तालिबान की जीत के बाद, पंजशीर के शेर कहे जाने वाले अहमद शाह मसूद कहां हैं इस वक़्त ?

Taliban के पंजशीर पर कब्ज़े के बाद कहा है, Panjsher के नाम से जाने Ahmad Massoud कहा है, अहमद मसूद ताजिकिस्तान में हैं जबकि अमीरुल्लाह सालेह इस वक्त पंजशीर में, Read crime news in Hindi on CrimeTak.in

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06 Sep 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:04 PM)

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क्या पंजशीर पर तालिबान ने क़ब्ज़ा कर लिया है?

कहां हैं पंजशीर के शेर अहमद मसूद?

कहां हैं खुद को अफ़ग़ानिस्तान का राष्ट्रपति घोषित करने वाले अमीरुल्लाह सालेह?

फहीम दश्ती जब से काबुल पर तालिबान का क़ब्ज़ा हुआ फहीम दश्ती पंजशीर की मुखर आवाज बने हुए थे। तालिबान के कब्जे से दूर अफ़ग़ानिस्तान के एकमात्र सूबे पंजशीर की हर खबर फहीम दश्ती पूरी दुनिया तक पहुंचा रहे थे।लेकिन अब खबर आ रही है कि तालिबान ने पंजशीर की इस आवाज को खामोश कर दिया है।

अफ़ग़ानिस्तान के तोलो न्यूज के सूत्रों के मुताबिक नॉर्दन एलायंस के प्रवक्ता फहीम दश्ती पंजशीर के रोखा जिले में तालिबान से लड़ते हुए मारे गए।

इसी लड़ाई में पंजशीर के शेर कहे जाने वाले अहमद शाह मसूद के भतीजे जनरल अबुल उदूद जारे भी मारे गए।

ये खबर ऐसे वक्त में सामने आई है जब पंजशीर में रेजिस्टेंस फोर्स और तालिबान के बीच भीषण लड़ाई के बीच तालिबान ने पंजशीर पर कब्जे का दावा कर दिया है। तालिबान के हवाले से पाकिस्तान के एक टीवी चैनल ने भी पंजशीर पर तालिबान के कब्जे के खबरे की चला दी।

हालांकि तालिबान से पंजशीर को बचाने के लिए लड़ रहे रेजिस्टेंस फोर्स ने इस दावे को झूठा करार दिया है। सूत्रों का कहना है कि तालिबान ने सिर्फ सेंट्रल पंजशीर पर कब्जा किया है और वो भी सड़कों तक सीमित है। पंजशीर घाटी अभी भी तालिबान के कब्जे से दूर है।

ताजिकिस्तान में अफ़ग़ानिस्तान के राजदूत जहीर अघबर ने ने भी कहा है कि पंजशीर में भीषण लड़ाई जारी है लेकिन वहां अभी तालिबान का कब्जा नहीं हुआ है।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पिछले तीन दिनों से अहमद मसूद ताजिकिस्तान में हैं जबकि अमीरुल्लाह सालेह इस वक्त पंजशीर में ही किसी अज्ञात जगह पर सुरक्षित हैँ। उनका एक वीडियो बयान भी सामने आया है।

दोनों तरफ के अपने-अपने दावे हैं। यानी, पंजशीर की तस्वीर अभी पूरी तरह साफ नही है।लेकिन इतना साफ है कि पंजशीर की जंग अब तालिबान के लिए नाक की लड़ाई बन चुकी है.

जबकि Resistance Front के कमांडर अहमद मसूद और अमरुल्ला सालेह के लिए ये जिंदगी और मौत की जंग है.

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