गुड्डू पंडित और हाजी यूनुस के जुर्म की 'जनम-कुंडली' ये हैं बुलंदशहर के असली 'चुनावी रंगबाज़'

गुड्डू पंडित और हाजी यूनुस के जुर्म की 'जनम-कुंडली' ये हैं बुलंदशहर के असली 'चुनावी रंगबाज़'

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30 Jan 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:12 PM)

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मुकुल शर्मा, मनीषा झा और विनोद शिकारपुरी के साथ सुप्रतिम बनर्जी की रिपोर्ट

UP ELECTION 2022: गुड्डू पंडित (GUDDU PANDIT) और हाजी यूनुस. बुलंदशहर ज़िले के वो दो नाम जिन्हें इस इलाक़े का बच्चा-बच्चा जानता है. इसलिए नहीं कि ये नेता हैं, चुनाव लड़ते हैं, बल्कि इसलिए कि नेता होने के साथ-साथ इन दोनों के साथ रंगबाज़ का टैग भी चस्पा है. अब सवाल ये है कि आख़िर वो कौन सी बात है, जो इन्हें रंगबाज़ बनाती है? इन पर कितने मुकदमे हैं? क्यों ये बुलंदशहर में अपना अलग ही असर रखते हैं, तो आज चुनाव के रंगबाज़ में बात बुलंदशहर के इन्हीं दो किरदारों की. उनके जुर्म की जनम-कुंडली की.

गुड्डू पंडित के साथ किसने कर डाला 'खेल'?

सबसे पहले बात ज़रा गुड्डू पंडित की करते हैं. इस बार गुड्डू पंडित के साथ बड़ा धोखा हुआ है. वो कहावत आपने सुनी है ना, ना ख़ुदा ही मिला और ना विसाल-ए-सनम. अपने पंडि-जी की वही हालत हुई है. गुड्ड पंडित बुलंदशहर के डिबाई विधान सभा क्षेत्र से सपा और बसपा के टिकट पर दो बार चुनाव जीत चुके हैं यानी विधायक रह चुके हैं. इस बार भी चुनाव आते ही उनके सियासी अरमान हिलोरें मारने लगे थे. उन्होंने बीजेपी से लेकर सपा तक कई पार्टियों से अपनी टिकट लेने और अपनी गोटी लाल करने की कोशिश की, लेकिन बीजेपी ने जहां पंडि-जी के लिए अपने दरवाज़े ही बंद कर लिए, वहीं सपा ने तो पार्टी में लेकर भी टिकट के मामले में ठेंगा दिखा गया. अब बंदा मरता क्या ना करता? जनसेवा का जज़्बा इतना प्रबल था कि उस शिवसेना का ही दामन थाम लिया, जिसका इस इलाक़े में कोई नामलेवा तक नहीं था. सोचा... चलो निर्दलीय लड़ने से तो अच्छा है कि किसी चुनाव चिह्न के सहारे ही वैतरणी पार होने की कोशिश की जाए, लेकिन यहां भी खेल हो गया. भाई पूरे गाजे-बाजे के साथ नामांकन करने पहुंचे. आगे पीछे समर्थकों की टोली चल रही थी. साथ में अपने ही रखे हुए कमांडोज़ टाइप कैरेक्टर्स भी थे. नामांकन भी हो गया. लेकिन ऐन मौक़े पर क़िस्मत पलट गई. पता चला कि पंडि-जी अपना पर्चा ही ठीक से नहीं भर सके और आख़िरकार पर्चा ख़ारिज कर दिया गया. यानी वो हो गया, जो लिख नहीं सकते. बहरहाल, अब गुड्डू भैया करते.. तो सपा में जाने से लेकर पर्चा ख़ारिज होने तक का सारा ठीकरा ही उन्होंने, कल्याण सिंह के सांसद बेटे राजवीर सिंह उर्फ़ राजू भैया पर फोड़ दिया. कहा, "राजू भैया की सरकार में तो सेटिंग है ही, सपा में भी है. उन्होंने सपा में मेरा टिकट करवाया और शासन-प्रशासन पर दवाब डाल कर मेरा पर्चा भी कैंसल करवा दिया. क्योंकि उन्हें पता था कि अगर मैं चुनाव लड़ा तो इस बार भी जीत मेरी ही होती." ख़ैर अब बात गुड्डू पंडित के गुनाहों की.

रेप के इल्ज़ाम से बदनाम हुए पंडित जी!

वैसे तो गुड्डू पंडित पर इन दिनों 7 से 8 मुक़दमे चल रहे हैं, लेकिन उनका कहना है कि ये सारे मुकदमे उन पर सियासी रंजिश की वजह से डाले गए हैं. उन्होंने ना तो कभी किसी से कुछ लूटा है और ना ही कभी किसी की जान ली. गुड्डू पंडित चैलेंज देते हैं कि उन पर कोई संगीन मुक़दमा आज तक दर्ज नहीं हुआ. ये और बात है कि कुछ साल पहले यही गुड्डू पंडित रेप के मामले में नप गए थे. जिस लड़की ने उन पर इल्ज़ाम लगाया था, एक पत्नी के रहते हुए गुड्डू को उससे दूसरी शादी भी करनी पड़ी थी, लेकिन देर-सवेर दोनों के रास्ते अलग हो गए.

हाजी जी को अपनों से पड़े जान के लाले!

अब बात हाजी यूनुस की. अपने सिर पर 23 से ज़्यादा मुक़दमे लेकर घूमनेवाले यूनुस इस बार सपा के टिकट पर बुलंदशहर सदर विधान सभा चुनाव मैदान में हैं। लेकिन मुक़दमों का दाग़ उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है. सीएम योगी ने इशारों ही इशारों में इस बार हाजी यूनुस को माफ़िया तक कह डाला. ये और बात है कि हाजी जी का कहना है कि उन्होंने किसी से ज़्यादती नहीं कि बल्कि उन पर दर्ज सारे मुकदमों के पीछे पारिवारिक झगड़े हैं. असल में हाजी यूनुस अपने भाई हाजी अलीम के साथ पहले स्लॉटर हाउस चलाया करते थे. लेकिन एक रोज़ अचानक रहस्यमयी हालत में हाजी अलीम का उन्हीं के घर में क़त्ल हो गया. तफ्तीश हुई, तो खुद अलीम के बेटे ही शक के दायरे में आ गए. हाजी यूनुस अपने भाई के काफ़ी क़रीब थे, अलीम के क़त्ल के बाद उन्होंने अपने ही भतीजों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया. इसके बाद तो वार-पलवार और मुकदमेबाज़ी का सिलसिला लगातार आगे बढ़ता रहा. इस कड़ी में पिछले 5 दिसंबर को बुलंदशहर के भईपुरा में एक ऐसी वारदात हुई कि पूरा शहर दहल गया. हाजी युनूस की जान के इरादे से उनकी गाड़ी बीच रास्ते में रोक कर कुछ ग़ुंडों ने उन कम से कम 100 राउंड फायरिंग की. लेकिन फिर करिश्माई तरीक़े से उनकी जान बच गई. और फिलहाल हालत ये है कि जनता की सेवा करने मैदान में उतरे हाजी जी खुद तो हमेशा संगीनों के साये में घिरे रहते हैं और अपनी लोकेशन तक शेयर करने से बचते हैं. आगे क्या होगा.. हाजी जी चुनाव जीतेंगे या सियासी अरमान हवा हो जाएंगे, अब 10 मार्च को ही पता चलेगा.

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