गर्मी इतनी तेज़ कि बहुत सारे लोग एयरपोर्ट की दीवार से लगे एक चौड़े से नाले में कमर तक पानी में खड़े थे. नाले के अंदर दूर तक सैकड़ों लोग थे. नाला गंदा नहीं था. शायद पीछे से साफ़ पानी आ रहा था.
तालिबान के लिए अब ख़ुरासान बना आफ़त अमेरिका गया तालिबान की नई चुनौती बना IS
After America isis is the new rival of taliban
ADVERTISEMENT
27 Aug 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:04 PM)
गुरुवार की शाम जब ढलनी शुरू हुई और पारा कुछ कम तब भी बहुत से लोग कमर तक पानी में खुद को ठंडा कर रहे थे. ये वो जगह थी, जो पूरी तरह से तालिबान की रहमो-करम पर ही थी. क्योंकि ये इलाक़ा एयरपोर्ट के बाहर पड़ता है. और काबुल में एयरपोर्ट को छोड़ कर हर जगह सिर्फ़ तालिबान का ही राज है.
ADVERTISEMENT
शाम के उसी पल अचानक आम अफ़ग़ानी पहनावा पहने यानी कुर्ते पैजामे में एक शख़्स बड़ी तेज़ी से इसी बड़े नाले में खुद को उछाल देता है. और इसके साथ ही काबुल एयरपोर्ट के बाहर ये पहला धमाका होता है. इस फ़िदायीन ने ख़ुद को जिन लोगों के बीच और क़रीब गिराया था, उन सबके चीथड़े उड़ गए. धमाका इतना ताक़तवर था कि कुछ पल के लिए तो लोगों के कानों की आवाज़ तक चली गई थी.
धमाके के बाद की तस्वीर दिखाई जाने लायक नहीं है. इसलिए कि धमाके के बाद दर्जनों लोगों के रिसते ख़ून ने धीरे-धीरे नाले के पूरे पानी को ही लाल रंग में तब्दील कर दिया था. इस पहले धमाके में सबसे ज़्यादा जानें गई.
पर ये दहशत की शुरुआत भर थी. यहां से कुछ दूरी पर यानी काबुल एयरपोर्ट के नज़दीक बरुन होटल है. इस होटल पर 15 अगस्त से ही यानी जिस दिन से तालिबान ने काबुल पर क़ब्ज़ा किया है, ब्रिटिश सैनिकों और नेटो फ़ौज का क़ब्ज़ा है.
काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा के लिए शिफ्ट में इसी होटल से सैनिक आते और जाते हैं. शाम को शिफ्ट बदलने का वक़्त होता है. और उस वक़्त होटल के बाहर ज़्यादा हलचल होती है. हमलावरों को ये बात अच्छी तरह मालूम थी. लिहाज़ा, शिफ्ट की अदला-बदली के दौरान ही एक और फ़िदायीन होटल के क़रीब पहुंच कर खुद को उड़ा लेता है.
पर इस जगह इस फ़िदायीन के साथ-साथ एक और हमलावर था, जो एके 47 से अचानक अंधाधुंध गोलियां बरसाना शुरू कर देता है. इस दूसरे धमाके और गोलीबारी में भी बहुत से लोगों की जानें चली जाती हैं.
रात होते-होते मरनेवालों की गिनती और उनकी पहचान सामने आने लगती है. पता चलता है कि मरनेवालों में 13 अमेरिकी सैनिक भी हैं. अमेरिकी सैनिकों की मौत की ख़बर सामने आने के फ़ौरन बाद आईएसआईएस-के(ISIS-K) यानी खुरासान नाम का संगठन कुछ इंटरनेशनल मीडिया हाउस को टेलीग्राम एप के ज़रिए इस हमले की जिम्मेदारी लेने का ऐलान करता है.
उधर, दो धमाके के बाद तब तक दूसरों को धमाकों से डरानेवाला तालिबान ख़ुद बुरी तरह डर गया. इतना कि उसे आनन-फानन में सामने आकर सफ़ाई देनी पड़ी कि इन धमाकों से उसका कोई लेना-देना नहीं है. उल्टे इस धमाके ने कई तालिबान लड़ाकों की ही जान ले ली है.
पर डरे हुए तालिबान की इस सफ़ाई के बाद भी तालिबान ये सफ़ाई नहीं दे पा रहा है कि जब पूरा काबुल उसके क़ब्ज़े में है, चप्पे-चप्पे पर उसके लड़ाके तैनात हैं, वो खुद फ़िदायीन हमलों का जानकार है, तो फिर ऐसे में उसका विरोधी काबुल में घुस कर उसे मात कैसे दे गया? दरअसल, काबुल और काबुल के लोगों की सुरक्षा 15 अगस्त के बाद से ही अल्ला भरोसे है.
15 अगस्त से पहले काबुल और काबुल एयरपोर्ट के बाहर ये सड़कों पर सुरक्षा की ज़िम्मेदारी पुलिस और ख़ुफ़िया इंटेलिजेंस की थी. कुछ जगहों पर अफ़ग़ान स्पेशल फ़ोर्स भी तैनात थी. लेकिन 15 अगस्त के बाद ही सच्चाई ये है कि काबुल की पुलिस और अफ़ग़ान स्पेशल फ़ोर्स दोनों ही काबुल से ग़ायब हो चुके हैं.
काबुल अब पूरी तरह से तालिबान के हवाले है.यानी क़ायदे से इस वक़्त काबुल और काबुल के लोगों की सुरक्षा तालिबान के हाथों में है. लेकिन तालिबान ने जो बोया, अब वही काट रहा है.और वही बांट भी रहा है.
अब सवाल ये है कि आतंक और आंतक के बीच ही ये कैसी आतंक है? और क्यों है? जिस आईएसआईएस खुरासान ने दोनों धमाकों की ज़िम्मेदारी ली है, उसकी तालिबान से क्या दुश्मनी है? तो पहले इस आईएसआईएस खुरासान को जान लीजिए.
बात तीसरी या चौथी सदी की है. कुछ लोग अरब से निकल कर ईरान पहुंचे थे. ईरान के जिस खास हिस्से पर वो आबाद हुए उसका नाम खुरासान पड़ा. फिर धीरे-धीरे खुरासान का दायरा बढ़ता गया. मगर एक वक्त वो भी आया जब खुरासान सिर्फ ईरान के एक छोटे से हिस्से में ही सिमट कर रह गया. इसके बाद 2011 में बगदादी की नजर उसी खुरासान पर पड़ी और बस वहीं से उसने पूरी दुनिया को खुरासान बनाने का आतंक का अपना नक्शा तैयार कर लिया.
खुरासान. ये फारसी शब्द है. इसका मतलब होता है जहां से सूरज उगता है. "ख्वार" मतलब "सूरज" और "आसान" मतलब आने वाला या उगना. दरअसल खुरासान नाम तीसरी या चौथी सदी में ईरान के नार्थ ईस्ट में मौजूद एक तारीखी सूबे को दिया गया था. तब ईरान के इस राज्य के अलावा मध्य एशिया के कुछ इलाके अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान और उजबेकिस्तान भी खुरासान का ही हिस्सा हुआ करता था.
बस यही तारीखी खुरासान बगदादी को इतना भा गया कि उसने आतंक की ज़मीन पर अपनी सोच के हिसाब से खुरासान का एक नक्शा खींच डाला. इस नक्शे में खास तौर पर उसने हिंदुस्तान का नक्शा जोड़ा. शुरूआत में बगदादी ने खुरासान का जो नक्शा दुनिया के सामने पेश किया था उसमें हिंदुस्तान के गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड का हिस्सा ही शामिल था.
लेकिन फिर बाद में उसने पूरे हिंदुस्तान, श्रीलंका, नेपाल और चीन के आधे हिस्से को भी खुरासान में शामिल कर लिया. भारत के अलावा बगदादी इसी खुरासान के नक्शे में आधे ईरान पूरे तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान, कज़ाकिस्तान और किरगिस्तान को भी पहले ही शामिल कर चुका है.
यानी बग़दादी और उसके गुर्गों ने हिंदुस्तान और आस-पास के मुल्कों में अपना राज कायम करने को लेकर जो ख्वाब देखा है, उसी ख्वब का नाम है खुरासान. बगदादी ने अपने इस प्लान की शुरुआत सबसे पहले उसी पाकिस्तान सरज़मीन से की थी, जो दुनिया भर में आतंकवादियों के खैरमकदम के लिए पहले ही काफ़ी बदनाम है.
वहां अंसार उल तौहिद और तहरीक ए तालिबान जैसे कुछ आतंकी संगठनों ने पहले ही बग़दादी को अपना खलीफ़ा मान कर पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी जड़े जमाने की शुरुआत कर दी थी. इसके बाद बांग्लादेश में ढाका के कैफ़े में आईएसआईएस ने अपने इसी प्लान की एक कड़ी को एक बड़े आतंकी हमले के तौर पर अंजाम दिया.
कमाल की बात ये है कि खुरासान का एक वक़्त में तालिबान के साथ गहरा रिश्ता रहा है. और ये रिश्ता बना एक और आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क के ज़रिए. दरअसल, अफ़गानिस्तान के पूर्वी प्रांत नंगरहार में खुरासान का ठिकाना रहा है. पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के बीच नशीले पदार्थों की तस्करी और आतंकियों को ट्रेनिंग देने के लिए अमूमन इसी रूट का इस्तेमाल किया जाता है.
एक दौर था, जब अफ़गान में खुरासान के करीब चार हज़ार लड़ाके थे. लेकिन फिर अफ़ग़ान सुरक्षाबलों, अमेरिकी सेनाओं और बाद में वर्चस्व को लेकर तालिबान के साथ हुई लड़ाई में खुरासान को काफी नुकसान पहुंचा. खुरासान और तालिबान के मतभेद की या यूं कहें कि दुश्मनी की सबसे बड़ी वजह अमेरिका ही है. तालिबान के कई नेताओं को अमेरिका के कहने पर जेलों से रिहा कर दिया गया था.
तालिबान अमेरिका के साथ बातचीत को भी राजी था. बाक़ायदा दोहा में तालिबान ने अफ़ग़ान सरकार और अमेरिका से बातचीत भी की. खुरासान को यही बात नागवार गुज़री. खुरासान का इल्ज़ाम है कि तालिबान ने ना सिर्फ़ अपना पुराना मक़सद भुला दिया, बल्कि जेहाद और मैदान-ए- जंग का रास्ता छोड़ कर दोहा के महंगे और सात सितारा होटलों में सौदेबाजी करने लगा.
हालांकि अमेरिकी राष्ट्पति जो बाइडेन ने एलानिया कहा है कि वो धमाकों के गुनहगारों को बख़्शेंगे नहीं और उन्हें ढूंढ कर उनके अंजाम तक पहुंचाएंगे. इसका सीधा मतलब ये है कि आनेवाले दिनों में अफगान के अंदर खुरासान के ठिकानों पर हमले हो सकते हैं.
लेकिन इन हमलों के लिए अमेरिकी सैनिकों को अफ़ग़ान में मौजूद रहना पड़ेगा. जबकि अफ़गान छोड़ने की अमेरिकी सैनिकों की डेडलाइन 31 अगस्त है. 58 सौ अमेरिकी सैनिक अब भी काबुल एयरपोर्ट पर मौजूद हैं. दूसरी तरफ़ इन धमाकों के बाद अफगान के अंदर खुरासान अब तालिबान के लिए एक और खतरा बन कर उभर गया है.आनेवाले वक़्त में शायद पहली बार ऐसा होगा, जब आतंक से आंतक भिड़ रहा होगा.
ADVERTISEMENT