25 साल के ख़ौफ़ के बाद पहली बार खुल के वोट डालेगा बिकरू, कभी विकास दुबे के इशारे पर पड़ते थे वोट!

चला गया विकास दुबे की रंगबाज़ी का ज़माना. हालांकि सरकारी खातों में अब भी 'अति संवेदनशील' है बिकरू, Read more crime news in Hindi, crime story and viral photo CrimeTak.

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17 Feb 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:13 PM)

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कानपुर के बिकरू से मनीषा झा और विनोद शिकारपुरी के साथ सुप्रतिम बनर्जी की रिपोर्ट

एक दौर था जब कानपुर के नज़दीक चौबेपुर, बिल्हौर, मिसरिक जैसे तमाम इलाक़ों के सियासी रास्ते इसी बिकरू गांव से होकर निकलते थे. किसी को भी इन विधानसभा या लोक सभा सीटों पर चुनाव लड़ना हो और वो गैंगस्टर विकास दुबे के दरबार में हाज़िरी ना लगाए, ये एक नामुमकिन सी बात थी. हाज़िरी के साथ-साथ चढ़ावे का भी रिवाज था. फिर जिसका चढ़ावा जितना वज़नी होता, उसे इस इलाक़े के 25 से 30 गावों के लगभग 50-60 हज़ार वोट एक मुश्त मिल जाया करते थे. क्योंकि चढ़ावे के हिसाब से ही 'विकास भैया' ये तय करते थे कि इस बार उनके इलाक़े के लोग किसे वोट देने वाले हैं. यानी 'विकास भैया' का जिस पर भी निगाहे-करम हुआ, समझो उसके पौ बारह हो गए.

पहली बार 'खुली हवा' में सांस ले रहा है बिकरू

लेकिन अब ये बातें गुज़रे ज़माने की हैं. ये नया बिकरू है. वो बिकरू जो लगभग 25 साल बाद अपनी मर्ज़ी से और अपनी आज़ाद सियासी सोच के मुताबिक वोट डालनेवाला है. क्योंकि गैंगस्टर विकास दुबे की मौत के बाद ये यूपी में हो रहा पहला बड़ा चुनाव है और इस चुनाव में ना तो विकास दुबे का ख़ौफ़ है और ना ही उसके किसी गुर्गे का. ये और बात है कि क़ानून के बही खातों में अब भी बिकरू एक 'अति संवेदनशील' बूथ है और जहां चुनाव के लिए बाक़ायदा सिक्योरिटी बंकर बनाए गए हैं.

ढाई दशकों तक चला गैंगस्टर विकास दुबे का सिक्का!

बिकरू के लोग खुल कर तो नहीं, लेकिन दबी ज़ुबान में ये बताते हैं कि कैसे अब से कुछ साल पहले तक सिर्फ़ उनके ही नहीं बल्कि आस-पास के कई गावों पर विकास दुबे के नाम का सिक्का चला करता था. विकास दुबे जो कह देता था, वो पत्थर की लकीर होती थी. फिर चाहे वो चुनाव में किसी को हराने-जिताने की बात हो या फिर कोई और फ़ैसला करने की. उसे काटने की हिम्मत किसी में नहीं थी. उसने इलाक़े के छुटभैये रंगबाज़ों को मिलाकर अपनी एक बुलेट टीम बनाई थी, जो विकास दुबे के हर सही ग़लत काम को अंजाम तक पहुंचाते थे. इन कामों में चुनाव में हार-जीत का फ़ैसला करवाने के साथ-साथ गांव के डेवलपमेंट के लिए आनेवाले पैसों के बंदरबांट का खेल भी शामिल था.

बड़े नेता भी लगाते थे दरबार में हाज़िरी!

ये विकास दुबे का दबदबा ही था कि सपा सरकार में मंत्री रह चुके शिव कुमार बेरिया, कांग्रेस के सांसद राजाराम पाल, सपा सरकार में ही राज्य मंत्री रह चुकी अरुणा कोरी जैसे बड़े नेता भी उसके दरबार में हाज़िरी लगाया करते थे.

विकास दुबे ने 'विकास' भी करवाया था

ऐसा नहीं है कि विकास दुबे ने किसी का भला नहीं किया. बहुतों की नज़र में विकास इस इलाक़े का रॉबिनहु़ड था, जो हमेशा ग़रीबों की मदद करता था. लेकिन ये भी सही है कि वो बेहद की क्रूर और दज्जाल क़िस्म का शख़्स था. लोग बताते हैं कि उसने जो मन में आया वो किया. उसने अपने गांव का विकास भी करवाया. लोग बताते हैं कि पूरे इलाक़े में बिकरू ही वो इकलौता गांव था, जहां पांच घंटे की लगातार बारिश के बावजूद पांवों में कीचड़ नहीं लगता था. और शायद ग़रीबों की मदद और इन विकास कार्यों की बदौलत ही उसके गांव के लोग उसके जुर्म की वारदातों में भी उसका साथ देते थे. जब-जब पुलिस विकास दुबे को पकड़ने आती थी, गांव के लोगों की तो बात छोड़िए, महिलाएं तक उसके लिए ढाल बन कर खड़ी हो जाया करती थी.

थाने में घुस कर ली थी बड़े नेता की जान!

विकास दुबे को लेकर कई कहानियां हैं. कहते हैं उसके जो मन में आया, उसने वो किया. बीजेपी सरकार में राज्य मंत्री रह चुके संतोष शुक्ला को विकास दुबे ने शिवली के भरे थाने में अंदर घुस कर गोलियों से छलनी कर दिया था. बीसियों पुलिसवालों की मौजूदगी में उन्हें खुलेआम पांच गोलियां मारी थीं. लेकिन इसके बावजूद उसका बाल भी बांका नहीं हुआ. तमाम चश्मदीद मुकर गए और कोर्ट ने विकास दुबे को इतने जघन्य हत्याकांड में भी बाइज़्ज़त बरी कर दिया. कहते तो यहां तक हैं कि विकास दुबे ने इस मामले में सज़ा से बचने के लिए पैसा भी पानी की तरह बहाया और अदालत से फ़ैसला आने के फ़ौरन बाद उसने लोगों को बांटा गया वो पैसा फिर से वसूल लिया.

क़त्ल कर पुलिसवालों को देता 'गुड वर्क' का क्रेडिट

विकास दुबे अपने दुश्मनों का बड़ी ही बेरहमी से क़त्ल कर दिया करता था. यहां तक कि कई मामले तो ऐसे भी हुए, जिनमें विकास दुबे ने अपने ही जैसे किसी क्रिमिनल को मौत के घाट उतारा और पुलिस वालों को एनकाउंटर और गुड वर्क की क्रेडिट दे दी. यानी आम के आम, गुठलियों के भी दाम. क़त्ल किया, मुक़दमे से भी बच गए. उधर, पुलिस को पका-पकाया माल मिल गया. एनकाउंटर की कहानी गढ़ी और नंबर भी बना लिए.

बिकरू में बाज़ी पलटने की बारी!

लेकिन अब जबकि हालात बदल चुके हैं, बिकरू खुली हवा में वोटिंग के लिए तैयार है. ऐसे में दूसरे गांवों की तरह बिकरू के भी अपने चुनावी मुद्दे हैं. बिकरू के बहुत से लोग गांव में चकबंदी चाहते हैं. इसी बहाने विकास दुबे एंड कंपनी के हथियाए गए ज़मीन वापस लेने का इरादा है. इसके अलावा बिजली पानी जैसे मसले तो हैं ही.

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