दिल्ली से प्रिवेश पांडे के साथ चिराग गोठी की रिपोर्ट
Cyber Fraud Alert: फर्जी वेबसाइट पर क्लिक कर गंवा दिए 50 लाख रुपये, वेबसाइट स्पूफिंग क्या होती है?
Delhi Crime News: पिछले कुछ समय में साइबर अपराध के मामले तेजी के साथ बढ़े हैं. इनमें से एक तरीका वेबसाइट स्पूफिंग (spoofing) का है. ऐसा की एक केस दिल्ली पुलिस साइबर क्राइम यूनिट (IFSO) ने सॉल्व किया है
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दिल्ली पुलिस साइबर क्राइम यूनिट (IFSO) ने धोखेबाजों के एक गिरोह का भंडाफोड़ किया है
08 Aug 2023 (अपडेटेड: Aug 8 2023 1:00 PM)
Delhi Crime News: पिछले कुछ समय में साइबर अपराध के मामले तेजी के साथ बढ़े हैं. इनमें से एक तरीका वेबसाइट स्पूफिंग (spoofing) का है. ऐसा की एक केस दिल्ली पुलिस साइबर क्राइम यूनिट (IFSO) ने सॉल्व किया है. दिल्ली पुलिस साइबर क्राइम यूनिट (IFSO) ने धोखेबाजों के एक गिरोह का भंडाफोड़ किया है. आरोपी व्यक्तियों ने लीडिंग कंपनी, आईटीसी (इंडियन टोबैको कंपनी) के नाम पर डिस्ट्रीब्यूटरशिप की पेशकश करके पीड़ितों को धोखा देने के लिए वेबसाइट स्पूफिंग का इस्तेमाल किया. 3 लैपटॉप, 21 मोबाइल फोन, 2 हार्ड डिस्क, 2 टैबलेट, 20 सिम कार्ड, 20 एटीएम कार्ड, 6 बैंक पासबुक और 4 चेक बुक बरामद किए गए हैं.
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स्पूफिंग क्या है?
वेबसाइट स्पूफिंग में अपराधी एक फर्जी वेबसाइट बनाकर उसकी मदद से आपके साथ धोखाधड़ी कर सकता है. इन नकली वेबसाइटों को असली दिखाने के लिए अपराधी असली वेबसाइट का नाम, लोगो, ग्राफिक्स और कोड का भी इस्तेमाल करते हैं। वे नकली यूआरएल भी बना सकते हैं, जो ब्राउज़र विंडो के शीर्ष पर पता फ़ील्ड में दिखाई देते हैं. इसके साथ ही वे नीचे दाईं ओर दिए गए पैडलॉक आइकन को भी कॉपी कर लेते हैं.
क्या था पूरा मामला
इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस (IFSO) ने एक धोखाधड़ी वाले ऑपरेशनल सेटअप का भंडाफोड़ किया है, जिसका उद्देश्य पीड़ितों को उनके डोमेन का उपयोग करके वास्तविक वेबसाइटों के समान नकली वेबसाइट विकसित करके आईटीसी की डिस्ट्रीब्यूटरशिप बेचने के बहाने धोखा देना था. इस मामले में, अपराधियों ने पीड़ित से संपर्क किया और उसे व्यावसायिक सौदों और झूठे वादों से अपने जाल में फंसा लिया, जिससे पीड़ित को अपनी मेहनत से कमाए गए 50 लाख रुपये गवाने पड़े.
कारोबारी को लगाया 50 लाख का चूना
कारोबारी की शिकायत पर एफआईआर नंबर 112 दिनांक 25.04.2023, धारा 420/420/467/468/471/120बी/34 पीसी और 66डी आईटी एक्ट, पीएस स्पेशल सेल, नई दिल्ली के तहत मामला दर्ज किया गया था. गुलशन चड्ढा ने आरोप लगाया कि उन्हें अज्ञात नंबरों (8276995960 और 8961431149) से कॉल आए जिन्होंने उन्हें बताया कि वे आईटीसी के अधिकारी थे. इसके बाद वे शिकायतकर्ता को आईटीसी की डिस्ट्रीब्यूटरशिप पाने के लिए मनाने में कामयाब रहे और पीड़ित से 50 लाख रुपये का निवेश कराया. बाद में शिकायतकर्ता को पता चला कि जालसाजों ने उसके साथ धोखाधड़ी की है.
शिकायतकर्ता की बात को सत्यापित करने के लिए उससे पूछताछ की और धोखाधड़ी, जालसाजी, आपराधिक साजिश और आईटी अधिनियम के प्रावधानों के तहत FIR दर्ज की. जांच से पता चला कि आरोपी व्यक्ति एक प्रतिष्ठित कंपनी या फर्म की डिस्ट्रीब्यूटरशिप की पेशकश करके पीड़ितों को निशाना बनाने के लिए बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से गिरोह का संचालन कर रहे थे. DCP प्रशांत गौतम की देखरेख में एक टीम का गठन किया गया. जय प्रकाश, एसीपी/आईएफएसओ, ताकि सभी आरोपियों को बिना किसी देरी और सबूत के गिरफ्तार किया जा सके.
पहले कदम में बिहार के पटना में एक इंस्पेक्टर ने कार्रवाई की. इस कार्रवाई का हिस्सा थे नरेंद्र और उनकी टीम, जिसमें HC दिनेश खत्री, HC अमित दहिया, और डब्ल्यू/सीटी शामिल थे. सीसीएल से एक फोन बरामद किया गया, जिसका उपयोग नेट बैंकिंग में धोखाधड़ी लेन-देन के लिए किया गया था. सीसीएल की निशानदेही के आधार पर, तीन और लोगों को गिरफ्तार किए गया.
इसके साथ ही, सीसीएल की निशानदेही के आधार पर एक और आरोपी निशांत गुप्ता, जिन्हें सौरव के नाम से भी जाना जाता है, गिरफ्तार किया गया. उन्होंने नाबालिगों को लालच देकर उनके आधार कार्ड में जन्मतिथि को बदलकर उनके खातों को खोलवाने का काम किया था. खोले गए खातों का उपयोग धोखाधड़ी लेन-देन में होता था. इस धोखाधड़ी पैसे के प्रवाह को एक संदिग्ध दीपक के खाते में भी पाया गया, जिसे पटना, बिहार में गिरफ्तार किया गया. आरोपी दीपक ने सीएसपी के रूप में काम किया और मनी ट्रांसफर किया. धोखाधड़ी पैसे को दीपक ने अपने खाते में जमा किया था.
जांच के दौरान और तकनीकी विश्लेषण के आधार पर, एक और आरोपी सूरज पर आया, जिन्होंने शिकायतकर्ता को धोखा देने का उद्देश्य रखकर "itcdistributorship.org" नामक वेबसाइट विकसित की थी. उन्हें गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश से गिरफ्तार किया गया. सूरज के मोबाइल फोन और लैपटॉप की जांच में पता चला कि एक और गिरोह के सदस्य, यानी पटना, बिहार के संतोष, उनके साथ मिलकर काम कर रहे थे, जो नकली पहचान यानी मोनू का उपयोग कर रहे थे. तकनीकी डेटा ने साबित किया कि दोनों आरोपी एक साथ मिलकर काम कर रहे थे और सूरज को वेबसाइट स्पूफिंग के लिए भुगतान किया गया था.
इस घोटाले का एक और अंश था सुनील शाक्य, जिसे संतोष के खुलासों के बाद मध्य प्रदेश के ग्वालियर से गिरफ्तार किया गया। सुनील शाक्य ने स्वीकार किया कि उन्होंने गलत टोल-फ्री नंबर के विज्ञापनों के माध्यम से Google पर ITC की डिस्ट्रीब्यूटरशिप के लिए ऑनलाइन अभियान चलाया था. इस प्रकार, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म से इकट्ठे हुए मासूम ग्राहकों की जानकारी संतोष को भेजी गई और उसके बदले में, सुनील शाक्य को धोखाधड़ी राशि का 30% भुगतान किया गया.
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