रूस अमेरिका के बीच ज़ुबानी जंग
क्या होता है जैविक हथियार (BIOLOGICAL WEAPON), ऐसे बना देता है जंग को ज़हरीला
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10 Mar 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:15 PM)
Russia Ukraine War : रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग ने अब एक ख़तरनाक मोड़ लेना शुरू कर दिया है। बल्कि ये भी कहा जा सकता है कि दो महाशक्तियों के बीच की इस जंग में यूक्रेन तो बस ख़ामख्वां पिस रहा है। इस जंग के 15वें दिन उस वक़्त ज़बरदस्त ट्विस्ट देखने को मिला जब बात कैमिकल वैपन यानी रासायनिक हथियार या जैविक हथियार के इस्तेमाल तक जा पहुँची।
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एक तरफ रूस है जिसने अमेरिका पर उंगली उठाकर साफ साफ कहा है कि वो यूक्रेन की ज़मीन का इस्तेमाल करके अपने कैमिकल या रासायनिक हथियारों के एक्पेरिमेंट कर रहा है तो दूसरी तरफ अमेरिका ने पलटवार किया है। अमेरिका का कहना है कि रूस अपने कैमिकल वैपन का इस्तेमाल करने के लिए बहाने ढूंढ़ रहा है।
ज़हर उगलती दो बड़ी ताक़तें
BIOLOGICAL WEAPON: रासायनिक या बॉयोलॉजिकल वैपन आखिर होता क्या है, जिसको लेकर दुनिया की दो बड़ी ताक़तें एक दूसरे के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने लगी हैं। आखिर वो जैविक हथियार होते क्या हैं जिनको लेकर अमेरिका के साथ साथ नाटो देश भी ज़हरीली बात करने लगे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO के मुताबिक जब बैक्टीरिया, वायरस या फफूंद जैसे संक्रमणकारी चीज़ों का इस्तेमाल जानबूझकर इंसानों को संक्रमित और बीमार करने के लिए किया जाता है तो उसे जैविक हथियार या बॉयलॉजिकल वैपन कहते हैं।
नरसंहार के लिए होता है जैविक हथियार
Russia Ukraine War : ये हथियार किसी समूह विशेष पर इस्तेमाल नहीं किए जाते। बल्कि इन्हें बड़े असर के लिए इस्तेमाल किया जाता है ताकि उसके नतीजे बड़े और भयानक हों। देखा यही गया है कि ऐसे हथियारों का नतीजा अक्सर नरसंहार के तौर पर ही सामने आता है। इन हथियारों में सबसे ज़्यादा वायरस का इस्तेमाल होता है।
ऐसे हथियार बहुत कम समय में बहुत बड़े इलाक़े में तबाही मचाते हैं। इन हथियारों में इस्तेमाल किए गए वायरस लोगों में ऐसी बीमारियां पैदा कर देते हैं कि वो या तो मरने लगते हैं, या फिर ज़िंदगी भर के लिए अपाहिज हो जाते हैं। कई मामलों में तो ऐसे हथियारों का असर सीधे इंसान के दिमाग़ पर होता है और वो ज़िंदा लाश बन कर रह जाते हैं।
700 साल पुराना इतिहास
BIOLOGICAL WEAPON: इतिहास की किताबों में ऐसे हथियार का पहला इस्तेमाल 1347 में बताया जाता है जब पहली बार जैविक हथियारों का इस्तेमाल मंगोलिया की सेना ने किया था। उस वक़्त उसने प्लेग से संक्रमित लाशें ब्लैक-सी (BLACK SEA) के किनारे फेंक दी थीं, जिससे उस दौर में तेजी से संक्रमण फैला और ब्लैक डेथ भीषण महामारी के तौर पर सामने आई।
नतीजा ये हुआ कि महज़ 4 साल के अंदर यूरोप में इससे 2.5 करोड़ लोगों की मौत हो गई। इसके बाद 1710 में रूसी फ़ौज ने स्वीडन की सेना को घेर कर एस्टोनिया के तालिन उन पर प्लेग से संक्रमित लाशें फेंकी थी। इसी तरह 1763 में ब्रिटिश सेना ने पिट्सबर्ग में डेलावेयर इंडियन को घेरकर चेचक के वायरस से संक्रमित कंबल डाल दिए थे
जानकारों की मानें तो पहले और दूसरे दोनों विश्वयुद्ध के दौरान जैविक हथियारों का इस्तेमाल हुआ। पहले विश्वयुद्ध में जर्मनी ने एन्थ्रेक्स नाम के जैविक हथियार से दुश्मनों की जान ली थी। जर्मनी पर इल्ज़ाम है कि उसने ख़ुफ़िया साज़िश रची और दुश्मनों के घोड़ों और मवेशियों को संक्रमित कर दिया। इसी तरह जापान पर इल्ज़ाम लगा कि उसने टाइफॉयड के वायरस को सोवियत के जलस्रोतों में मिलाया और संक्रमण फैलाया।
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