SWIFT से रूस को करारी चपत
'SWIFT' तोड़ेगा रूस की अर्थव्यवस्था की कमर, इंटरनेशनल पेमेंट गेटवे इस तरह से करता है काम
स्विफ्ट सिस्टम से टूटेगी रूस की कमर, बर्बाद हो जाएगा रूस, रूस को लगी है करारी चपत, अर्थव्यवस्था तबाह, SWIFT, Russia Ukraine War, LATEST WAR NEWS, कारोबार ठप, ईरान की तरह होगा रूस तबाह, RUSSIA NEWS
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28 Feb 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:14 PM)
Russia-Ukraine War: अमेरिका और यूरोपीय देशों ने मिलकर रूस को सबक सिखाने के लिए जिस स्विफ्ट (SWIFT) मिसाइल का इस्तेमाल किया है। उससे अब रूस के कई बैंक विदेशों में लेन देन नहीं कर पाएंगे, यानी विदेश के साथ उनका कारोबार ठप हो जाएगा।
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क्या है ये स्विफ़्ट?
सवाल उठता है कि आखिर ये स्विफ़्ट (SWIFT) क्या बला है? असल में SWIFT दुनिया का सबसे बड़ा इंटरनेशनल पेमेंट गेटवे है। जिसका पूरा नाम है द सोसाइटी फॉर वर्ल्ड वाइड इंटरबैंक फाइनैंसियल टेलिकम्यूनिकेशन (THE SOCIETY FOR WORLDWIDE INTERBANK FANANCIAL TELECOMMUNICATION)। ये असल में दुनिया भर के बैंकों को आपस में जोड़ने वाला फाइनैंसियल मैसेजिंग इंफ्रास्ट्रक्चर है, जिसे बेल्जियम से ऑपरेट किया जाता है।
स्विफ़्ट सिस्टम से ये तीन देश बाहर
Russia-Ukraine War: स्विफ्ट (SWIFT) के जरिए दुनिया के 200 देशों और 11 हज़ार से ज़्यादा फाइनैंसियल इंस्टीट्यूशंस को वित्तीय लेन देन से जुड़े निर्देश पहुँचाए जाते हैं। यह इस तरह के ट्रांसफर के लिए सबसे भरोसेमंद और सुरक्षित व्यवस्था है। इस व्यवस्था से हाल के सालों में बाहर किए जाने वाले देशों में रूस का तीसरा स्थान है। इससे पहले ईरान और उत्तर कोरिया को इस व्यवस्था से बाहर किया जा चुका है।
1963 में बना था SWIFT
SWIFT की स्थापना 1963 में की गई थी। और शुरूआती दौर में इस व्यवस्था से 15 देशों के क़रीब 239 बैंकों को जोड़ा गया था। 1977 तक इस व्यवस्था के तहत इतने ही बैंक काम करते थे लेकिन उसके बाद इस व्यवस्था में पूरी दुनिया की 518 फाइनैंसियल इंस्टीट्यूशंस को इसमें शामिल कर लिया गया। इस वक़्त SWIFT पेमेंट नेटवर्क में 200 देशों से ज़्यादा क़रीब 9000 से ज़्यादा बैंक और फाइनैंसियल इंस्टीट्यूशंस जुड़े हुए हैं।
क्यों ज़रूरी है स्विफ़्ट?
Russia-Ukraine War: दुनिया के किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए सीमा पार या अंतरराष्ट्रीय लेन देन के लिए इस सिस्टम का होना बेहद ज़रूरी होता है। अंतरराष्ट्रीय कारोबार हो या फिर विदेशी निवेश, विदेश में रहने वाले प्रवासियों की तरफ से भेजे जाने वाली रकम हो या फिर अर्थव्यवस्था में रिजर्व बैंक जैसे केंद्रीय बैंक का मैनजमेंट हो, सब इसी SWIFT के जरिए ही काम करता है।
अंतरराष्ट्रीय कारोबार पर सीधा असर
ऐसे में अगर किसी देश को इस व्यवस्था से अलग कर दिया जाता है तो उसका सीधा असर उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ता है और उस देश का अंतरराष्ट्रीय कारोबार ठप हो जाता है।
अब टूटेगी रूस की कमर
Russia-Ukraine War: अमेरिका और यूरोप के ताज़ा फैसले के बाद रूस के कई बैंकों को इस सिस्टम से बाहर कर दिया गया है। यानी रूस के कई बैंक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था से बाहर कर दिए गए हैं। ऐसा होने से अब उनका वैश्विक स्तर पर काम करना मुश्किल होगा।
इस व्यवस्था से बाहर होने के बाद अब रूस अपने आयात और निर्यात के लिए किसी को भी भुगतान नहीं कर पाएगा। अब उसे दूसरे देशों और दुनिया के दूसरे फाइनैंसियल इंस्टीट्यूशंस को पैसा देना मुश्किल हो गया है।
रूस की अर्थव्यवस्था को गहरी चोट
Russia-Ukraine War: रूस की अर्थव्यवस्था काफी हद तक उसकी प्राकृतिक गैस और तेल के निर्यात पर निर्भर करती है। रूस की GDP में इसका योगदान 15 से 20 फीसदी तक का है। जबकि GDP में कुल निर्यात का योगदान 30 प्रतिशत से ज़्यादा है। ज़ाहिर है कि इस व्यवस्था से बाहर होते ही रूस की अर्थव्यवस्था को ज़बरदस्त चोट लगेगी।
सिकुड़ जाएगी रूस की GDP
साल 2014 में भी रूस पर उस वक़्त ऐसे ही आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए थे जब रूस ने यूक्रेन से क्रीमिया को अलग कर दिया था। उस वक़्त रूस के वित्त मंत्री ने कहा था कि रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों से GDP पर खासा असर पड़ा और GDP में 5 प्रतिशत की सिकुड़न देखी गई।
स्विफ़्ट से बाहर होकर ईरान हुआ तबाह
Russia-Ukraine War: रूस पर SWIFT सिस्टम से हटने के बाद कितना असर पड़ सकता है इसका अंदाज़ा ईरान की मौजूदा हालत से लगाया जा सकता है। ईरान को जब स्विफ़्ट सिस्टम से बाहर किया गया तो तेल निर्यात से होने वाली उसकी आमदनी में 50 प्रतिशत की गिरावट आ गई थी। जबकि उसके निर्यात में 30 प्रतिशत की गिरावट देखी गई थी।
दुनिया की इकॉनमी पर पड़ेगा असर
सवाल उठता है कि रूस के कुछ बैंकों को जब इस SWIFT सिस्टम से बाहर किया गया तो उसका असर दुनिया की इकॉनमी पर कितना पड़ेगा। रूस दुनिया की 12 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अगर इस प्रतिबंध से रूस की अर्थव्यवस्था ठप हो जाती है और पूरी तरह से बैठ जाती है तो दुनिया के GDP में 2 प्रतिशत की कमी आ जाएगी।
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