FIR Knowledge : किसी भी आपराधिक घटना की कानूनी रूप से जांच के लिए FIR दर्ज कराना सबसे पहला कदम होता है. FIR दर्ज होने के बाद ही पुलिस मामले की जांच करती है.
एफआईआर क्या है? एफआईआर (FIR) और एनसीआर (NCR) में क्या है अंतर?
एफआईआर (FIR) के बारे में पूरी जानकारी हिंदी में जानिए, ये भी जानें कि FIR और NCR में अंतर क्या होता है, FIR कैसे दर्ज़ करवाए, Read more crime news today in Hindi and videos on CrimeTak.in
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08 Jul 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:22 PM)
लेकिन, कुछ मामले ऐसे भी आते हैं जहां ये सुनने में आता है कि पुलिस ने FIR ही नहीं दर्ज की या किसी व्यक्ति ने इसे दर्ज नहीं कराया. ऐसे में जरूरी है कि आपको इस बारे में जानकारी हो.
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संज्ञेय अपराध यानी कॉगनीजेबल ऑफेंस. ये वो अपराध होते हैं जिसे पुलिस सज्ञान में लेकर कोर्ट में पेश करती है. यानी ऐसे अपराध बड़े ही गंभीर किस्म के और समाज पर बुरा असर डालने वाले होते हैं.
इसमें बलात्कार,मर्डर,अपहरण,डकैती,चोरी और दहेज के लिये उत्पीड़न इत्यादि आते है. ऐसे मामलों में पुलिस के पास किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार होता है. वे मामले की जांच फौरन शुरू कर सकते है. इसके लिए उन्हें कोर्ट से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होती है.
गैर संज्ञेय अपराध में पुलिस के पास ना तो किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार होता और ना ही वे मामले की जांच कर सकते हैं. दरअसल, ऐसे मामलों में पुलिस आरोपियों को मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करती है. अब मैजिस्ट्रेट चाहें तो उसे न्यायिक हिरासत में भी भेज सकते हैं या फिर उससे जमानत पर तुरंत छोड़ सकते हैं.
इस प्रकार के अपराध में किसी को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को पहले शिकायत दर्ज करनी पड़ती है फिर FIR दर्ज होती है. उसके बाद जांच होती है, फिर चार्जशीट और चार्जशीट को कोर्ट में पेश करना, जिसके बाद ट्राइल चलना और उसके बाद कहीं जाकर गिरफ्तार करने का वारंट जारी होता है. ये ज़मानती अपराध है, क्योंकि इसके तहत मिलने वाली सजा 2 साल की है.
आज हम आपको सरल शब्दों मे कुछ आवश्यक कानूनी प्रक्रिया की बात बताते हैं जो आपको जानना बेहद जरूरी है.
FIR दर्ज कराने का प्रोसेस क्या है?किन बातों को ध्यान देना चाहिए? इसे लेकर आपके क्या अधिकार हैं ?और अगर पुलिस FIR दर्ज करने से मना कर दे, तो आपको क्या करना चाहिए?
एफआईआर (FIR) क्या है ?
What is FIR : एफआईआर (FIR) यानी फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट होती है. दण्ड प्रक्रिया संहिता CRPC 1973 के सेक्शन 154 में FIR का जिक्र है.
हिंदी में इसे प्रथम सूचना रिपोर्ट कहते हैं .भारत के किसी भी कोने में हुए संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence)को पहले पुलिस में रिपोर्ट करने की व्यवस्था की गई है जिसके बाद ही कोई कार्यवाही होती है.
FIR की रिपोर्ट तत्काल मजिस्ट्रेट के पास भेजी जाती है. सीआरपीसी की धारा 157(1) में है कि पुलिस द्वारा मामला दर्ज कर फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट संबंधित मजिस्ट्रेट तक जल्द से जल्द भेज दी जानी चाहिए.
एनसीआर (Non-Cognizable Report) "नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट" क्या होता है?
इसे गैर-संज्ञेय अपराध सूचना कहा जाता है. असंज्ञेय अपराध में किसी के साथ हुए मामूली झगड़े, गाली-गलौच या किसी डॉक्युमेंट के खो जाने की शिकायत होती है. शांति भंग करने के मामले भी इस गैर संज्ञेय अपराध में आते हैं.
इस प्रकार के अपराध होने पर पीड़ित व्यक्ति पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने पर ऐसे मामले को एफआईआर में दर्ज नहीं करके एनसीआर (NCR) में दर्ज किया जाता है.
दरअसल, ये इसलिए होता है कि किसी के साथ मामूली झगड़े या शांति भंग करने के मामले की जानकारी पुलिस को मिल जाए और उसे आरोपी को चेतावनी भी मिल जाए. यानी पुलिस के संज्ञान में आ जाए. ऐसे मामलों में अगर आरोपी दोबारा उसी तरह से मारपीट या लड़ाई करते हैं तो पुलिस एनसीआर के बजाय एफआईआर दर्ज कर जेल भी भेज देती है.
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एफआईआर और एनसीआर में क्या अंतर होता है??
Kya hota hai FIR aur NCR : FIR को कोर्ट में पेश किया जाता है, जबकि NCR सिर्फ और सिर्फ पुलिस स्टेशन के रिकॉर्ड तक ही सीमित रखा जाता है.
पुलिस द्वारा FIR दर्ज करने के बाद उन्हें तमाम कानूनी शक्तियां मिल जाती है, जिससे पुलिस बिना वॉरंट के गिरफ्तार कर सकती है, जबकि NCR दर्ज करने के बाद पुलिस को गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता है.
एफआईआर (FIR) क्यों है जरूरी?
किसी भी वारदात या अपराध की जांच के मामले में एफआईआर (FIR) सबसे जरूरी डॉक्युमेंट होता है. जिससे आगे की कानूनी प्रक्रिया इसी के आधार पर की जाती है. एफआईआर दर्ज करने के बाद ही पुलिस मामले की जांच शुरू करती है.
पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करें?
अगर पुलिस की ओर से आपकी की शिकायत दर्ज नहीं की जाती है तो आप कोई भी पुलिस अधीक्षक (Superintendent Of Police) और दूसरे किसी बड़े अधिकारियों को शिकायत लिखकर पोस्ट या फिर ईमेल भी कर सकते हैं. अगर पुलिस प्राथमिकी (First Information Report) दर्ज नहीं करती है तो एक वकील के माध्यम से सीआरपीसी (CRPC) की धारा 200 आर/डब्ल्यू 156 (3) के तहत मजिस्ट्रेट से संपर्क किया जा सकता है.
ऑनलाइन भी दर्ज करा सकते हैं एफआईआर (FIR)
दिल्ली पुलिस ने निवासियों को ऑनलाइन एफआईआर पंजीकृत करने की सुविधा दी। इसके लिए आप www.delhipolice.nic.in पर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। आप नागरिक सेवा विकल्प (Citizen Services) चुनते हैं। तो आपको कई विकल्प दिखाई देंगे जैसे कि कंप्लेंट लॉजिंग, एमवी थेफ्ट ई-एफआईआर (MV Theft e-FIR), खोया पाया (Lost And Found), साइबर अपराध (Cyber Crime) आदि। आपकी जानकारी के अनुसार, आपको एक शिकायत प्रस्तुत करनी होगी। जिसके बाद आपकी एफआईआर दर्ज हो जाएगी
NOTE : ये स्टोरी Crime Tak के साथ इंटर्नशिप कर रहीं अश्विनी सिंह ने लिखी है.
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