बिलकिस बानो केस का एक दोषी रिहा होते ही करने लगा वकालत, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, उसकी सजा पूरी नहीं, छूट मिली है

Bilkis Bano case : बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार बड़े सवाल उठाए हैं. पढ़िए ये पूरी खबर.

supreme court news

supreme court news

24 Aug 2023 (अपडेटेड: Aug 24 2023 9:15 PM)

follow google news

Bilkis Bano Case : बिलकिस बानो केस के दोषियों में से बरी हुआ एक शख्स गुजरात में वकालत करने लगा है। इस जानकारी के सामने आने पर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद हैरानी जताई है। इस पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ने पूछा है कि क्या कोई दोषी वकालत कर सकता है. इसके अलावा कोर्ट में जस्टिस ने ये भी कहा कि दोषी ने अपनी सजा भी पूरी नहीं की. क्योंकि उसे उम्रकैद की सजा दी गई थी। लेकिन उसकी सिर्फ सजा कम की गई थी ना कि दोष सिद्धि। इस आधार पर वकालत के लिए लाइसेंस मिलना चौंकाने वाला है. क्या है पूरा मामला. आइए जानते हैं. 

रिहा हुआ दोषी राधे श्याम शाह करने लगा वकालत

सुप्रीम कोर्ट उस वक्त दंग रह गया जब अदालत को बताया गया कि बिल्किस बानो से रेप के दोषियों में से एक बरी होने के बाद गुजरात मे वकालत कर रहा है। मामले की सुनवाई कर रही पीठ के सदस्य जस्टिस उज्जल भुइयां ने पूछा कि क्या रेप जैसे गंभीर अपराध कोई दोषी वकालत जैसा आदर्श पेशा अपना सकता है? जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ के सामने बिल्किस के वकील ने बताया कि रिहा हुआ दोषी राधे श्याम शाह मोटर व्हीकल एक्ट का वकील है। इस पर जस्टिस ने मौखिक टिप्पणी की कि क्या रेप का सजायाफ्ता दोषी का वकालत करना उचित है? इस पर दोषियों के वकील ऋषि मल्होत्रा ने जवाब दिया कि सजा का मतलब सुधारना होता है। सजा काटने के दौरान शाह के अच्छे सुधारात्मक कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और सराहना का प्रमाणपत्र भी हासिल किया। आजीवन कारावास के दंड के तौर पर अपने साढ़े 15 साल कैद के दौरान शाह ने कला, विज्ञान और ग्रामीण विकास विषयों में परा स्नातक (मास्टर) डिग्री हासिल की। 

उसने जेल में साथी कैदियों के लिए स्वैच्छिक पैरा लीगल सेवाएं भी दीं।  वो इस मामले में आरोपी होने से पहले भी मोटर व्हीकल एक्सीडेंट मामले के पीड़ितों को मुआवजा दिलाने के लिए वकील के तौर पर प्रैक्टिस करता था। इस पर जस्टिस नागरत्ना ने तपाक से पूछ लिया की क्या शाह अभी भी वकालत कर रहा है?  मल्होत्रा ने जवाब दिया कि हां उसने फिर प्रैक्टिस शुरू कर दी है। क्योंकि वो आरोपी होने से पहले भी करता था और रिहाई के बाद भी। फिर जस्टिस भुइयां ने पूछा कि क्या किसी गंभीर दोष में सजायाफ्ता को वकालत का लाइसेंस दिया सकता है? क्योंकि वकालत तो नोबल प्रोफेशन है। मल्होत्रा ने जवाब दिया की वैसे तो सांसद और जनप्रतिनिधि होना भी आदर्श होता है। लेकिन वो भी तो दोषी साबित होकर सजा काटते हैं। फिर चुनाव लड़ते हैं। जस्टिस भुइयां ने कहा कि यहां विषय ये नहीं है। यहां बार काउंसिल को एक दोषी को लाइसेंस नहीं देना चाहिए था। वो एक दोषी है इसमें कोई शक नहीं है। मल्होत्रा ने कहा कि उसने अपनी सजा पूरी कर ली थी। इस पर जस्टिस नागरत्ना ने फौरन कहा कि शाह ने अपनी पूरी सजा नहीं काटी थी। उसे उम्रकैद की सजा दी गई थी। सिर्फ उसकी सजा कम की गई थी ना कि दोष सिद्धि।  

साल 2008 में सुनाई गई थी आजीवन कारावास की सजा 

सन 2002 में गुजरात में हुए दंगों में 21 साल की गर्भवती बिल्किस बानो के साथ गैंगरेप करने और उसकी तीन साल की बेटी सहित सात रिश्तेदारों की हत्या के अपराध में मुंबई की अदालत ने सन 2008 में राधेश्याम शाह समेत 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सुनवाई गुजरात से महाराष्ट्र ट्रांसफर की गई थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2017 में इनकी सजा बरकरार रखी। इसके दो साल बाद 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को निर्देश दिया था कि वो बिल्किस को 50 लाख रुपए मुआवजा, उसकी योग्यता के मुताबिक सरकारी नौकरी और घर दे।  इसके बाद राधेश्याम शाह ने गुजरात हाईकोर्ट में सजा खत्म कर समय पूर्व रिहाई की अर्जी लगाई तो कोर्ट ने कहा ये सरकार का अधिकार है। फिर गुजरात सरकार ने राज्य नीति के मुताबिक सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया। पहले कई राजनीतिक और बुद्धिजीवी लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में उसे चुनौती दी। फिर बिल्किस भी आई।

    यह भी पढ़ें...
    follow google newsfollow whatsapp