नेताओं की शक्ल में डाकू होते हैं या नहीं होते हैं, इस बहस में पड़ने की बजाए हम आपको बताने वाले हैं कि देश की सियासत में ऐसे कई मौके आये हैं जब किसी असली डाकू ने चुनाव लड़ा हो और संसद या विधानसभा में नेताजी बनकर कदम रखा हो।
ELECTION SPECIAL : जब 'नेता जी' बन गए चंबल के डकैत
ELECTION SPECIAL : जब 'नेता जी' बन गई चंबल के डकैतों की टोली Dacoit turned Politican
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10 Feb 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:13 PM)
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बात साल 1984 की है, उस ज़माने की दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने बंदूक छोड़कर सरेंडर कर दिया। उस वक्त यूपी में मुलायम सिंह की सरकार थी, साल 1993 में यूपी सरकार ने फूलन के ऊपर लगे तमाम आरोप वापस ले लिए और फूलन के जेल से बाहर आने का रास्ता खुल गया। बाहर आते ही उनके लिए नई भूमिका इंतज़ार कर रही थी।
बाहर आते ही फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली। और उन्होंने साल 1996 में मिर्ज़ापुर सीट से एमपी का चुनाव लड़ा और 11वीं लोकसभा के लिए चुनी भी गईं। दो साल बाद दोबारा हुए चुनाव में फूलन देवी हार गईं लेकिन 1999 के चुनाव में वे फिर चुनकर सांसद बनीं। इसी कार्यकाल के दौरान उनकी ह्त्या हो गयी।
फूलन की तरह सीमा परिहार भी दस्यु सुंदरी थीं, सीमा परिहार ने भी बंदूक छोड़ने के बाद फूलन देवी की राह पकड़ी थी। और रिहा होने के बाद उन्होंने इंडियन जस्टिस पार्टी ज्वाइन की। सीमा ने यूपी की भदोई सीट से चुनाव लड़ा और बहुत कम अंतर से सीट हार गईं। इस तरह वो फूलन देवी की तरह सांसद बनने से चूक गईं। बीते बरसों में जब उन्हें रियल्टी शो बिग बॉस के लिए चुना गया था, तो वे एक बार सुर्ख़ियों आ गयी थीं। हालांकि अभी भी वो सियासत में सक्रिय हैं।
खूंखार डाकू प्रेम सिंह भी बंदूक और बीहड़ छोड़कर सियासी गलियारों में धाक जमाने वाले डकैतों में अहम हैं। किसी ज़माने में चंबल के बीहड़ों के एकछत्र डकैत रहे प्रेम सिंह को कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह सामान्य और सियासी जिंदगी में लाए थे। बाद में प्रेम सिंह 1993, 1998 और 2013 में चित्रकूट से विधायक रहे, प्रेम सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था।
इसी तरह डाकू मलखान सिंह भी समर्पण करने के बाद अपनी पंचायत प्रधान चुने गए थे, जबकि डाकू मनोहर गुर्जर नगरपालिका के अध्यक्ष बने थे। हालांकि मौजूदा वक्त में जब डकैती ही नहीं बची तो इस बैकग्राउंड से नेता भी ना के बराबर बचे हैं।
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