Shams Ki Zubani: एंजेल ऑफ डेथ, यानी वो डॉक्टर जिसने 28 सालों तक किया 250 औरतों का क़त्ल

Shams Ki Zubani: कहानी उस डॉक्टर की जिसने 28 सालों तक इंसानों के भगवान का चोला पहनकर उम्रदराज़ औरतों का यमराज बना रहा और मौत की ऐसी दास्तां लिखी जैसी ब्रिटेन के इतिहास में आजतक किसी ने न सुनी।

CrimeTak

17 Oct 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:28 PM)

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Shams Ki Zubani: क्राइम में आज का क़िस्सा एक ऐसे डॉक्टर का है जिसने डॉक्टरों का एप्रेन शायद पहना ही था अपने दिमाग में पल रही  खतरनाक साज़िशों को अंजाम देने के लिए। हैरानी की बात ये है कि इंग्लैंड में उस डॉक्टर को मौत का मसीहा यानी एंजेल ऑफ डेथ भी कहा जाता था। बताते हैं कि वो उन तमाम मरीजों की फरमान खुद ही लिखता था बल्कि उसे अंजाम देने के बाद उनके मौत के सर्टिफिकेट यानी डेथ सर्टिफिकेट पर खुद ही दस्तखत भी करता था।

ये सनसनीखेज़ क़िस्सा इंग्लैंड के मैनचेस्टर का है। वहां एक डॉक्टर था हारोल्ड शिपमैन। और इस डॉक्टर ने अपनी जुर्म के जीवन में एक दो नहीं न ही दस बीस, बल्कि पूरी 250 लोगों की मौत खुद अपने हाथों से तय की और न सिर्फ तय की बल्कि उनका सर्टिफिकेट भी खुद ही तैयार किया।

और ये सिलसिला पूरे 28 सालों तक बेरोकटोक चलता रहा। सबसे ज़्यादा हैरानी तो इस बात की थी कि वो मरीज़ों को घूम घूमकर मौत बांट रहा था और किसी को उसकी इस हरकत पर कभी शक ही नहीं हुआ। चौंकानें वाला पहलू ये है कि उसके निशाने पर होती थीं उम्रदराज महिलाएं।

Shams Ki Zubani: बताते हैं कि इस एंजेल ऑफ डेथ वाले डॉक्टर हारोल्ड शिपमैन पहले अपने मरीजों का बाकायदा भरोसा जीतता था और फिर उन्हें उस सफर पर रवाना कर देता था जहां मौत का मिलना तय है। डॉक्टर हारोल्ड शिपमैन का मौत देने का तरीका इतना शातिर था कि मरने वाला खुद ही मुस्कुराते हुए मौत की गहरी नींद में सो जाता था और उसके परिजन यही समझ लेते थे कि उनकी बस इतनी ही सांसें बची हुई थीं।

पूरे अस्पताल क्या पूरे शहर में कभी किसी को गुमान में भी ये ख्याल नहीं आया कि एक डॉक्टर सफेद एप्रेन पहनकर इंसानों के बीच भगवान कहे जाने वाले डॉक्टरों के भेष में शैतान बन चुका है और मौत बांटता घूम रहा है।

इस डॉक्टर की शैतानी फितरत के बारे में लोग इसलिए भी अंदाज़ा नहीं लगा पाते थे क्योंकि वो अपनी हरकतों से किसी को भी शुबाह की कोई गुंजाइश ही नहीं देता था। यहां तक कि उस डॉक्टर ने उन तमाम लोगों के अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया जिनके डेथ सर्टिफिकेट पर उसने दस्तखत किए थे।

वो इस बात को पक्का करने कब्रिस्तान पहुँचता था कि उसका मरीज पूरी तरह से मौत की गहरी नींद में सो चुका है, जबकि लोग उसकी इस हरकत को नेक नियति से जोड़कर उसका अभिनंदन करते नहीं थकते थे।

Shams Ki Zubani: अब सवाल उठता है कि आखिर इस डॉक्टर की शातिर चालों के बारे में बात कैसे खुली और उसका ये गुनाह सामने कैसे आया। ये बात 1998 की है। इंग्लैंड के साउथ मैनचेस्टर में एक महिला थी। जिसे अजीब सा अहसास हो रहा था।

दरअसल उन्हें अचानक ये बात खटकने लगी थी कि उस ज़िले के एक अस्पताल में बुजुर्ग महिलाओं की मौत का एक सिलसिला सा चल रहा है। जब उस महिला ने गौर किया तो पाया कि ये तमाम महिलाएं एक ही अस्पताल में इलाज़ करवाने गईं थीं और इलाज के दौरान ही उन सभी की मौत हुई। तब महिला को अजीब सा लगा लिहाजा उसने एक डाटा निकाला।

उस डाटा में महिला ने गौर किया कि मरने वाली तमाम महिलाएँ उम्रदराज ही थीं। यहां तक तो बात समझ में आ रही थी। इसी बीच उस महिला को अपनी छानबीन के दौरान ये भी पता चला है कि एक अस्पताल का एक डॉक्टर आखिर कब्रिस्तान से क्यों उन फॉर्म को पहले से लेकर अपने पास रख लेता है जिन्हें अंतिम संस्कार के वक्त परिजनों से भरवाया जाता था।

और उस पर डॉक्टर के दस्तखत करवाए जाते थे। उस महिला ने गौर किया कि वो डॉक्टर पहले से ही अपनी क्लीनिक पर इन फॉर्म को रखता था।

Shams Ki Zubani: उसके दिमाग में आई शक की ये बुनियादी बात महिला ने अपने दोस्त से साझा की। दोस्त को भी ये बात कुछ अटपटी सी लगी लिहाजा उसने शक की उस बुनियादी बात को पुलिस के अफसर को बताई। पुलिस अफसर ने इस बात को हवा में उड़ाने के बजाए उसकी जांच करने का इरादा किया।

लेकिन पुलिस की जांच में कोई ऐसी बात सामने नहीं आई जिससे उस शक की बात को हवा मिल सके। लेकिन पुलिस ने जांच का सिलसिला रोकने की बजाए उसका दायरा बढ़ाया। इसी बीच पुलिस को एक टैक्सी ड्राइवर मिला। जिसने पुलिस को कुछ ऐसा बताया जिसकी वजह से पुलिस के माथे पर सिलवटें गहरी हो गईं।

असल में उस टैक्सी ड्राइवर ने पुलिस को बताया कि उसने खुद क़रीब 21 ऐसी महिलाओं को उस क्लीनिक तक छोड़ा है जो बेशक उम्रदराज थीं, लेकिन जब उन्हें हॉस्पिटल तक पहुँचाया तो वो अच्छी खासी सेहतमंद दिख रही थीं और बाकायदा अपने पैरों पर चलकर हॉस्पिटल तक गईं थीं, लेकिन अजीब इत्तेफाक था कि इनमें से एक भी ज़िंदा वापस नहीं आई। और इस बात को लेकर खुद टैक्सी ड्राइवर भी हैरान था कि आखिर ये कैसे हो सकता है कि सभी की सभी की मौत हो गई।

उस टैक्सी ड्राइवर की बताई बात पर भी पुलिस ने तफ्तीश करनी शुरू की, मगर उसे फिर भी कोई ऐसा सुराग नहीं लगा जिसमें किसी गड़बड़ी की आशंका की जा सके। पुलिस को तफ्तीश करते हुए तीन महीने बीत गए। मगर उनके हाथ कुछ नहीं लगा। तो पुलिस को लगा कि हो सकता है कि डॉक्टर हारोल्ड शिपमैन पर ये लोग खामख्वाह शक कर रहे हैं लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ है नहीं।

Shams Ki Zubani: इसी बीच शहर की एक पूर्व मेयर कैथलीन की जून 1998 में उनके ही घर पर मौत होने की खबर पूरे शहर में फैल गई। उनकी उम्र 81 साल की थी और वो काफी बूढ़ी भी थीं। चूंकि वो पूर्व मेयर थी लिहाजा पुलिस की टीम उनके घर पर पहुँची और ये तलाश करने लगी कि कहीं इस मामले में किसी तरह की कोई गड़बड़ी जैसी कोई बात तो नहीं है।

लिहाजा पुलिस ने घर पर पहुँचकर पूछताछ की। उसी पूछताछ में पता चला कि कैथरीन की मौत से पहले जिस शख्स से वो आखिरी बार मिली थीं, वो कोई और नहीं बल्कि डॉक्टर हारोल्ड शिपमैन ही था। हालांकि शुरू में पुलिस को लगा कि डॉक्टर हारोल्ड तो एक डॉक्टर के नाते कैथरीन से मिलने आए थे, और वो काफी समय से उनका इलाज भी कर रहे थे। ऐसे में शक जैसी बात पुलिस के दिमाग में नहीं आई। बात आई गई हो गई और कैथलीन के शव को दफना दिया गया।

मगर कैथलीन की मौत के अगले ही रोज कैथलीन की बेटी पुलिस के पास पहुँचती है और अपनी मां की मौत की जांच की मांग करने लगती है। असल में इस जांच की सबसे बड़ी वजह थी कैथलीन की वो वसीयत जिसे देखकर कैथलीन की बेटी का सिर चकरा जाता है। क्योंकि कैथरीन ने अपनी जायदाद में से क़रीब साढ़े तीन करोड़ के बराबर की रकम डॉक्टर हारोल्ड के नाम कर दी थी।

Shams Ki Zubani: बेटी के लिए चौंकने का सबब इसलिए भी था क्योंकि उसने कभी भी उस डॉक्टर को पहले अपनी मां के पास नहीं देखा था। इतना ही नहीं कैथलीन का भी उस डॉक्टर से कोई पुराना नाता नहीं था। आखिरी के दस पंद्रह दिन के दौरान ही उस डॉक्टर का वहां आना जाना हुआ था और इस दौरान ही डॉक्टर हारोल्ड ने उनका इलाज किया था।

ऐसे में वसीयत में इतनी बड़ी रकम देने की और क्या वजह हो सकती है। लिहाजा कैथलीन की बेटी ने अपना शक पुलिस के सामने जाहिर किया। अब पुलिस के सामने एक बार फिर डॉक्टर का नाम सामने आया जिसको लेकर शहर में पहले भी कुछ खुसर फुसर पुलिस सुन चुकी थी।

तब पहली बार पुलिस को उस बात में शक की बू महसूस होती है कि आखिर ये कैसा संयोग है कि शहर की इतनी बुजुर्ग महिलाओं की मौत के साथ एक ही शख्स का नाम जुड़ता दिखाई दे रहा है। लिहाजा पुलिस ने अब नए सिरे से उसकी जांच करने का इरादा किया।

लिहाजा पुलिस ने जांच करने के लिए कैथलीन की जांच को कब्र से बाहर निकाली और उसका फॉरेंसिक जांच के लिए भेज दिया। जांच हुई और मौत की जो वजह सामने आई उसने पुलिस को बुरी तरह से चौंका दिया क्योंकि जांच रिपोर्ट में साफ लिखा था कि अफीम की ज़्यादा खुराक की वजह से कैथलीन की मौत हुई है।

Shams Ki Zubani: पुलिस अब ये पता लगाने में जुट गई कि क्या कैथलीन ड्रग एडिक्ट थी या वो किसी दूसरी दवा की शक्ल में किसी नशे का सेवन करती थी। रिपोर्ट देखकर बेटी हैरान हो गई। जांच आगे बढ़ी तो ये बात साफ हो गई कि शायद कैथरीन को वो डोज़ सिरिंज यानी सुई के जरिए दी गई।

सुई के जरिए दवा की डोज़ तो कोई डॉक्टर ही दे सकता था। अभी पुलिस इस बात की तहकीकात में लगी हुई थी तभी पुलिस को इस बात की भी इत्तेला मिली कि जिस वसीयत का हवाला कैथलीन की बेटी ने किया है वो भी फर्जी है। बात खुली और खुलती चली गई। क्योंकि पुलिस को पता चला है कि वो वसीयत डॉक्टर हारोल्ड शिपमैन ने ही तैयार की थी।

तब पुलिस ने अपनी छानबीन को और पैना और गहरा करना शुरू किया। पुलिस आखिरकार उस कंप्यूटर तक जा पहुँची जहां उस वसीयत को तैयार किया गया था। करीब चार महीने की गहरी छानबीन के बाद 7 सितंबर 1998 को पुलिस आखिरकार डॉक्टर हारोल्ड शिपमैन को गिरफ्तार करती है। इल्ज़ाम था कैथलीन की जान लेना और फर्जी वसीयत तैयार करना।

Shams Ki Zubani: पुलिस ने तफ्तीश का दायरा फैलाया क्योंकि इल्ज़ाम डॉक्टर पर था कि एक हत्या के साथसाथ एक महिला की वसीयत तैयार करके उसकी जायदाद हड़पने की कोशिश की थी। लेकिन संगीन इल्ज़ाम था कि लालच के चक्कर में अपने मरीज़ की एक डॉक्टर ने जान ले ली।

लेकिन इस बिना पर डॉक्टर के खिलाफ पुख्ता केस तैयार नहीं हो पा रहा था लिहाजा पुलिस ने अब डॉक्टर हारोल्ड शिपमैन की कुंडली खंगालनी शुरू कर दी।

और जब पुलिस ने डॉक्टर की कुंडली खंगाली तो वो क़िस्सा निकलकर सामने आया जिसे सुनकर खुद पुलिस भी चौंक उठी। क्योंकि ये कहानी ऐसी थी जो शायद ब्रिटेन के इतिहास में इससे पहले कभी किसी ने नहीं सुनी थी। जब पुलिस के सामने डॉक्टर हारोल्ड शिपमैन की कुंडली सामने आई तो सारा कच्चा चिट्ठा सामने आ गया।

1948 में हारोल्ड शिपमैन का जन्म नॉटिंघम में हुआ था। हारोल्ड अपनी मां से बेहद प्यार करता था। लेकिन हारोल्ड जब 11 साल का  था उस वक़्त उसकी मां की कैंसर की बीमारी से मौत हो गई थी। हारोल्ड ने देखा था कि उसकी मां के इलाज़ के दौरान उसे अफीम से तैयार होने वाले मॉर्फीन के इंजेक्शन दिए जाते थे, बावजूद इसके उसके बचाया नहीं जा सका।

तभी हारोल्ड ने ये महसूस किया कि उसकी मां को डॉक्टर इलाज के दौरान जो इंजेक्शन देते थे उससे उसकी मां अपना दर्द भूलकर सो जाया करती थी।

Shams Ki Zubani: अपनी मां की मौत के बाद ही हारोल्ड शिपमैन ने तय किया कि वो डॉक्टर बनेगा लेकिन किसी को बचाएगा नहीं बल्कि उन्हें धीमी और मीठी नींद देकर उन्हें मौत के घाट उतारेगा। इस इरादे को तय करने के बाद ही हारोल्ड शिपमैन ने पढ़ाई शुरू की और डॉक्टर बना।

1970 में हारोल्ड शिपमैन डॉक्टर बनकर एक अस्पताल के साथ जुड़ गया। और वहां से उसने अपनी साज़िश पर काम करना शुरू किया। डॉक्टर हारोल्ड ने अपने इलाज़ से अपने मरीज़ों का भरोसा जीतना शुरू किया। वो मरीज़ों के साथ बहुत तमीज़ से पेश आता और उनसे मीठी मीठी बातें करता था।

इसी दौरान शिपमैन ने एक साजिश रची और तय किया कि वो सभी को नहीं मारेगा बल्कि उम्रदराज औरतों को अपना शिकार बनाएगा। ताकि वो शक के दायरे से बाहर ही रहे। वर्ना उसका भेद जल्दी खुल सकता है। उसके बाद उसने उन तमाम औरतों को अपना निशाना बनाना शुरू किया।

उसने अपनी साज़िश को अंजाम देने के लिए भरोसे को सबसे पहला हथियार बनाया ताकि वो उम्रदराज औरतों का भरोसा जीत सके। और इलाज के बहाने डॉक्टर हारोल्ड शिपमैन उन्हें अफीम की खुराक देना शुरू कर देता।

डॉक्टर था लिहाजा वो ये भी जानता था कि इससे मौत का पता लगाना आसान नहीं होगा। उसकी साज़िश का ही एक और हिस्सा था कि वो जिसका भी क़त्ल करता तो उनके अंतिम संस्कार में ज़रूर जाता था।

Shams Ki Zubani: ये सिलसिला 28 सालों तक चला और 1970 से लेकर 1998 तक डॉक्टर हारोल्ड ने पूरी 250 उम्रदराज़ औरतों को मौत की मीठी नींद में सुलाया। ये सारा सच जब तफ्तीश में सामने आया तो पुलिस के भी रौंगटे खड़े हो गए।

पुलिस ने डॉक्टर के तमाम केस को पुख्ता सबूत के तौर पर तैयार करने के लिए 15 लाशों को कब्र से निकाला। जिसमें सभी की मौत में अफीम की वजह ही सामने आई। तब अदालत में पुलिस ने पूरा कैस तैयार करके डॉक्टर हारोल्ड को कातिल के रूप में अदालत में पेश किया। अदालत ने भी तमाम सुराग और सूबूतों के आधार पर डॉक्टर हारोल्ड को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई।

जेल जाने के कुछ सालो के बाद 2004 में अपने 58वें जन्म दिन से पहले डॉक्टर हारोल्ड शिपमैन ने जेल में ही फांसी लगाकर जान दे दी।

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