मर्डर केस में आजीवन कारावास की सजा काट रहे व्यक्ति को बेटी की देखभाल नहीं सौंप सकते : हाईकोर्ट

Delhi news : दिल्ली उच्च न्यायालय ने 15 वर्ष की एक नाबालिग लड़की की देखभाल हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे उसके पिता को देने से इनकार कर दिया.

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05 Sep 2023 (अपडेटेड: Sep 5 2023 10:30 PM)

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Delhi High court News : मर्डर केस में दोषी पिता को 15 साल की बेटी सौंपने से दिल्ली हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया है. असल में कोर्ट का कहना है कि वो व्यक्ति बेशक वर्तमान में जमानत पर हो सकता है कि लेकिन उसके अतीत और सबसे जघन्य प्रकृति के आपराधिक मामले में उसकी सजा को देखते हुए, जिससे उसका भविष्य अनिश्चित हो गया है, अपीलकर्ता (व्यक्ति) को बच्ची की देखभाल देना बच्ची के हित और कल्याण में नहीं माना जा सकता।’’ क्या है पूरा मामला. आइए जानते हैं…

PTI की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली उच्च न्यायालय ने 15 वर्ष की एक नाबालिग लड़की की देखभाल हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे उसके पिता को देने से इनकार करते हुए कहा कि बेटी को अभी किसी भी अन्य व्यक्ति से अधिक उसकी मां की देखभाल और संरक्षण की अधिक जरूरत है। उच्च न्यायालय ने कहा कि इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि उस व्यक्ति का उसकी बेटी से तब से कोई सम्पर्क नहीं था जब वह एक वर्ष की थी।

उच्च न्यायालय ने यह आदेश उस व्यक्ति की उस अपील को खारिज करते हुए दिया, जिसमें उसने पारिवारिक अदालत के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसने उसे उसकी नाबालिग बेटी की देखभाल की जिम्मेदारी देने से इनकार कर दिया गया था। लड़की उससे अलग रह रही उसकी पत्नी के साथ रह रही थी। अदालत ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि बच्ची एक वर्ष की आयु से मां की अभिरक्षा में है। अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 201 (साक्ष्य को नष्ट करना) के तहत अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा का सामना कर रहा है।

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा, ‘‘वह वर्तमान में जमानत पर हो सकता है, लेकिन उसके अतीत और सबसे जघन्य प्रकृति के आपराधिक मामले में उसकी सजा को देखते हुए, जिससे उसका भविष्य अनिश्चित हो गया है, अपीलकर्ता (व्यक्ति) को बच्ची की देखभाल देना बच्ची के हित और कल्याण में नहीं माना जा सकता।’’

पीठ ने कहा, ‘‘बच्ची अब 15 साल की है और वह ऐसी आयु में है, जिसमें उसे किसी भी अन्य व्यक्ति की तुलना में मां की देखभाल और संरक्षण की अधिक आवश्यकता है।’’ व्यक्ति और महिला का विवाह फरवरी 2006 में हुआ था और मार्च 2007 में उनके घर एक लड़की का जन्म हुआ। व्यक्ति को मई 2008 में एक आपराधिक मामले में पुलिस ने गिरफ्तार किया और जनवरी 2015 तक न्यायिक हिरासत में रहा। व्यक्ति ने दावा किया कि उसकी पत्नी ने 2008 में उसका घर छोड़ दिया था जब वह जेल में था और बाद में उसने तलाक मांगा। व्यक्ति ने कहा कि 2015 में जमानत पर रिहा होने पर, उसने उस बच्ची की देखभाल का अनुरोध करते हुए याचिका दायर की, जिससे वह जेल भेजे जाने के बाद से नहीं मिल पाया है।

 

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