11 आदिवासी महिलाओं से 13 पुलिसवालों ने किया था गैंगरेप, घटिया जांच से 15 साल बाद सभी बरी

Vakapalli Gangrape वाकापल्ली गैंगरेप केस में सभी 13 पुलिसकर्मी बरी. घटिया जांच और पुलिसकर्मियों की लापरवाही से नहीं मिले सबूत.

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10 Apr 2023 (अपडेटेड: Apr 10 2023 6:37 PM)

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Andhra Pradesh Vakapalli Gangrape : चर्चित वाकापल्ली गैंगरेप के आरोपी सभी 13 पुलिसकर्मियों को कोर्ट ने बरी कर दिया है. आंध्र प्रदेश में 11 आदिवासी महिलाओं के साथ गैंगरेप (Gang Rape) का ये मामला साल 2007 में हुआ था. करीब 15 साल तक केस चलता रहा. अब कोर्ट ने सबूतों के अभाव में पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया है. असल में वाकापल्ली एरिया में नक्सली गतिविधियों (Anti Naxal Movement) के खिलाफ पुलिस ने रेड डाली थी. उसी दौरान 11 आदिवासी महिलाओं ने दावा किया था कि पुलिसकर्मियों ने बंधक बनाकर गैंगरेप किया. 

इस केस में कोर्ट ने पीड़ित महिलाओं को मुआवजा देने का भी ऐलान किया है. क्योंकि कोर्ट ने कहा है कि पुलिस ने बेहद ही घटिया जांच की. मौके का सही तरीके से मुआयना तक नहीं किया गया. आरोपियों की पहचान तक नहीं कराई गई. ऐसे में सबूतों के अभाव में ये फैसला देना पड़ा है. 

वाकापल्ली गैंगरेप केस में क्या कहा कोर्ट ने 

Vakapalli Gangrape Case :  विशाखापत्तनम की SC ST अत्याचार निवारण अधिनियम सह अतिरिक्त जिला कोर्ट के जज एल. श्रीधर ने 6 अप्रैल 2023 को इस केस पर फैसला सुनाया. जज ने साफतौर पर पहले जांच अधिकारियों को ही घटिया जांच करने के लिए फटकार लगाई. जज ने कहा कि घटिया जांच करने के कारण ही आरोपी पुलिसकर्मियों को बरी करना पड़ रहा है. इसलिए रेप सर्वाइवर्स (Rape Survivors) को मुआवजा दिया जाएगा. इसके लिए डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी को निर्देश जारी किया जा रहा है. जिन 11 आदिवासी महिलाओं ने गैंगरेप का केस कराया था उनमें से 2 की अब मौत हो चुकी है. 

Vakapalli Gangrape Case : सांकेतिक फोटो

क्या है वाकापल्ली गैंगरेप घटना

What is Vakapalli gangrape case : 20 अगस्त 2007 को एंटी नक्सली मूवमेंट के तहत आँध्रप्रदेश पुलिस ने अभियान चलाया था. इसमें 30 पुलिसकर्मियों की एक टीम ने सुबह तड़के ही अल्लुरी सिताराम राजू जिले में अचानक रेड डाली थी. जिस जगह पर रेड हुई थी उस जगह का नाम था वाकापल्ली. यहां पर कोंधू जनजाति के लोग रहते हैं. उसी जगह पर रेड के दौरान 13 पुलिसकर्मियों पर 11 महिलाओं से गैंगरेप करने का आरोप लगा था. ये दावा किया गया कि पुलिसकर्मियों ने बंदूक की नोंक पर जान से मारने की धमकी देकर गैंगरेप किया था. इस केस में गैंगरेप और एससी एसटी एक्ट की धाराओं में एफआईआर दर्ज हुई थी. इस केस की जांच के लिए राज्य सरकार ने उस समय डिप्टी एसपी बी आनंदा राव को जांच अधिकारी बनाया था. हालांकि, इनकी जांच में शुरुआत में लापरवाही देखी गई तो केस को एसपी एम. शिवानंद रेड्डी को सौंप दिया गया था. हालांकि रेड्डी बाद में रिटायरमेंट ले लिए और राजनीति पार्टी तेलगुदेशम पार्टी ज्वाइन कर ली थी. 2019 में लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था.

धीमी जांच पर हाईकोर्ट ने लगाई थी फटकार

इस केस की जांच में हर कदम पर लापरवाही बरती गई थी. गैंगरेप जैसे संवेदनशील केस में भी सैंपल लेने में काफी देर हुई. माना जाता है कि इसी वजह से मेडिकल रिपोर्ट में रेप की पुष्टि नहीं हो सकी. इस केस में जांच एजेंसी ने एक अंतिम रिपोर्ट तैयार की थी. जिसमें दावा किया गया था कि रेप की घटना नहीं हुई थी. आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने माना था कि केस में धीमी जांच की गई. इसलिए केस को क्राइम ब्रांच के हवाले कर दिया गया था.

इस केस में 27 अगस्त 2007 को जांच डीएसपी बी आनंद राव को दी गई थी. लेकिन 8 सितंबर यानी 11 दिन तक वो मौके पर नहीं गए थे. जबकि ये घटना 20 अगस्त 2007 की थी. यानी घटना के कुल 18 दिन तक मौके का निरीक्षण ही नहीं हुआ था. ऐसे में क्या सबूत मिलते. अदालत ने खुद कहा कि करीब 17 दिनों तक क्राइम स्पॉट की ना जांच हुई और ना उसे सैंपल लेने के लिए सुरक्षित किया गया था. ऐसे में क्या सबूत मिलते. इसके अलावा इस केस में 12 साल तक आरोपियो की पहचान तक नहीं कराई गई. जब फरवरी 2019 यानी 12 साल बाद मुकदमा शुरू हुई तब पहचान कराने का आदेश जारी किया गया था.

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