है जिनका दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने नरसंहार किया था। आज भी उन रोज़ को याद कर के इलाके के लोग कांप जाते हैं। फूलन देवी को बीहड़ में कुख्यात और खूंखार डकैत माना जाता था।
कहते हैं जिसे वक्त और हालात ने डाकू बनने पर मजबूर कर दिया था। कहा जाता है कि इसी बेहमई गांव में फूलन को ना सिर्फ बंधक बनाया गया बल्कि उसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था।
फूलन की कहानी ऐसी है कि डाकू होने के बाद लोगों की उससे हमदर्द होती है, हालांकि जुर्म को कभी जस्टीफाई नहीं किया जा सका। जुर्म जुर्म होता है, और मुजरिम मुजरिम होता है। जहां तक फूलन देवी की कहानी की बात है तो महज 16 साल की उम्र में हालात ने फूलन को डाकू बना दिया।
खुद पर हुए ज़ुल्म का बदला लेने के लिए उसने राजपूत समाज के 22 लोगों का कत्ल-ए-आम कर दिया, हालांकि साल 1983 आते आते फूलन देवी बीहड़ से बाहर आ गई और उसने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। कई साल जेल में रहने के बाद जब उसे सलाखों से आज़ादी मिली तो उसने राजनीति का रुख कर लिया। सपा के टिकट पर उसने मिर्जापुर से दो बार लोकसभा चुनाव लड़ा और वो सांसद बनी। मगर साल 2001 में फूलन देवी की दिल्ली में उनके सरकारी घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
चंबल के बीहड़ों में दहाड़ने वाली दस्यु सुंदरियों की कमीं नहीं थी, यहां से ऐसी ऐसी महिला डाकू हुईं जिनसे पुलिस तो छोड़िए कई पुरुष डाकू तक खौफ खाते थे। उन्हीं में से एक और नाम हुआ पुतली बाई का। पुतली बाई को चंबल की पहली महिला डाकू माना जाता है, माना क्या जाता है वो इतिहास में उसका नाम पहली डाकू के तौर पर दर्ज है। हालांकि पुतली बाई उसका असली नाम नहीं था बल्कि उसके घरवालों ने उसे नाम दिया था गौहरबानो। सुल्ताना डाकू को गौहर से प्यार हो गया था और एक रोज़ वो उसे उठाकर अपने साथ बीहड़ ले आया। हालात दोनों एक दूसरे के नज़दीक ले आए और फिर उसने बीहड़ों में ऐसा नाम बनाया जो आजतक इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
डाकू होने एक बात है लेकिन बेरहम होना दूसरी बात है, और बीहड़ों में अब तक किसी महिला डाकू को सबसे बेरहम माना गया तो वो थी कुसमा नाइन। माना जाता है कि कानपुर देहात के बेहमई कांड का बदला लेने के लिए वो डाकू बन गई थी। दरअसल, उस कांड में डाकू फूलन देवी ने 22 राजपूतों की सामूहिक हत्या की थी, जिसके चलते कुसमा ने बाद में 14 मल्लाहों को मौत नींद की सुला दिया था। कुसमा को चंबल की कुख्यात दस्यु सुंदरी माना जाता था, उसने संतोष और राजबहादुर नाम के दो मल्लाहों की आंखें निकाल कर बेरहमी की नई इबारत लिख दी थी।
चंबल में जब खूबसूरत महिला डाकुओं का नाम आता है, तो रेनू यादव का नाम ज़रूर लिया जाता है। चंबल के बीहड़ में वो डाकू चंदन यादव के साथ रही थी, उसके खिलाफ कत्ल, किडनैपिंग और डकैती के कई मामले दर्ज थे। औरैया जिले के जमालीपुर गांव की रेणु को 2003 में डाकू चंदन यादव के गिरोह ने अगवा कर लिया था। ऐसा बताया जाता है कि जब उसका अपहरण हुआ तो उस वक्त वो स्कूल जा रही थी। काफी वक्त तो उसका परिवार उसे तलाशता रहा, पुलिस से गुहार लगाता रहा लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया था। बाद में डाकुओं ने उसके घरवालों से फिरौती मांगी थी, मगर उसका परिवार पैसा नहीं दे पाया। बस तभी से वो उस गैंग में ही पली बढ़ी, बाद में उसने इटावा में आत्म समर्पण कर दिया था।
13 साल की एक लड़की को गांव से उठा लिया गया और उस दौर के डाकू लाला राम के हवाला कर लिया। उन दिनों बीहड़ में डाकू लाला राम का राज था, उनके नाम से लोग थर्राते थे। उस लड़की का नाम था सीमा परिहार। बीहड़ में रहने के दौरान सीमा को डकैतों का रहन सहन इस कदर पसंद आया कि उसने भी डाकू बनने की ठान ली। जवानी की दहलीज तक पहुंचते पहुंचते सीमा परिहार का नाम चंबल में आतंक बन गया था, उसके सिर पर दर्जनों कत्ल के इल्ज़ाम लगे। और तो और किडनैपिंग के करीब दो सौ से ज्यादा मामले उस पर दर्ज किए गए। हालांकि साल 2000 में सीमा ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। उसपर अब यूं तो सारे मामले खत्म हो चुके हैं, बस एक मामला रह गया जो खत्म हो जाता लेकिन कोरोना ने उनका इंतज़ार बढ़ा दिया। सीमा परिहार का नाम टीवी शो बिग बॉस की वजह से भी चर्चा में आया। हालांकि अब चंबल में ना तो डाकू हैं और ना ही महिला डाकू हैं। अब ये किस्से कहानियों इतिहास में दर्ज हैं।
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